अन्तराष्ट्रीय संबंध में “थर्ड डिबेटस” | Paradigm Debate
The Raise and the fall of the Inter-paradigm Debate
तीन मानक प्रतिमान, तीन प्रमुख विद्यालय हैं, ऐसा अंतरराष्ट्रीय संबंध की एक मानक पुस्तक में वर्णित है। पहला यथार्थवाद, दूसरा बहुलवाद, अन्योंन्याश्रय और विश्व समाज कहा जाता है। यह कुछ अर्थों में उदारवादी दृष्टिकोण है। तीसरा मार्क्सवाद है जो अधिक व्यापक रूप में स्थापित है।
What Is Paradigm Debate?
अंतरराष्ट्रीय संबंध में पहली बड़ी बहस 1940 के दशक में आदर्शवाद बनाम यथार्थवाद और दूसरी 1950-1960 के दशक में परंपरावादी बनाम व्यवहारवादी की थी। 1960 के दशक में प्रमुख यथार्थवादी प्रतिमानों की आलोचना बढ़ रही थी। परंतु इसकी सांसारिक छवि राज्य केंद्रित थी। घरेलू सैन्य और राजनीतिक सेना से परे विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं के लिए शक्ति व इसकी महत्व से पूर्व ग्रह की आलोचना हो रही थी।
चुनौती देने वालों ने यथार्थवाद की आलोचना के साथ-साथ एक विकल्प धारणा प्रस्तुत की। क्षेत्रीय एकीकरण अंतरराष्ट्रीयवाद अन्योंन्याश्रय कई उप राज्य बहुलवादी प्रणाली के संदर्भ में गए, जिन्होंने राज्य एक जटिल छवि बनाई। जिन्होंने ज्यादातर जटिल छवि बनाई यह एक बहुलवादी परिप्रेक्ष्य नौकरशाही न्याय समूह व्यक्तियों के नेटवर्क में घटित हुआ। कोई भी निगम आसानी से नहीं सफल हो सकता था महत्वपूर्ण यह है कि यथार्थवाद और बहुलवाद दोनों ही अपने दृष्टिकोण से खुद को सही साबित करते हैं।
थॉमस कोहेन उन्होंने ऐसे प्रतिमानों की सहायता की यथार्थवाद एवं बहुलवाद में ऐसे असंगत प्रतिक्रिया दिखाई देते हैं। एक तीसरा प्रतिमान (मार्क्सवाद) जब साम्राज्यवाद के सिद्धांतों की जोरदार चर्चा की गई। अंतरराष्ट्रीय संबंध यह एक त्रिकोणीय बहस उत्पन्न करता था। तीनों की मुख्य विशेषताओं को रोजेनाओ विश्लेषण करते हैं:
यथार्थवाद के लिए राज्य प्रमुख है तथा गैर-राज्य, उप राज्य (नौकरशाही), सर्वोच्च राज्य (शासन) यह सभी उदारवाद के लिए प्रमुख कार्य करता है। अंततः मार्क्सवाद के लिए यही तर्क ब्रिटेन में बहुलवाद, उदारवाद का तथा संरचनावाद, मार्क्सवाद का नेतृत्व करता है। बहुलवाद इसलिए क्योंकि बहुत से राज्य उदारवाद से राजनीति विज्ञान से जुड़े हैं। मार्क्सवाद के अनुसार संरचनावाद इसलिए क्योंकि संपूर्ण तंत्र बहुत अधिक संगठित और व्यवस्थित है। अन्य दो की अपेक्षा रोजेनाओ के अनुसार यह तंत्र यथार्थवादियों से खंडित, बहुलवादियों पर निर्भर है और मार्क्सवादियों के अनुसार एकीकृत है।
एक अन्य तरीके से इसके अंतर दर्शा सकते हैं कि यथार्थवादियों का मुख्य ध्यान राज्य व उसके राजनीतिक संबंधों से है। उदारवादियों का मानना है कि अन्य सभी क्षेत्रों की अंतर क्रियाओं का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय संबंध पर पड़ता है। गैर राजनीतिक संबंधों में राज्य व संघर्ष के इस राजनीतिक व्यवस्था को बदल दिया। मार्क्सवादियों राजनीतिक विरोधाभाषी दृष्टिकोण है। और यह हितों का टकराव है पर यह सहयोग के बीच नहीं बल्कि राज्यों में कम उत्पीड़न व दबे-कुचले लोगों को लेकर है।
उग्रवादी व उदारवादी दोनों साम्राज्य उन्मुख उदारवाद के विपरित शक्ति व संघर्ष की भूमिका को स्वीकार करते हैं। और निश्चित रूप से ही उग्रवादी, यथार्थवादी, एवं उदारवादी एक दूसरे के सापेक्ष क्रांतिकारी परिवर्तन का विरोध करते हैं और एक त्रिभुजाकार आकृति ले लेते हैं जो कि अस्थिर है।
यह बात स्पष्ट है कि इन तीनों में विभिन्नता भी है। यथार्थवाद का मानना है अंतरराष्ट्रीय संबंध में मूलभूत परिवर्तन प्रतीत नहीं होते। उदारवादियों को यह विश्वास करना कठिन है कि लगभग सभी चीजों के त्वरित परिवर्तन अंतरराष्ट्रीय संबंध द्वारा चिन्हित युग में विकास प्रगति से अछूता रहना चाहिए। और कट्टरपंथी मानते हैं कि अगर सब कुछ अलग था तो सब कुछ अलग हो सकता है।
अर्थात बुनियादी क्रांतिकारी परिवर्तन होना चाहिए। मार्क्सवादियों के लिए यह उत्पादन संबंधों में एक क्रांति है लेकिन अन्य संस्करणों में यह राज्य को समाप्त करने की ओर होता है। शब्दावली के रूप में प्रथम सहमति पर इसे यथार्थवाद दूसरे को बहुलवाद राजनीतिक विज्ञान में राज्य व उसकी इकाइयों को अलग करने में उदारवाद, वैश्विकवाद या विश्व समाज है। अन्य कुछ संरचनावाद को महत्व देते हैं जो कि इस बात पर महत्व देता है कि प्रणाली ना तो अराजक है और ना ही समान है।
एक अन्य नाम मार्क्सवाद का है।जेम्स रोजेनाओ ने 70 के दशक में राज्य केंद्रित, बहुकेंद्रित व वैश्विक केंद्रित बहस को ठीक ढंग से समझा। Alker और Biersteker ने एक व्यापक अवलोकन में त्रिभुज के तरीके से तीन राजनीतिक दृष्टिकोण (कंजरवेटिव, लिबरलिज्म, इंटरनेशनलिस्म एवं रेडिकल मार्क्सिस्ट) जोकि तीन पद्धतिवादी दृष्टिकोणओं के साथ संयुक्त थे। कई लेखक चौथे और पांचवें को भी जोड़ते हैं।