| |

न्यायापालिका की स्वतन्त्रता | भारतीय न्यायपालिका

न्यायापालिका की स्वतन्त्रता (Independence of the Judiciary)  एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही नागरिकों के अधिकारों और संविधान की संरक्षिका हो सकती है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए निम्नलिखित उपबन्धों का समावेश किया गया 1. पदावधि की सुरक्षा-एक बार नियुक्त किए जाने के उपरान्त न्यायाधीशों को, उनके स्वैच्छिक त्याग-पत्र…

| | |

न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता

न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) सर्वोच्च न्यायालय का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य संविधान की व्याख्या तथा रक्षा करना है और यही सर्वोच्च न्यायालय का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार भी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक होने के नाते उसकी अन्तिम व्याख्या करने का अधिकार भी प्राप्त है। इसके अधीन वह संसद तथा राज्य विधानमण्डल द्वारा…

| |

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य | प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्राधिकार, व रिट

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां  संघात्मक संविधान में संघात्मक न्यायालय का विशेष स्थान प्राप्त होता है ताकि संतुलन कायम किया जा सके और संविधान की सर्वोच्च और केन्द्र तथा इकाइयों को अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्तता (Autonomy) कायम की जा सके।  किसी किसी ऐसे न्यायलय की आवश्यकता होती है जोकि संविधान की व्याख्या कर सके, केन्द्र और…

| |

मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति और विवाद | योग्यता, कार्यकाल, महाभियोग

मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति और विवाद भारत में उच्चतम न्यायलय संविधान के रक्षक और संविधान के अन्तिम व्याख्याता के रूप में कार्य करता है। भारतीय उच्चतम न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं। वह संसद द्वारा पारित ऐसी किसी भी विधि को अवैध घोषित कर सकता है जो संविधान के विरूद्ध हो।…

| |

संविधान की ऐतिहासिक उत्पत्ति [बहस] | संविधान सभा की बहस

 संविधान की ऐतिहासिक उत्पत्ति और संविधान सभा की बहस  भारतीय संविधान भारतीय व्यवस्था का आधार है। भारतीय संविधान औपनिवेशिक दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला संविधान है तथा यह भारत के सार्वजनिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है। भारतीय संविधान का भारतीय नागरिकों के दैनिक जीवन की संरचना में बहुत अधिक महत्व…

|

विकास योजना और भारतीय राज्य | पर्था चटर्जी

परिचय पर्था चटर्जी अपनी पुस्तक (state and polities in India) में राष्ट्रीय योजना आयोग (NPC) का व्याख्यान करते है। भारतीय संदर्भ में इसकी कितनी सफलता रही है तथा यह अपनी उद्देश्यों को कितनी सीमा तक पूरा कर सकता है तथा इसकी असफल के क्या कारण रहें है, इसकी पूरी विस्तृत जानकारी मिलती है। चटर्जी के…

| |

अर्थवएवस्था और राजनीति के बीच संबंध | कमांड पॉलिटी व डिमाण्ड पॉलिटी

 अर्थवएवस्था और राजनीति के बीच संबंध  Rudolph & Rudolph अर्थव्यवस्था और राजनीति के बीच संबंधों को दो मॉडलों द्वारा प्रस्तुत करते है- कमांड पॉलिटी और डिमाण्ड पॉलिटी। वे भारतीय परिपेक्ष्य मे अर्थव्यवस्था और राजनीति के बीच संबंधों को समझाने के लिए इन मॉडलों का उपयोग करते है तथा भारतीय राजनीति में इनके बीच संबंधों को…

| |

डिमाण्ड और कमांड पॉलिटी क्या है

प्रस्तावना  हम स्वतंत्र भारत में राजनीतिक और अर्थव्यवस्था के बीच परस्पर विरोधी मॉडल का उपयोग करके इनके बीच क्व संबंधों की व्याख्या करते है (कॉमण्ड पॉलिटी) और (डिमाण्ड पॉलिटी) ये मॉडल हमे राज्य सांप्रभुता और लोकप्रिये सांप्रभुता की परस्पर विरोधी आवश्यकताओ के बीच तनाव के बारे में सवाल उठाने की अनुमति देते है। जो एक…

| |

नागरिक संस्कृति की अवधारणा | निर्धारक तत्व व महत्व

 नागरिक संस्कृति की अवधारणा आज का युग लोकतन्त्रीय-कल्याणकारी राज्यों का युग है। लोकतन्त्र का उदारवादी स्वरूप आधुनिक लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषता जिससे बचने का जोखिम किसी भी राजनीतिक व्यवस्था को खतरे में डाल सकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि जनता की शासन-प्रक्रिया में अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित हो । आज जनसंचार…

| |

राजनीतिक संस्कृति पर विभिन्न विचारकों के विचार | अर्थ, संघटक, विशेषताएं, प्रकार,

राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में बिल्कुल नई संकल्पना है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि समान राजनीतिक संरचनात्मक ढांचे वाली राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर क्यों आ जाता है तथा राजनीतिक विकास की दिशाएं भी अलग-अलग क्यों हो जाती है। इसके…