भारतीय राज्य का उदय पूर्व औपनिवेशिक राज्य से आधुनिक राज्य तक | थॉमस पैंथम

भारतीय राष्ट्र राज्य के विकास को मुख्यतः दो विचारको के माध्यम से समझा जा सकता है। थॉमस पैंथम और सुदिप्ता कविराज दोनों विचारक सिद्धांत व  विचार तथा विचारधारा व अभ्यास के आधार पर अपने अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं।

भारतीय राज्य का उदय पूर्व औपनिवेशिक राज्य से आधुनिक राज्य तक

थॉमस पैनथम के अनुसार भारतीय राष्ट्र राज्य की प्रक्रिया का प्रारंभ सामान्यता 1947 (स्वतंत्रता पश्चात) के बाद प्रारंभ हुई। भारतीय राजनीतिक सत्ता अपने औपनिवेशिक शासकों (ब्रिटिश राज्य) से स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं के हाथों में परिवर्तित हुई। सत्ता के इस हस्तांतरण में राजनीतिक पहचान और राजनीतिक संस्कृति का भी व्यापक रूप से परिवर्तन हुआ। औपनिवेशिक शासन में भारतीय नैतिक संस्कृति और परंपराओं की राजनीतिक संस्कृति निरंतरता को भी दबा दिया गया जिसे पुनः जीवित करने का प्रयास किया गया।

थॉमस पैंथम पूर्व औपनिवेशिक राज्य में राज्य के विकास को तीन चरणों में विभाजित करते हैं-

  • मौर्य साम्राज्य( अशोक)
  • गुप्त साम्राज्य( समुद्रगुप्त द्वितीय)
  • मुगल साम्राज्य( अकबर)

भारतीय पूर्व औपनिवेशिक इतिहास में “पैन इंडियन स्टेट” शासन की अपेक्षा अपवाद था। ग्रामीण समुदाय के स्तर पर शक्ति की संरचना परिवर्तित होती रहती थी यह उनके एक दूसरे के संबंधों पर निर्भर करती थी। जाति, क्षेत्र और परिवार के प्रति निष्ठा हमें अंग्रेजी राज्य के समय भी दिखाई पड़ती है और यह पैन इंडियन विजन हमें अशोक चंद्रगुप्त और अकबर के समय भी दिखाई पड़ती है।

भारतीय इतिहासिक परिपेक्ष में ब्राह्मण की सर्वोच्चता और संप्रभुता के दर्शन होते हैं तथा एक धर्म के अनुसार ही संचालित होते हैं तथा राजा का काम वर्ण व्यवस्था को बनाए रखना था। क्षत्रियों का काम नौकरशाही, पुलिस और आर्मी के रूप में थी जो राजस्व और मंदिरों के देखभाल के लिए प्रयोग होता था। उनके कर्तव्यों को राजधर्म के रूप में प्रयोग किया जाता था।

मौर्य साम्राज्य

पैन इंडिया स्टेट का मौर्य काल में ही विकास हुआ। ब्राहमणिक सर्वोच्चता को प्राकृतिक माना गया था। राज्य का राजनीतिक संस्था के रूप में विकास नहीं हुआ था। राजनीतिक और सामाजिक, धार्मिक स्प्रिट को स्वायत्तता प्रदान की गई। इस प्रकार के परिवर्तन बुद्धऔर जैन के विधर्मीक आंदोलन से प्रारंभ होता है। 

दूसरा परिवर्तन कौटिल्य के अर्थशास्त्र से होता है। रोमिला थापर के अनुसार भारतीय सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन जैनिज्म और बुद्धिज्म के माध्यम से प्रारंभ होता है। आर्थिक परिवर्तन बौद्ध व्यापारिक की अपेक्षा धार्मिकता के रास्ते से धनार्जन का समर्थन करते हैं इसके लिए वे बुद्धिस्ट शंघाई को उचित मानते थे।

Luise Fernond के अनुसार ब्राह्मण सर्वोच्चता का सामाजिक पदानुक्रम में परिवर्तन हो गया बुद्धिज्म राजनीतिक जीवन का गणतंत्रीय दृष्टिकोण एवं राज्य का समझौतावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। मौर्य के समय बौद्ध एक धार्मिक आस्था का विषय नहीं था। यह एक सामाजिक एवं बौद्धिक आंदोलन के रूप में था जो समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता था।

गुप्त काल

गुप्त काल में शासन संचालन कौटिल्य के राज्य के सिद्धांत के आधार पर होता था। जो कि अर्थशास्त्र में वर्णित है कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार अराजकता का खतरा या तो पुनर्निर्माण या तो व्यक्तिवाद में निरंकुश राजा में नहीं पाया जाता है। राजनीतिक और सामाजिक स्वायत्तता विद्यमान थी। बी आर मेहता के अनुसार ब्राह्मणीक सिद्धांत, धर्मशास्त्र और शांतिपर्व में सर्वोच्चता ब्राह्मणों को प्राप्त थी परंतु जब हम कौटिल्य पर आते हैं यहां राजा को अंतिम शक्ति प्राप्त थी। धर्म लोगों का व्यक्तिगत मामला हो गया राजा के पास विधायी, न्यायिक व कार्यकारी शक्तियों के संदर्भ में संप्रभुता पाई जाती थी।

चंद्रगुप्त, बिंदुसार और अशोक के समय में सर्वप्रथम केंद्रीकृत मजबूत भारतीय राज्य का निर्माण हुआ। रोमिला थापर राज्य को गुप्तकालीन प्रदर्शित करने के लिए मॉडल सिद्धांत और चक्र को महत्वपूर्ण मानते हैं जो कि Hub of  power थे।

चक्र – केंद्र से निम्न स्तर तक शक्ति विभाजन को प्रदर्शित करता है।

मंडल सिद्धांत –  राज्य और उसके चारों तरफ के संबंधों को प्रदर्शित करता है।

मौर्य काल में, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक मतभेद विद्वान थे तथा बुद्धिज्म एवं जैनिज्म में मतभेद थे इसीलिए नैतिकता के आधार पर सम्राट अशोक ने अर्थशास्त्र के स्थान पर धम्म को पुनर्स्थापित किया। सामाजिक स्थिरता और एकता लाने के दृष्टि से धम्म सिद्धांत ने बहुत कम योगदान दिया।

पिरामिड खंडित राज्य

विकेंद्रित राज्य का स्वरूप – राजा सांस्कृतिक अनुष्ठानीक सर्वोच्चता के माध्यम से राजनीतिक सर्वोच्चता प्राप्त करता था। छोटे राजाओं के माध्यम से शासन किया जाता था। पल्लव और चोल के समय छोटे राजा या व्यापारियों के माध्यम से शासन किया जाता था केंद्रीकृत राजा के पास धार्मिक सर्वोच्चता एवं निम्न स्तर के राजाओं के पास राजनीतिक सर्वोच्चता होती थी।

मेट्रीमोनियल ब्यूरोक्रेटिक स्टेट – मुगल काल में अकबर के शासन के अंतर्गत प्री-मॉडर्न स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन परिणीति देखने को मिलता है। यहां पर केंद्रीकृत मनसबदारी के रूप में नौकरशाही व्यवस्था विद्यमान थी और इनमें पदसोपान भी विद्यमान था। साम्राज्य सभा ,सरकार ओर मण्डल में बटा हुआ था।  इन नौकरशाहों की राष्ट्र के प्रति देशभक्ति देखने को मिलता है।

उपनिवेशिक समय में राज्य

अंग्रेजी उपनिवेश राज्य ने भारत के पुराने राज्य के रूप  को खत्म कर दिया एवं यूरोपीय मॉडल के आधार पर शासन करना प्रारंभ किया। जो कि पूंजीवादी आधुनिकता से जुड़ा हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1619 में मुगल शासक जहांगीर के समय व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आई एवं 1857 की क्रांति के बाद भारत पर पूर्ण रूप से अपना शासन स्थापित कर लिया।

1765 में दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बंगाल में वसूली जाती थी। सैन्य विद्रोह को दीवानी के माध्यम से नियंत्रित किया जाता था। 1784 पिट्स इंडिया एक्ट के  द्वारा कंपनी ने भारत पर अप्रत्यक्ष रूप से शासन करना प्रारंभ किया। 1858 में ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम विक्टोरिया द्वारा पास किया गया जिसमें भारतीय प्रभुसत्ता को अंग्रेजी क्राउन के अंतर्गत सुनिश्चित किया गया था।

कंपनी राज को भारतीय पूंजीपतियों और व्यापारियों की सहायता मिलती रहती थी।जो अधिक धन अर्जित करना चाहते थे। भारतीय औपनिवेशिक राज्य और आधुनिकता  दोनों एक साथ हुई थी। colonial state अपनी क्रियाओ के कारण pre-colonial state से अलग थे। जैसे – भारत शासन अधिनियम 1935,उस समय तक भारतीय राज्य में सड़कों, तकनीकों व रेल मार्गों का विकास हो चुका था। 

thomson & Garatt के अनुसार अंग्रेजों के यह कार्य भारतीय राज्य पर स्थाई संकेतों को छोड़ दिए हैं। ब्रिटिश राज्य military, teachnology, financial, resource, administration, bureaucratic rationality में सर्वोच्चता प्रदान थी।

इनका प्रमुख उद्देश्य भारतीय राज्य को पूंजीवादी साम्राज्यवादी राज्य में परिवर्तित करना था। तथा राज्यों को आंतरिक रुप में बांटना था  ताकि उत्पादों का विनियमन हो सके। ब्रिटिश सरकार ने सुल्तानों की पुश्तैनी को खत्म कर दिया तथा नागरिक सैन्य और नौकरशाही को आधुनिक विशेष सैन्य एवं तार्किक नौकरशाही में परिवर्तित कर दिया।

आधुनिकता एवं परंपराओं का मिलाजुला रूप देखने को मिलता है ब्रिटिश राज्य राजाओ एवं महाराजाओं की सर्वोच्चता पर अपनी आधुनिक सर्वोच्च या संप्रभुता चलाते थे। धर्म- सामाजिक स्थिरता एवं राज्य  वैधानिकता के लिए कंपनी राज ने जाति पदानुक्रम पर इस्लामिक शरिया के कानून का पालन किया था। सिल्वर बेस रुपए एक्सचेंज के बजाय गोल्ड बेस एक्सचेंज की शुरुआत हुई। अभिव्यक्ति की आजादी नहीं थी अंग्रेजी शिक्षा को प्रारंभ किया तथा कॉलोनियल स्टेट से हमें संसदीय लोकतांत्रिक सरकार विरासत में मिली थी।

भारतीय राष्ट्र राज्य- आधुनिकता के संदर्भ में

  • प्रजातांत्रिक
  • धर्मनिरपेक्ष
  • विकासात्मक 

ब्रिटिश राज्य द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के चलते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन उभरा और ब्रिटिश राज्य से शासन अपने हाथों में लेने में सफल हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी के रूप में सामने आई जो उपनिवेशिक राज्य की मनमानी और निरंकुश शक्तियों के विरोध में जन्मी थी।

भारतीय राष्ट्र राज्य का भविष्य महात्मा गांधी द्वारा तैयार किया गया था। किसी के साथ  लिंग, भाषा, जाति अथवा क्षेत्र के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, सभी को समान नागरिकता प्राप्त होगी।

रजनी कोठारी के अनुसार यह राज्य सभी के साथ समानता के सिद्धांत से प्रेरित था। यहां पर सभी नागरिक भारतीय थे चाहे वे उस समय कुछ और भी रहे हो जैसे बंगाली पंजाबी आदि।

भीकू पारेख के अनुसार भारतीय राष्ट्र राज्य व्यक्तियों ओर समुदाय दोनों की ही संस्था है। जिसमें व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों को अधिकार दिए गए हैं।

  1. अपराधिक कानून-  व्यक्तियों के लिए
  2. नागरिक कानून-  समुदाय के लिए

उनका मानना था कि यह सब केवल एक प्रजातांत्रिक, पंथनिरपेक्ष और संघात्मक राज्य में ही हो सकते हैं।

पंथनिरपेक्षता

स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत और पाकिस्तान दो राष्ट्रों की मांग जोर पकड़ने लगी तथा भारत-पाक विभाजन भी हो गया। मुस्लिम लीग ने अल्पसंख्यकों के आधार पर अलग राष्ट्र बनाने की मांग की भारतीय मुसलमानों को एक राष्ट्रीय राजनीतिक पहचान प्राप्त हुई। यह बंटवारा आधुनिक धार्मिक राजनीतिक विचारधारा के कारण हुआ जिसका जिक्र जिन्ना और मुस्लिम लीग किया करते थे। पाकिस्तान सभी मुस्लिमों के लिए नहीं बनाया गया था अपितु इसका निर्माण पंजाब और बंगाल के मुस्लिम बाहुल्य लोगों के लिए किया गया था। इसके निर्माण के पश्चात 60 लाख लोग पाकिस्तान में रहते थे जबकि 40 मिलियन लोग भारत में रहते थे। अतः भारत में पंथनिरपेक्षता और विविधता का विचार कम नहीं हुआ।

भारतीय संविधान में सभी के साथ समानता का विचार प्रस्तुत किया गया है तथा किसी के साथ भी आसमानता का व्यवहार करने पर दंड का भी प्रावधान किया गया है 1973 में सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने स्वीकार किया कि पंथनिरपेक्षता भारतीय संविधान का मूल आधार है और 1976 में संवैधानिक संशोधन द्वारा इसको संविधान का अंग बनाया गया।

यह भी पढ़ें:-भारतीय राज्य का उदय (भाग-2), सुदीप्त कविराज के विचार

1980 के दशक में राष्ट्र राज्य का विचार धार्मिक बहुसंख्यक राष्ट्रवाद के रूप में परिवर्तित हो गया क्योंकि राज्य के विकास की विचारधारा समाजवाद से उदारवाद की ओर अग्रसर हुई। पार्थ चटर्जी के अनुसार राज्य की शक्ति के लिए एक केंद्रीकृत राजनीतिक नेता, भारतीय राज्य निर्माताओं द्वारा बनाना द्विराष्ट्र सिद्धांत की ओर ले जाता है।केंद्रीकृत राज्य के कारण-  नेहरू और पटेल द्वारा केंद्रीकृत राज्य की सत्ता को स्वीकार किया गया

  • क्योंकि विभाजन का आधार हिंदू-मुस्लिम था, 
  • शरणार्थियों को पनाह देने के लिए, 
  • रियासतों को एक करने के लिए,
  • विनियोजित अर्थव्यवस्था और औद्योगीकरण के विकास के लिए,

औपनिवेशिक राज्य से निम्न व्यवस्थाओं को स्वीकार किया गया-

  1. इंस्टिट्यूशन ( प्रेसिडेंट)  को प्रभुत्व संपन्न राज्य का दर्जा
  2. नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करना
  3. संघात्मक राज्य का विचार
  4. नए स्वतंत्र राष्ट्र राज्य में-
  5. राष्ट्रीय संप्रभुता
  6. एकता
  7. आर्थिक विकास को बढ़ावा
  8. और सामाजिक न्याय की नीतियों को अलग से स्वीकार किया गया।

पार्थ चटर्जी के अनुसार विकास की विचारधारा खुद भारतीय द्वारा लागू की गई। राज्य लोगों से प्रतिनिधित्व के रूप में नहीं अपितु आर्थिक विकास के रूप में लोगों से जुड़ा हुआ था। नेहरू द्वारा मिश्रित अर्थव्यवस्था का चयन किया गया जिसमें-

  • Economic development
  • Industrialization
  • Public sector responsible for development
  • Public private partnership
  • Technology expert people
  • Free bureaucracy

नेहरू का मानना था कि वह एक ऐसे उत्तर औपनिवेशिक राज्य का निर्माण कर रहे हैं जो पंथनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक, अर्थव्यवस्था और सामाजिकता के आधार पर स्व-विकास के मार्ग पर अग्रसर है। प्रभुसत्ता और एकता को बनाए रखना, लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता नेहरूवियन राज्य की महान उपलब्धियां रही है।

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