अधिकारों की तीन पीड़ियाँ

अधिकारों की तीन पीढ़ियाँ | Three Generations of Rights


 ‘अधिकारों की तीन पीढ़िया’ शब्दावली का प्रयोग मानव अधिकारों के संदर्भ में किया जाता है। मानव अधिकारों का तीन पीढ़ियों में वर्गीकरण का विचार सबसे पहले 1979 में फ्रांस के एक कानूनवेत्ता कारेल वसाकं द्वारा मानव अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान (International Institute For Human Rights) में प्रस्तावित किया गया. था। उसके इस वर्गीकरण का आधार था फ्रांस की क्रांति के समय का नारा ‘स्वतन्त्रता, समानता, भाईचारा’। ये तीन पीढ़ियां संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार’. घोषणापत्र एवम् यूरोपीय यूनियन के मौलिक अधिकारों के चार्टर में प्रतिबिम्बित होती हैं।

अधिकारों की तीन पीढ़ियाँ
अधिकारों की तीन पीढ़ियाँ

मानव अधिकारों की प्रथम पीढ़ी का सम्बन्ध नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों से है और इनका उद्देश्य मूलत: व्यक्ति को राज्य की ज्यादतियों से बचाना है। प्रथम पीढ़ी के अधिकार नागरिक एवम् राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में प्रदान किये गये हैं। इनमें से कुछ मुख्य अधिकार हैं : जीवन का अधिकार, व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवम् सुरक्षा, दासता तथा पराधीनता से मुक्ति, कानून के समक्ष समानता तथा समान संरक्षण, अपराध सिद्ध होने तक निर्दोष बने रहने का अधिकार, आवागमन, चिन्तन, अन्तःकरण, धर्म, मत तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, समुदाय बनाने. तथा इकट्ठे होने का अधिकार, व्यस्क मताधिकार पर आधारित चुनावों में हिस्सा लेने का अधिकार।

समग्र रूप से, इन्हें कई बार नकारात्मक अधिकार भी कहा जाता है, अर्थात्, ये राज्य के विरुद्ध. अधिकार है, राज्य का कर्तव्य है कि वह इनके उल्लंघन से परहेज करे। परन्त कछ लेखकों का . तर्क है कि यह अधिकारों की प्रकृति का अतिसरलीकरण है क्योंकि इन अधिकारों की रक्षा करना । राज्य का कर्तव्य है जिनके लिए जहां एक तरफ कार्यात्मक न्यायिक रचनातन्त्र की स्थापना आवश्यक है वहां दूसरी तरफ इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानूनों का निर्माण (जैसे जीवन का अधिकार) भी आवश्यक है। और फिर केवल कानूनों के निर्माण से ही काम नहीं चलता।

राज्य, को इन काननों को प्रभावकारी ढंग से लागू भी करना पड़ता है ताकि इन अधिकारों के उल्लंघनों को रोका जा सके तथा अपराधियों को सजा दी जा सके। संक्षेप में, जहां इन अधिकारों के उपयोग में राज्य का कर्त्तव्य है कि वह दर ही रहे. वहाँ परन्त साथ ही उसे यह भी आश्वस्त करना होता है कि सभी सत्तायें अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करें। इसमें मानव अधिकारों क उल्लवन का स्थिति में जांच पड़ताल करने के कर्त्तव्य भी शामिल हैं।

दूसरी पीढ़ी के मानव अधिकारों का सम्बन्ध समानता से है। इस प्रकार के अधिकारों के लिए दरवाजे 1917 में पूर्व सोवियत यूनियन ने खोले जब इसने अपने संविधान में कई सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों को निहित किया। इन्हें सकारात्मक अधिकार भी कहा जा सकता है क्योंकि इनसे सम्बन्धित सुविधायें प्रदान करना राज्य का कर्तव्य माना जाता है।

इन अधिकारों ने लोगों को इस तथ्य के प्रति सचेत किया कि राज्य का व्यक्तिगत अधिकारों में अहस्तक्षेप का सिद्धान्त अपने आप में पर्याप्त नहीं है, परन्तु समाज में लोगों के जीवन को शासत करने की व्यापक शक्ति · के परिणामस्वरूप, नागरिकों के कल्याण का ख्याल रखना भी राज्य का कर्तव्य है। दूसरी पीढ़ी के अधिकार मूलतः सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक अधिकार हैं। सामाजिक संदर्भ में ये अधिकार विभिन्न नागरिकों को समान व्यवहार एवम् परिस्थितियाँ प्रदान करने का आश्वासन देते हैं।

इन अधिकारों को सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में, निहित किया गया है। इनमें से कुछ अधिकार है सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम का, अधिकार, आराम तथा मनोरंजन का अधिकार, पर्याप्त. जीवन स्तर, शिक्षा, तथा समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार। इसमें यह भी स्वीकार किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसी सामाजिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था का अधिकार है जिसमें ये अधिकार तथा स्वतन्त्रतायें सम्भव हो सकती है।

तीसरी पीढ़ी के अधिकार अनिवार्यतः भाईचारे पर बल देते हैं। इन्हें एकात्मकता (Solidarity) अथवा ‘भाईचारे’ (fraternity) के अधिकार भी कहा जाता है। तृतीय पीढ़ी के मानवीय अधिकार अभी आधिकारिक नहीं हैं। इनमें कई तरीके. के अधिकार निहित किये गये है जैसे समूह अधिकार या सामूहिक अधिकार, आत्म-निश्चय का अधिकार, आर्थिक तथा सामाजिक विकास का अधिकार, स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार सम्प्रेक्षण का अधिकार, सांस्कृतिक विरासत में भाग लेने का अधिकार, अन्तर-पीढ़ीय समता तथा सम्पोषण का अधिकार।

इनमें से कुछ अधिकारों का नागरिक तथा राजनीति अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में संक्षिप्त वर्णन किया गया है, परन्तु ये प्रवधान एक प्रकार के अपवाद है क्योंकि इसमें सभी अधिकारों को व्यक्ति के अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है। अन्यथा, तृतीय पीढ़ी के अधिकारों को अभी कानूनी रूप से बाध्य. किसी मानव अधिकार प्रापत्र में सम्मिलित नहीं किया गया है। तृतीय पीढ़ी के अधिकारों में तीन प्रमुख अधिकार हैं-

(i) विकास का अधिकार,

(ii) शान्ति का अधिकार,

(iii) स्वच्छ/स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार

परन्तु इन तीनों अधिकारों में से विश्व स्तर पर बाध्य कोई भी कानूनी प्रापत्र पर आधारित नहीं है। क्षेत्रीय स्तर पर मानव तथा जन-अधिकारों का अफ्रीकी चार्टर में ये तीनों अधिकार सम्मिलित किये गये हैं| अनुच्छेद 22 (विकास का अधिकार) अनुच्छेद 23 (शांति तथा सुरक्षा का अधिकार) तथा अनु. 24 (सामान्य यथेष्ट विकास का अधिकार)।

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