असममित संघवाद [Asymmetrical Federalism]

Asymmetrical Federalism

सीधे व साधारण अर्थों में कहें तो असममित संघवाद एक लचीले प्रकार का संघ है जो संविधान में कुछ संघात्मक इकाइयों को विशेष दर्जा प्रदान करता है । इस शब्द को संघीय नीतियों के निर्माण के लिए तैयार किया गया जो संघीय सरकार को विशिष्ट मामलों पर विभिन्न राज्यों के साथ अलग-अलग सौदा करने की अनुमति देता है । 

उदाहरण के तौर पर कनाडा में अभी जल्द ही सभी संघीय प्रांतीय व क्षेत्रीय प्रीमियर समर्थकों ने एक हेल्थकेयर सौदा हस्ताक्षरित हुआ । प्रोफेसर रेखा सक्सेना असममित संघवाद की बात करते हुए यह प्रश्न करती हैं कि “क्या भारत असममित संघवाद का मामला है? क्या भारत के राष्ट्रीय एकीकरण में आज संबंधित संघवाद मदद करता है या बाधा डालता है?”

इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए वह तुलनात्मक संघीय सिद्धांत की पूर्ण धारणा तथा मुख्य रूप से उत्तर पूर्व व उत्तर पश्चिम के जम्मू कश्मीर, नागालैंड व मिजोरम की बात करती हैं । 

क्लाउस वॉन बेइम असममित संघवाद के बारे में एक अवधारणात्मक अवलोकन करते हुए कहते हैं कि शास्त्रीय आधुनिकतावाद के युग में पुराना संघवाद उदार बहुसंस्कृतिक अधिकारों के साथ संबंधित राज्यों के तर्कसंगत मॉडल पर निर्भर थे ।  जबकि बहुराष्ट्रीय राज्यों के बाद के आधुनिक संघवाद अंतराज्य विषमताओं के संविधानिक इंजीनियर बन गए । 

सममित संघवाद की अवधारणा और सिद्धांत पर साहित्य में इन सवाल पर बहस है कि क्या संघीय संरचना में विषमता एक फिसलन क्षेत्र है जो राष्ट्रीय एकता के लिए धर्मनिरपेक्षता या अनुकूलता है । प्रारंभिक लेखों में पूर्व की अवस्था की प्रवृत्ति थी । वर्तमान में तर्क यह है कि यह अलगाव की स्थिति दूर करता है। हालीय दृश्य को एकात्मक राष्ट्र राज्य के शास्त्रीय मॉडल द्वारा चित्रित किया गया था जिसे फ्रांसीसी क्रांति व संघीय राज्य के शास्त्रीय मॉडल द्वारा अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम द्वारा उत्तक्रिण किया गया था। फ्रांस और अमेरिका दोनों ही पूर्व में एक राष्ट्र राज्य का अनुमान लगाते थे इसका रवैया की स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व बाद में  post-colonial राष्ट्र वादियों में यह उलट गया । जो उपनिवेशवाद की मुक्ति के समय  डिवाइड एंड रूल पॉलिसी के खिलाफ थे वह एक क्षेत्र व एक समुदाय के खिलाफ हो गए । 

वास्तव में दक्षिण पूर्व एशिया में संघवाद का विचार आम तौर पर राज्य राष्ट्र वादियों के लिए संदिग्ध था क्योंकि इन्हें सत्ता विरासत में मिली थी और एक मजबूत राष्ट्र राज्य एक नियत समय में स्थिर करने की इच्छा थी । जैसे पाकिस्तान व श्रीलंका अपनी जातीय विविधता के बावजूद संघीय विचार से दूर हैं । भारत व नेपाल में संघवाद के पुट दिखाई पड़ते हैं । आज भी स्विट्जरलैंड बहुराष्ट्रीय संघों का तथा भारत, बेल्जियम, कनाडा असममित संघवादी लोकतंत्र के उदाहरण हैं ।

Johns MCGarry  20वी व 21वी शताब्दी के असममित संघवाद के तुलनात्मक अध्ययन करने के उपरांत यह इस निष्कर्ष पर आते हैं कि “असममित संघवाद एकांत का नेतृत्व नहीं करता । एकता या अलगाव आकस्मिक  राजनीति पर निर्भर करेगा कि इस तरह का संविधान वास्तव में राजनीतिक नेतृत्व और अन्य प्रासंगिक कारकों द्वारा कैसा काम किया जाता है । 

चार्ल्स टार्रबटन 1965 में इस शब्द को कहते हैं 1867 में कनाडा में संघीय संविधान का निर्माण हुआ । यहां पर मिचेल बर्गेस का कथन ज्यादा संतुलित है कि “अस्मितावादी संघीय व्यवस्था की धारा वास्तव में विशिष्ट सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संदर्भ पर निर्भर है”।

The Indian Express

रोनाल्ड व्हाट्स सिद्धांतिक रूप से राजनीतिक विषमता के बीच एक भेद करते है जो कि हर संघवाद में मौजूद है । भारत में राजनीतिक विषमता का उदाहरण यह है कि यहां राज्यों का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में होता है। राजनीतिक विषमता को दर्शाते हुए जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति अनुच्छेद 370 ने कश्मीर राज्य के लिए कानून बनाने के लिए संसद की शक्ति को सीमित कर दिया। इसी तरह 371a नागालैंड है। 

राज्य स्तर पर इन विषमताओं के अलावा कुछ अन्य विषमताए भी हैं जिन्हें केंद्र शासित कहा जाता है । मूल रूप से सभी केंद्र और नियुक्त प्रशासक से प्रशाशित होती है । बाद में दो और तरीके से केंद्र शासित राज्यों का निर्माण हुआ, पांडुचेरी (4 वां संविधान संशोधन 1962), दिल्ली (69 वां संविधान संशोधन 1991) नाम से बनाए गए । इनकी मुख्य विशेषता एकमत विधानसभा तथा सीधे जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य है।

Specific Asymmetrics

पहला-  जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, असम । विधानसभा सीट व कानून व्यवस्था के संदर्भ में उत्तर प्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश,सिक्किम ।  

दूसरा-  महाराष्ट्र व गुजरात के राज्यपाल को इन राज्यों के पिछड़े क्षेत्रों के लिए अलग से विशेष जिम्मेदारी दी है । 

तीसरा- भारत के राष्ट्रपति संवैधानिक दायित्व के तहत असम व मणिपुर विधानसभा की एक कमेटी बनाई जाए जिससे वहाँ के आदिवासी व पहाड़ी इलाकों से सदस्य आ सके ।

चौथा- भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के संबंध के तहत आंध्र प्रदेश के लिए समान अवसर व सुविधाएं सुनिश्चित करें । 

पांचवा- सिक्किम व गोवा विधानसभा में कम से कम 30 सदस्य हो । 

छठा- अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल कानून व व्यवस्था की विशेष जिम्मेदारी होगी । वह मंत्रिपरिषद के परामर्श के कार्य करेगा । 

इसमें संघवाद सिद्धांत और भारतीय संदर्भ से terlton का विश्वास है कि यह अलगाववादी एकता से भरे होते हैं वहीं दूसरी ओर टेलर, किमलिका इसे आवश्यक मानते हैं । तथा वे इसे बहुराष्ट्रीय संस्कृति की व इसके अधिकार तथा पहचान की राजनीति के संदर्भ में देखते हैं ।

स्टीपेन भारत “Demosenabling”  के विपरीत है । टिलीन का तर्क क्षेत्रीय भाषाओं के विषय अस्वस्थ करना तथा राज्य सरकारों में उन्हें दर्जा दिलाना है । इसके हिंदी व अंग्रेजी मुख्य रूप से कार्यालय भाषा का दर्जा दिया जाता है । टिलीन का मानना है कि 370 को संविधान के भाग 21 के तहत अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान था । टीलीन के अनुसार भारत एक संघ राज्य है; जिसे परिधीय इकाइयों के रूप में देखा जा सकता है । भारतीय संविधान में कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । टिलीन संजय बरूआ का हवाला देते हुए असम की असममित समाधान तथा जातीय बंगालियों से रचनात्मक बातचीत करने की स्थिति से देखते हैं ।

पाकिस्तान बिना द्विपक्षीय बात के चीन को अक्साई चीन दे देता है । परंतु कश्मीर भारत को संघ लोकतांत्रिक चुनाव के आधार पर हासिल है। मिजोरम 13वें निर्वाचन क्षेत्र द्वारा किया गया जम्मू कश्मीर, उत्तर पूर्व में भारत कारपोरेट में एक मिसाल के रूप में कार्य करता था । 

Conclusion

इस प्रकार से हम देखते हैं कि भारत में De Facto and De Jure विषमता है । अर्थात यह एक महासंघ तो है पर एक समान संघात्मक सिद्धांत के बजाय कई सिद्धांत हैं । जम्मू-कश्मीर, नागाभूमि, मिजोरम के मामले में विषमताएं स्पष्ट है । UTs  मामले में के मामले में दिल्ली व पांडुचेरी । आठवीं अनुसूची में चिन्हित बताएं । पांचवी अनुसूची में आदिवासी से संबंधित विषय बताएं । 

उल्लेखनीय बिंदु अनुच्छेद-1 भारत राज्यों का एक संघ है । बाद में भाषाई, धार्मिक, आदिवासी, अल्पसंख्यक, जातीय स्वायत्तता सभी पूरक है अर्थात भारत एक जातीय संघवाद है यह कहना गलत ना होगा । 

इसके अलावा कुछ अन्य तथ्यात्मक विशेषताएं हैं जैसे- उत्तर प्रदेश संघ राजनीति का बड़ा उदाहरण है 1980 से अब तक 13 में से 8 प्रधानमंत्रियों का योगदान । संविधान सभा द्वारा 2025 तक अन्तर्राज्य परिषद को स्थगित करना ।

1947 के विभाजन के बावजूद आज भी क्षेत्रीय रूप से बड़ा सांस्कृतिक रूप से समग्र व जटिल बना हुआ है । De Jure के साथ-साथ De Facto की विषमता भारत को अनम्य बना सकती है, फिर भी वह विशिष्ट व जनता के मध्य आम सहमति की खोज का प्रतिनिधित्व करते हैं । राष्ट्रीयता के एक विशेष दृष्टिकोण को कमजोर कर सकते हैं । लेकिन उन्हें भारतीय संघ व समग्र राष्ट्रवाद की निरंतर सेवा की है ।

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