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शहरी शासन [Panchayati Raj] पर Abhijit Datta और Meera Mehta के विचार

प्रतिनिधित्व का मुद्दा शहरी शासन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है । जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के स्टॉकहोल्डर्स तथा एनजीओ अपनी भूमिका निभाते हैं। एनजीओ मुख्य रूप से समाज के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती है । क्योंकि वर्तमान समय में सरकार तथा एनजीओ एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं । इसीलिए सरकार को एनजीओ की एक…

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बीजेपी सिस्टम [BJP System] | Christopher Jaffrelot, John McGuire व Oliver Heath

भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिंदू राष्ट्रवादी दल 1947 के बाद से एक लीनियर तरीके से शामिल हुए। हिंदू धार्मिक तथा हिंदू मानदंडों तथा धर्मनिरपेक्ष मानदंडों को मानते हुए कई पार्टियों का निर्माण हुआ।  1951 में जनसंघ की स्थापना हुई यह जनसंघ हिंदू नेशनलिस्ट मूवमेंट में से ही निकला था। यह एक अलग हिंदूवादी विचारधारा…

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भारत में अंतर सरकारी संबंध

भारत में अंतर सरकारी संबंध भारत में अंतर सरकारी संबंध “विधायी संघवाद” के बजाय “कार्यकारी संघवाद” का एक बड़ा मामला रहा है जो राज्यसभा के माध्यम से कभी नहीं प्राप्त हो सका । अंतर सरकारी संबंधों के तंत्र पूरी तरह से किसी भी देश में केवल औपचारिक संवैधानिक प्रावधानों का एक मामला नहीं हो सकता…

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असममित संघवाद [Asymmetrical Federalism]

Asymmetrical Federalism सीधे व साधारण अर्थों में कहें तो असममित संघवाद एक लचीले प्रकार का संघ है जो संविधान में कुछ संघात्मक इकाइयों को विशेष दर्जा प्रदान करता है । इस शब्द को संघीय नीतियों के निर्माण के लिए तैयार किया गया जो संघीय सरकार को विशिष्ट मामलों पर विभिन्न राज्यों के साथ अलग-अलग सौदा…

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भारतीय संघवाद

भारतीय संघवाद by:- Balveer arora, K.K Kailash, Rekha saxena समकालीन भारतीय राजनीति को समझने के लिए संघीय तथ्य केंद्रीय है। परंपरागत रूप से संघवाद  की अवधारणा में  केंद्रीय सरकारों और संघीय इकाइयों के बीच संबंध शामिल है। तथा केंद्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय सरकार के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है जिसे संविधान…

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न्यायापालिका की स्वतन्त्रता | भारतीय न्यायपालिका

न्यायापालिका की स्वतन्त्रता (Independence of the Judiciary)  एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही नागरिकों के अधिकारों और संविधान की संरक्षिका हो सकती है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए निम्नलिखित उपबन्धों का समावेश किया गया 1. पदावधि की सुरक्षा-एक बार नियुक्त किए जाने के उपरान्त न्यायाधीशों को, उनके स्वैच्छिक त्याग-पत्र…

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न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता

न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) सर्वोच्च न्यायालय का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य संविधान की व्याख्या तथा रक्षा करना है और यही सर्वोच्च न्यायालय का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार भी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक होने के नाते उसकी अन्तिम व्याख्या करने का अधिकार भी प्राप्त है। इसके अधीन वह संसद तथा राज्य विधानमण्डल द्वारा…

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सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य | प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्राधिकार, व रिट

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां  संघात्मक संविधान में संघात्मक न्यायालय का विशेष स्थान प्राप्त होता है ताकि संतुलन कायम किया जा सके और संविधान की सर्वोच्च और केन्द्र तथा इकाइयों को अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्तता (Autonomy) कायम की जा सके।  किसी किसी ऐसे न्यायलय की आवश्यकता होती है जोकि संविधान की व्याख्या कर सके, केन्द्र और…

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मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति और विवाद | योग्यता, कार्यकाल, महाभियोग

मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति और विवाद भारत में उच्चतम न्यायलय संविधान के रक्षक और संविधान के अन्तिम व्याख्याता के रूप में कार्य करता है। भारतीय उच्चतम न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं। वह संसद द्वारा पारित ऐसी किसी भी विधि को अवैध घोषित कर सकता है जो संविधान के विरूद्ध हो।…

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संविधान की ऐतिहासिक उत्पत्ति [बहस] | संविधान सभा की बहस

 संविधान की ऐतिहासिक उत्पत्ति और संविधान सभा की बहस  भारतीय संविधान भारतीय व्यवस्था का आधार है। भारतीय संविधान औपनिवेशिक दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला संविधान है तथा यह भारत के सार्वजनिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है। भारतीय संविधान का भारतीय नागरिकों के दैनिक जीवन की संरचना में बहुत अधिक महत्व…