अल्पसंख्यकों की राजनीति

अल्पसंख्यकों की राजनीति | POLITICS OF MINORITIES

 अल्पसंख्यकों की राजनीति

राष्ट्रीय इकाइयों और अल्पसंख्यकों की समस्या भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की अन्यतम समस्या थी। भाषाई अल्पसंख्यकों, मुसलमानों, सिखों, आदि में जैसे-जैसे राजनीतिक जागरण आया वैसे-वैसे राजनीतिक स्वाधीनता के लिए किए गए राष्ट्रीय आन्दोलन और स्वाधीन भारत की भावी राज-व्यवस्था की दृष्टि से यह प्रश्न विशिष्ट और निर्णायक महत्व का हो गया। अल्पसंख्यकों की समस्या भारत की ही तरह आस्ट्रिया, हंगरी, आदि देशों के भी आधुनिक इतिहास में उदित हुई है और उन देशों में भी इसके समाधान की आवश्यकता पड़ी है।

 

अल्पसंख्यकों की राजनीति

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित करने वाले प्रावधान (Provisions for the Protection of Minorities Tender the Indian Constitution)

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित रखने वाले अनेक प्रावधान हैं।संविधान के अनुच्छेद 14, 15 तथा 16 में कानून के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण का आश्वासन दिया गया है और किसी व्यक्ति के धर्म, जाति, मूलवंश, आदि के आधार पर भेदभाव करना वर्जित ठहराया गया है। अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक  सेवाओं में समान अवसर दिए जाने का प्रावधान है। अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है। इसके अधीन अन्तःकरण की स्वतन्त्रता तथा किसी भी धर्म को मानने, उस पर आचरण करने और धार्मिक प्रचार की गारण्टी दी गयी है। अनुच्छेद 26 में की धार्मिक मामलों का प्रबन्ध बिना किसी प्रकार के हस्तक्षेप से करने की गारण्टी दी गयी है। अनुच्छेद 27 में किसी विशेष धर्म की के उन्नति और प्रसार-प्रचार के लिए करों की वसूली पर छूट दी गयी है। अनुच्छेद 28 में सरकारी पैसे से चलने वाली शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक उपासना में उपस्थित न होने की छूट दी गयी है।

संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों के अन्तर्गत अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यकों के हितों को संरक्षण दिया गया है और अनुच्छेद 30 में अल्पसंख्यकों को अपनी पसन्द की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार दिया गया है। ये संवैधानिक व्यवस्थाएं इस प्रकार हैं :

अनुच्छेद 29

(i) भारत के राज्य-क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी विभाग को जिसकी अपनी के विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है; उसे बनाए रखने का अधिकार होगा। 

(ii) राज्य द्वारा पोषित अथवा राज्य निधि से सहायता नाशने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी के आधार र वंचित न रखा जाएगा।

अनुच्छेद 30

(i) धर्म या भाषा पर आधारित सव अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और शासन का अधिकार होगा। 

(iii) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी विद्यालय के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं. सांगा कि वह धर्म या भापा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रवन्ध में है।

इन प्रावधानों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हमारे संविधान निर्माता अल्पसंख्यकों की समस्याओं से परिचित थे।

अल्पसंख्यकों का कल्याण

(WELFARE OF THE MINORITIES) 

अल्पसंख्यकों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए सरकार प्रतिवद्ध है। गृह मंत्रालय राष्ट्रीय एकता परिषद के तंत्र के माध्यम से धर्म, भाषा, आदि के भेदभाव के बिना समाज के सभी वर्गों के एकीकरण की दिशा में कदम उठाता आ रहा है। पसंख्यकों की राष्ट्रीय मुख्य धारा में पूरी-पूरी भागीदारी तथा एकीकरण सुनिश्चित करने का दायित्व प्रारंभ में कल्याण मंत्रालय एक नोडल मंत्रालय के रूप में सौंपा गया जिसे अब सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मन्त्रालय द्वारा सम्पादित किया जा रहा हैं। अल्पसंख्यकों के कल्याण से संबंधित प्रयास निम्नलिखित है:

(1) अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए 15-सूत्री कार्यक्रम

अल्पसंख्यकों के कल्याण से संबंधित 15-सूत्री कार्यक्रम के माध्यम से कल्याण मंत्रालय (वर्तमान में सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मन्त्रालय) उनके हितों का संरक्षण करता है। इस कार्यक्रम के सूत्र स. 1  से 7 संप्रदायिक उपद्रवों को रोकने तथा नियंत्रित करने, और शाति बढ़ाने तथा अल्पसंख्यक में पुनः विश्वास बहाल करने से सम्बन्धित उपाय निर्धारित हैं। सूत्र सं. 8 से 10 में सरकारी नौकरियां, राज्यों तथा केन्द्र के पुलिस वलों में पुलिस कार्मिकों की भर्ती, रेलवे, राष्ट्रीयकृत बैंकों तथा सार्वजनिक उपक्रमों, आदि में अल्पसंख्यक समुदाय को प्रतिनिधित्व प्रदान करके अल्पसंख्यकों की ओर विशेष ध्यान देने का प्रावधान है। 

कार्यक्रम के सूत्र सं. 11 में अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को कोचिंग प्रदान करने की व्यवस्था है ताकि वे केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों, बैंकों, आदि में सार्वजनिक नियुक्तियों के लिए आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में प्रतियोगिता के योग्य बन सकें। 

सूत्र सं. 12 में अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में आई.टी.आई. तथा पॉलिटेक्निक खोलने की व्यवस्था है ताकि इन समुदायों के उम्मीदवार रोजगारोन्मुख शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित हो सकें और अन्ततः उससे उन्हें अपने पांवों पर खड़े हो पाने में सहायता मिल सके। 

सूत्र सं. 13 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है, कि विभिन्न विकासात्मक योजनाओं के लाभ अल्पसंख्यकों को निष्पक्ष एवं पर्याप्त रूप में सुलभ हो सकें। सूत्र सं. 15 में अल्पसंख्यकों से संबंधित मामलों के निपटाने के लिए केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक सैलों की स्थापना करने की अपेक्षा की गई है। 

यह कार्यक्रम राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तथा संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। संपूर्ण कार्यक्रम को मानीटर किया जाता है और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अल्पसंख्यक विंग द्वारा इसके कार्यान्वयन पर नजर रखी जाती है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अल्पसंख्यक कल्याण संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति भी पुनर्गठित की गई है।

(2) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मन्त्रालय ने स्वरोजगार वाले उद्यमों की स्थापना के लिए पात्र अल्पसंख्यक लाभग्राहियों को रियायती वित्त प्रदान करने के लिए 500 करोड़ रुपए की प्राधिकृत पूंजी के साथ एक शीर्ष वित्त निगम अर्थात् राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम की स्थापना की है। निगम की इक्विटी के लिए भारत सरकार का अंशदान राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन के आनुपातिक अंशदान के अध्यधीन होगा। 

(3) विशेष न्यायालय 

जिन स्थानों पर साम्प्रदायिक हिंसा व्यापक पैमाने पर हुई हो वहां साम्प्रदायिक अपराधों के विचारण : हेतु राज्य सरकारों को विशेष न्यायालयों का गठन करने की सलाह दी गई है। गृह मन्त्रालय द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार विभिन्न राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में से 8 राज्यों तथा एक संघ राज्य क्षेत्र में विशेष रूप से साम्प्रदायिक अपराधों के लिए विशेष न्यायालयों का गठन किया गया है। अब तक स्थापित इस प्रकार के न्यायालयों की कुल संख्या 22 है।

(4) दंगा पीड़ितों को अनुग्रह राशि 

राज्यों ने दंगा पीड़ितों को वित्तीय राहत प्रदान करने की आवश्यकता सिद्धान्त रूप में  स्वीकार कर ली है। राज्य सरकारों को साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ाने के संबंध में जारी किए गए संशोधित दिशा निर्देशों में अन्य बातों के साथ-साथ यह भी व्यवस्था है कि मृत्यु अथवा स्थायी अक्षमता की स्थिति में अनुग्रह अनुदान की राशि 20,000 रुपये से वढ़ाकर 50,000 रुपए कर दी जाए और निम्न आय वर्ग के दंगा पीड़ितों की विधवाओं को 500 रुपए पेंशन भी दी जाए। ये दिशा निर्देश अप्रैल, 1990 से प्रभावी हुए।

(5) भर्ती 

राज्य सरकारों को राज्य पुलिस बल में अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने तथा कानून और व्यवस्था संबंधी कार्यों के लिए मिश्रित पुलिस बटालियनें बनाने की भी सलाह दी गई है।

(6) रोजगार

यह निर्णय भी लिया गया है कि सभी चयन समितियों/भर्ती बोर्डों में अल्पसंख्यक समुदाय का एक प्रतिनिधि होना चाहिए ताकि चयन प्रक्रिया में विश्वास उत्पन्न हो सके।

(7) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा और धर्मनिरपेक्ष परम्पराओं को बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने एक संकल्प द्वारा जनवरी, 1978 में अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की थी। मई 1992 में पूर्व अल्पसंख्यक आयोग को सांविधिक दर्जा देते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 अधिनियमित किया गया और इस प्रकार इसे अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा हेतु और अधिक प्रभावी निकाय बनाया गया। आयोग के लिए वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना अपेक्षित है जिनमें की गई कार्यवाही ज्ञापन सहित संसद के प्रत्येक सदन में रखी जाती है। इस आयोग ने अब तक आठ वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं। इन रिपोर्टों की जांच की गई है और अनुवर्ती कार्यवाही के लिए अन्य मन्त्रालयों/विभागों के पास भेजी गई है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने देश में मुख्य धार्मिक अल्पसंख्यकों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं के लिए अलग से व्यापक अध्ययन करने के लिए जून, 1997 में उच्चाधिकार प्राप्त अध्ययन समिति गठित की है। नवम्बर 2004 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन करने का निर्णय लिया गया था जिससे अल्पसंख्यकों के बीच अत्यधिक विश्वास उत्पन्न होगा। तदनुसार सरकार ने 23 दिसम्बर, 2004 का लोकसभा में संविधान (103वां संशोधन) विधेयक, 2004 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (निरसन) विधेयक, 2004 पेश किया।

भारत में अल्यसंख्यक

(MINORITIES IN INDIA)

भारत में अल्पसंख्यकों को मोटे रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है :

धार्मिक अल्पसंख्यक

भाषायी अल्पसंख्यक

विश्व के लगभग सभी देशों में धर्म और भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक समूहों को मान्यता दी गयी है। एक भाषायी अथवा धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग का उद्देश्य सरकार से ऐसी सुविधाएं प्राप्त करना होता है जिनके द्वारा वह अपने धर्म तथा भाषा को सुरक्षित तथा जीवित रख सकें और उनका बहुमत के साथ विलयन न होने पाए।

भारत में धर्म पर आधारित अल्पसंख्यक 

(MINORITIES BASED ON RELIGION IN INDIA)

भारत एक बहुधर्मी और बहुभाषी देश है। भारत में हिन्दू, मुरिलम, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, आदि धर्मों के लोग निवास करते हैं। भारतीय समाज का बहुमत हिन्दू धर्म का अनुयायी है। विभिन्न जनगणनाओं के अनुसार भारत में प्रमुख धर्मों के अनुयायियों की संख्या निम्न प्रकार है :

1. मुस्लिम अल्पसंख्यक (MUSLIM MINORITY) 

अंग्रेजी शासन काल में चालीस करोड़ की आबादी में मुसलमानों की संख्या नौ करोड़ थी। ये हिन्दुस्तान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक थे। भारतीय मुसलमानों का पहला संगठित आन्दोलन बहावी आन्दोलन था। यह धर्म-सुधार आन्दोलन के रूप में हुआ। लेकिन बाद में इसमें राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तत्व भी आ मिले। सन् 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक विकास में मील का पत्थर है। 1906 में भारतीय मुसलमानों के लिए पृथक् चुनाव क्षेत्रों और प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गयी। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में पहली बार बहुत सारे हिन्दुओं और मुसलमानों ने भारत के लिए स्वशासन जैसे राष्ट्रीय लक्ष्य के लिए परस्पर सहयोग किया। 

सन् 1929 में जिन्ना ने अपनी मशहूर चौदह-सूत्री योजना प्रकाशित की जो बाद में लीग के प्रचार आन्दोलन का आधार हुई। 1940 के लाहौर के अधिवेशन में लीग ने पाकिस्तान की मांग की घोषणा की। दो राष्ट्रों का सिद्धान्त इस मांग का राजनीतिक-वैचारिक आधार था। इस सिद्धान्त के अनुसार मुसलमान एक विशिष्ट राष्ट्र थे, यद्यपि वस्तुतः वे एक सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लोग थे जो सारे देश में बिखरे हुए थे।

पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी भारत में बड़ी संख्या में मुसलमान निवास करते हैं। वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत (18 करोड़) मुसलमान हैं। स्वाधीन भारत में मुसलमानों को न केवल कानून द्वारा समान अधिकार और संरक्षण की गारण्टी प्राप्त है बल्कि वे देश के महत्वपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में सक्रिय और प्रमुख भाग ले रहे हैं।

2. ईसाई अल्पसंख्यक (CHRISTIAN MINORITY) 

ईसाई भी भारत में अल्पसंख्यक हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार नगालैण्ड की 90%, मिजोरम की 87%, मेघालय की 103%, गोआ की 26% तथा केरल की 19% जनसंख्या ईसाई धर्म की अनुयायी है। ईसाइयों का कोई राजनीतिक दल नहीं है।

ईसाई ने राजनीति की अपेक्षा सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों में अपने को लगा रखा है। ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध कई बार हिन्दुओं की ओर से आवाज उठायी गयी है कि वे लालच अथवा बल के द्वारा हिन्दुओं को ईसाई बना रहे हैं। हिन्दुओ को अपने धर्म से च्युत करने के लिए करोड़ों रुपया प्रतिवर्ष विदेशों से आने लगा। नगालैण्ड, मेघालय, मणिपुर, इत्यादि क्षेत्रों में ईसाइयों की संख्या वढ़ने लगी।

3. सिख अल्पसंख्यक(SIKH MINORITY) 

स्वतन्त्रता के वाद सिखों ने पंजाबी सूवे की मांग की। अकाली दल ने आन्दोलन प्रारम्भ किया और कहा कि सिखों की प्रथा एवं संस्कृति के आधार पर एक पृथक राज्य का निर्माण किया जाना चाहिए। सन् 1966 में पंजाब का विभाजन कर हरियाणा ऑर पंजाब राज्य बनाए गए। इस नवगठित पंजाब में सिखों की जनसंख्या 59.9 प्रतिशत हो गयी। सिखों को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल, संसद तथा विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त है। पंजावी भाषा को संविधान में मान्यता दी गयी है। सेना, पुलिस एवं प्रशासन में भी सिक्खों का प्रतिनिधित्व बहुत अधिक है। इन सबके बावजूद सिखों का एक वर्ग पृथक राज्य ‘खालिस्तान’ की मांग करने लगा। अकाली दल ने ‘धर्म युद्ध मोर्चा’ (1982-85) केन्द्र के विरुद्ध लगाया। आतंकवादी गतिविधियों पर नियन्त्रण करने के लि स्वर्ण मन्दिर पर सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी। जुलाई 1985 में केन्द्रीय सरकार और अकाली दल के मध्य पंजाब समस्या समाधान के लिए एक समझौता हुआ। पंजाव समझौत (24 जुलाई, 1985) के बाद घावों को भरने एवं टूट को जोड़ने का काम प्रारम्भ-हुआ। प्रधानमन्त्री पद ग्रहण करने के बाद वी.पी. सिंह की स्वर्ण मन्दिर यात्रा पंजाब समस्या के समाधान की दिशा में नए  युग की शुरुआत थी। अकाल तख्त के सामने वी. पी. सिंह ने ठीक ही कहा- ‘घाव हरे हैं, दिल भरे हैं, मरहम की जरूरत है

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