साम्प्रदायिकता | Communalism
साम्प्रदायिकता का अर्थ
भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता
(Communalism in Indian Politics)
स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पहले जहाँ भारत में साम्प्रदायिकता के कारण हिन्दू-मुस्लिम दंगे एक आम बात थी, वहीं इसके कारण अब भी दंगे होते रहे हैं। प्रमुख समुदायों ने अपने को साम्प्रदायिक तथा धार्मिक कट्टरता के आधार पर संगठित किया है जिससे कि विभिन्न समुदायों में लड़ाई-झगड़े तथा हिंसात्मक कार्यवाहियों होती है। साम्प्रदायिक कट्टरता तथा मौलिकतावाद में दिन-प्रतिदिन वद्धि हो रही है जिसका प्रभाव देश की राजनीति पर पड़ रहा है। उनकी विचारधारा से उत्पन्न उनके कार्यो का उल्लेख निम्नलिखित भागों में किया जा सकता है:
1.साम्प्रदायिक हिंसा (Communal Violence)
भारत एक सम्प्रदाय बहुल-राष्ट्र है जिसमे हिन्दुओं की जनसंख्या सबसे अधिक है। इसके बाद मुसलमान. सिक्ख, ईसाई. पारसी. जैन, बौद्ध आदि हैं। इस प्रकार हिन्दुओं को छोड़कर शेष अल्पसंख्यक है। इस दष्टि से भारत को अल्पसंख्यकों का देश कहा जा सकता है। इसी कारण साम्प्रदायिकता एक भयंकर समस्या बन गई है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति, 1947 से लेकर 1978 तक 9,500 साम्प्रदायिक घटनाएँ घर्टी जिनमें 150 व्यक्ति मारे गए तथा 2953 घायल हए। ये साम्प्रदायिक दंगे दक्षिण तथा उत्तर भारत दोनों में ही हुए। 1990 में भारम में भयंकर रूप से साम्प्रदायिक दंगे हुए और हिंसात्मक घटनाएं हुई। दिसम्बर 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के दौंचे को गिराने के परिणामस्वरूप साम्प्रदायिकता की भावना को बहुत ही प्रबल शक्ति प्राप्त हुई तथा स्थान-स्थान पर साम्प्रायिक दंगे भी हुए। इसी साम्प्रदायिक भावना के कारण बम्बई में बम विस्फोट काण्ड हुआ जिसमें सैकड़ों लोगों की जानें गयीं।
2.पंथों सम्बन्धी दंगे Sectarian Riots)
धर्म के आधार पर सम्प्रदायों में अनेक पंथ भी है जिसमें आपस में दंगे रहते हैं। उदाहरण के लिए. लखनऊ में शिया और सुन्नियों (जो मुस्लिम सम्प्रदायों के पंथ है) में प्रतिवर्ष झगड़े होते हैं। कानपुर और अमतरार में सिक्खों और सिक्खों के ही पंथ-राधास्वामियों के मध्य दंगे होते हैं। यद्यपि सिक्किम में कोई दंगे नहीं हुए परन्तु वहाँ दो संगठन- लेपचा तथा भूटियों के संगठित हो रहे हैं। मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि में कवीलों और गैर-कबीलों में झगड़े हो जाते है।
3. मुस्लिम बहुमत क्षेत्र का गठन (Creation of Muslim Majority Region)
सम्प्रदाय के आधार पर क्षेत्र का गठन बहुत हानिकारक है। परन्तु केरल में एक जिला मुस्लिम बहुमत का बनाया गया। केरल में 1982 में ईसाई बहुमत जिले की मांग की गई थी।
4.धार्मिक स्थानों पर राजनैतिक उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग (Misuse of Religious Places for Political Purposes) धार्मिक स्थानों का दुरूपयोग भी साम्प्रदायिकता का एक रूप है। उदाहरण के लिए अकाली दल अमतसर के स्वर्ण मंदिर का दुरूपयोग राजनैतिक मांगों की पूर्ति के लिए कर रहा था। बहुत-से उग्रवादी मंदिर में रहते हुए राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में भाग ले रहे थे। परिणामस्वरूप, भारत सरकार को उग्रवादियों को मन्दिर से निकालने के लिए सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी।
इस वर्णन से स्पष्ट है कि साम्प्रदायिकता भारतीय लोकतन्त्र के विकास में बाधक बन रहा है। इस व्यवस्था को एकदम समाप्त करना कठिन है परन्तु इस पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है।
साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान
(Solution of Problem of Communalism)
राष्ट्र की एकता और उन्नति के लिए साम्प्रदायिकता को समाप्त करना अति आवश्यक है। साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैं:
I. शिक्षा द्वारा (By Education)
साम्प्रदायिक साम्प्रदायिकता को दर करने का सबसे अच्छा साधन शिक्षा का प्रसार है। जैसे-जैसे शिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जाएगी धर्म का प्रभाव भी कम हो जाएगा और साम्प्रदायिकता की बीमारी भी दूर हो जाएगी। राही शिक्षा से राष्ट्रीय भावना पैदा होती है।
2. प्रचार के द्वारा (By Propaganda)
समाचार-पत्रों, रेडियो तथा टेलीविजन के द्वारा साम्प्रदायिकता के विरूद्ध प्रचार करके भ्रातत्व की भावना उत्पन्न की जा सकती है।
3. नागरिक अपने दायित्व पूरे करें (Citizens should ruin their Responsibility)
दंगों का जारी रहना यह भी दर्शाता है कि हमारा समाज सब कामों के लिए प्रशासन तथा राजनीतिक नेतत्व पर अधिक भरोसा करके सामाजिक नेतत्व के महत्त्व को भूल गया है। नागरिकों को अपने दायित्व के प्रति सचेत होना चाहिए और शान्ति स्थापना में प्रशासन की मदद करनी चाहिए। प्रशासन दंगों को दबा सकता है. नागरिकों की मदद के लिए गश्त की व्यवस्था भी कर सकता है, लेकिन सन्देह का वातावरण खत्म करना नागरिकों का दायित्व है।
4. साम्प्रदायिक दलों का अन्त करके (By abolishing Communal Parties)
सरकार को सभी ऐसे दलों को समाप्त कर देना चाहिए. जो साम्प्रदायिकता पर आधारित हों। भूतपूर्व प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई के मतानुसार चुनाव आयोग को साम्प्रदायिक पार्टियों को मान्यता नह देनी चाहिए। श्री मोरारजी देसाई के विचारानुसार किसी भी राष्ट्रीय दल को साम्प्रदायिक पार्टियों से गठजोड़ न करना चाहिए और न ही साम्प्रदायिक पार्टियों को चुनाव लड़ने की आज्ञा दी जानी चाहिए। सभी साम्प्रदायिक संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाने चाहिए।
5. आपसी विवाह के द्वारा (By Inter-Religious Marriages)
अन्तर्जातीय विवाह करके साम्प्रदायिकता को समाप्त किया जा सकता है।
6. धर्म और राजनीति को अलग करके
साम्प्रदायिकता को रोकने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय यह है कि राजनीति को धर्म से अलग रखा जाए। 25 फरवरी, 1987 को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदस्यों ने धर्म को राजनीति से अलग रखने पर जोर दिया। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने कई बार अपने भाषणों में धर्म को राजनीति से अलग करने पर जोर दिया था।
7. सुरक्षा बलों में सभी धर्मों का प्रतिनिधित्त्व
साम्प्रदायिक दंगों को रोकने में सुरक्षा बलों का विशेष उत्तरदायित्व है। अतः साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि सुरक्षा बलों में सभी धर्मों व जातियों को जहां तक हो सके समान प्रतिनिधित्व देना चाहिए।
8. सामाजिक तथा आर्थिक विकास
साम्प्रदायिक दंगों को कम करने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय पिछड़े लोगों का सामाजिक तथा आर्थिक विकास करना है। अधिकांश साम्प्रदायिक दंगों में गरीब और पिछड़े लोग ही सम्मिलित होते हैं। अतः साम्प्रदायिक दंगों को कम करने के लिए लोगों का तेजी के साथ सामाजिक तथा आर्थिक विकास करना अति आवश्यक है।
9.साम्प्रदायिकता विरोधी सम्मेलनों का आयोजन (Anti-Communalism Conventions)
साम्प्रदायिकता को समाप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन साम्प्रदायिकता विरोधी सम्मेलनों का आयोजन करना है। अब तक इस प्रकार के कई सम्मेलन किए जा चुके है-नई दिल्ली (1956). नई दिल्ली (1968). इलाहाबाद (1970). भोपाल (1972). नई दिल्ली (1972) आदि । सम्मेलनों में हर बार कुछ प्रस्ताव पास किए गए हैं। कुछ दलों को फासिस्ट कहा गया और कुछ पर साम्प्रदायिक घणा फैलाने, दंगे. हिंसा और तोड़-फोड़ के आरोप लगाए हैं।
10. दलगत राजनीति
न्यायमूर्ति विद्यातिल ने सिफारिश की थी कि राजनीतिक दल अपने दलगत हितों को बढ़ाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल न करें और पुलिस प्रशासन में हस्तक्षेप करने से बाज़ आएं।
11. साम्प्रदायिक दंगों के लिए सरकार के विरुद्ध कार्यवाही
1968 में राष्ट्रीय एकता परिषद् की श्रीनगर बैठक में तत्कालीन उप-प्रधानमन्त्री श्री देसाई ने कहा था कि जो फैसला किया गया. उसमें यह भी निहित है कि जो सरकार दंगों को रोकने में विफल हो, वह हर्जाना दे और जिम्मेदार मन्त्री अपने पद से इस्तीफा दे दें। हमें तो इस प्रसंग में समूची सरकार के पद त्याग पर विचार करना चाहिए। परन्तु यह फैसला और इसमें निहित सिद्धान्त आज तक किताबी ज्ञान बना रहा, जिराको व्यवहार में लाने का साहस किसी राजनीतिज्ञ ने नह किया।
12.शान्ति रक्षा बल
12 सितम्बर, 1980 को केन्द्रीय सरकार ने साम्प्रदायिक दंगों से निपटने के लिए शान्ति रक्षा बल की तीन बटालियनें गठित करने की स्वीकृति दे दी। शान्ति रक्षा बल में देश के विभिन्न भागों से मुख्य रूप से अल्पसंख्यक. हरिजन तथा आदिवासी समुदायों के सदस्य लिए जाएंगे। गह मन्त्रालय के एक प्रवक्ता के अनुसार उनका दष्टिकोण सम्भवतः राष्ट्रीय, धर्म-निरपेक्ष तथा जाति, धर्म और क्षेत्रीय संकीर्णताओं से ऊपर होगा।
13. गह-मन्त्रालय का 10 सूत्री कार्यक्रम
जुलाई, 1981 में गह-मन्त्रालय ने साम्प्रदायिक दंगों की रोकथाम के लिए राज्य सरकारों को एक 10 सूत्री कार्यक्रम भेजा। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण सुझाव यह है कि धार्मिक जुलूसों के मार्गों का पहले से निर्धारण कर दिया जाना चाहिए। एक सुझाव यह भी है कि पुलिस दल तथा गुप्तचर विभाग में अल्पसंख्यकों को पूरा प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए जिससे कि पुलिस की निष्पक्षता में उनका विश्वास पैदा हो। साम्प्रदायिक समाचार-पत्रों पर कड़ी नजर रखने का सुझाव देते हुए केन्द्र ने इनके विरूद्ध प्रभावी कार्यवाही करने का भी सुझाव दिया है।