नागरिक संस्कृति की अवधारणा | निर्धारक तत्व व महत्व

 नागरिक संस्कृति की अवधारणा

आज का युग लोकतन्त्रीय-कल्याणकारी राज्यों का युग है। लोकतन्त्र का उदारवादी स्वरूप आधुनिक लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषता जिससे बचने का जोखिम किसी भी राजनीतिक व्यवस्था को खतरे में डाल सकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि जनता की शासन-प्रक्रिया में अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित हो । आज जनसंचार के साधनों तथा बदलते विश्व परिवेश ने सभी देशों को इस बात के प्रति आगाह कर दिया है कि वे नागरिक संस्कृति से उदासीदन न रहें। आंग्ल-अमेरिकी व्यवस्था में कुछ सीमा तक नागरिक संस्कृति का ही प्रतिबिम्ब है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, जन-कल्याण, सुरक्षा आदि तत्व नागरिक संस्कृति के निर्माण का आधार हैं।

इस प्रकार की संस्कृति साध्यों और साधनों में मतैक्य स्थापित कर सकती है। जिन देशों में नागरिक अपने अधिकार व कर्तव्यों के प्रति जागरूक हैं, वहां इस प्रकार की संस्कृति का निर्माण आसानी से हो सकता है। इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति में भागीदारी और सहनशीलता का स्तर काफी ऊँचा होता है। इसमें निर्णयकारी संरचनाएं ही निर्णयों की प्रभावकारिता के लिए उत्तरदायी होती है।

इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति न तो शासक वर्ग को मनमानी करने की अनुमति देती है और न ही उस मनमानी को सहन किया जा सकता है। इस प्रकार की संस्कृति ब्रिटेन तथा अमेरिका में विकसित हो चुकी है और आज विश्व के अन्य देशों में भी इसके विकसित होने की आवश्यकता है।

नागरिक संस्कृति का अर्थ

साधारण अर्थों में उदारवादी लोकतन्त्र की स्थापना करने वाली राजनीतिक संस्कृति को नागरिक संस्कृति कहा जाता है। इस प्रकार की संस्कृति में संकुचित, पराधीन तथा सहभागी सभी राजनीतिक संस्कृतियों के लक्षण पाए जाते हैं। इसलिए इन तीनों के लक्षणों से युक्त संस्कृति ही नागरिक संस्कृति कहलाती है। ऑमण्ड तथा सिडनी वर्बा ने नागरिक संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा है-“उदार लोकतन्त्र को संभालने में उपयुक्त एवं लोकतन्त्रीय आस्थाओं को रखने व लोकतन्त्रीय मूल्यों का दिग्दर्शन कराने व उन्हें महता प्रदान करने वाली संस्कृति नागरिक संस्कृति कहलाती है।” 

नागरिक संस्कृति की व्याख्या

अनेक विद्वानों ने नागरिक संस्कृति पर अपना-अपना दष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि आज तेजी से परिवर्तनशील अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था एवं समाज में आवश्यकता इस बात की है कि एक आदर्श नागरिक संस्कृति का निर्माण किया जाए। उनका मानना है कि नागरिक संस्कृति शासन की क्षमता एवं राजनीतिक प्रक्रिया में नागरिकों की सहभागिता के बीच सामंजस्य स्थापित करके ही निर्मित की जा सकती है।

इसकी स्थापना से नागरिकों में अधिकार व कर्तव्य बोध का ज्ञान होने के कारण उनकी राजनीतिक प्रक्रिया के प्रति उदासीनता व सक्रियता में सामंजस्य स्थापित हो सकता है। इसलिए इसकी स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को जनहित के मामलों में अधिक जागरूकता व सक्रियता बनाए रखनी चाहिए ताकि शासक वर्ग की निरंकुशता पर रोक लगाई जा सके व जनहित के प्रति राजनीतिक नेतत्व को उत्तरदायित्व से युक्त बनाया जा सके।

यद्यपि इसके निर्माण में कुछ बाधाओं का उत्पन्न होना भी स्वभाविक ही है। लेकिन लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में लोगों की समर्थ कार्य भावना और राष्ट्रीय निष्ठा के कारण इस पर काफी सीमा तक काबू पाया जा सकता है। इसके लोकतन्त्र में मतैक्य और मतभेद के बीच संतुलन पैदा किया जा सकता है, क्योंकि लोकतन्त्र में ऐसा सामंजस्य व संतुलन थोड़ी बहुत मात्रा में अवश्य पाया जाता है। इसकी स्थापना के लिए केवल इतना ही जरूरी है कि नागरिक समुदाय के राजनीतिक विचार और मूल्य, राजनीतिक समानता और सहभागिता के सिद्धान्तों के अनुकूल ही हों।

जनसहमति पर आधारित सरकार द्वारा जनहित में कार्य करके शासक और शासित में सामंजस्यपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना के ध्येय के द्वारा इस कार्य को आसान बनाया जा सकता है। इसकी स्थापना के साथ ही नागरिक शासन का जन्म होगा और सभी लोग नागरिक शासन में सहभागिता के उत्तरदायित्व का निर्वहन करेंगे और तानाशाही या बलात राज्य की बलात परिवर्तन द्वारा स्थिति क्षीण हो जाएगी तथा एक आदर्श नागरिक समाज की स्थापना होगी जो अपने पूर्ववर्ती समाजों से व्यापक आधार लिए हुए होगा जिसमें सभी की इच्छाओं का सम्मान किया जाएगा।

राजनीतिक संस्कृति के निर्धारिक तत्व

प्रत्येक देश की राजनीतिक संस्कृति अलग प्रकार की होती है। इसका प्रमुख कारण इसके निर्धारक तत्वों में मिलने वाला अन्तर होता है। राजनीतिक संस्कृति का सामान्य संस्कृति से भी घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। इसी कारण सामान्य संस्कृति के निर्धारक तत्व राजनीतिक संस्कृति को भी प्रभावित करते हैं। ये निर्धारक तत्व ही राजनीतिक संस्कृति की प्रकृति के नियामक होते हैं। ये तत्व निम्नलिखित हो सकते हैं :

(1) इतिहास (History) :- किसी भी राजनीतिक संस्कृति की जड़ें इतिहास के अन्दर गड़ी होती हैं। राजनीतिक व्यवस्था और संस्कृति अतीत से अपना राता कभी नहीं तोड़ सकती। साम्यवादी क्रान्तियां भी रूस और चीन में अतीत के अनुभवों को भुला नहीं सकी है। ब्रिटेन में अतीत व आधुनिकता का सुन्दर मेल है। वहां पर कुलीनतन्त्रीय आस्थाओं का लोकतन्त्रीय आस्थाएं के साथ हो सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।

ऑमण्ड–कोलमैन ने सभी राजनीतिक संस्कृतियों के मिश्रित होने की बात कही है, उसके पीछे मूल कारण राजनीतिक संस्कृतियों का परम्पराओं से जुड़ा रहना है। फ्रांस में 1789 की क्रान्ति के बाद अतीत से छुटकारा पाने का जो खतरा उठाया गया था, उसने 1958 तक फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था को अस्थिर बनाए रखा।

आज भारत की राजनीतिक संस्कृति पर 1857 की क्रान्ति तथा आगामी स्वतन्त्रता आन्दोलन व भारत-पाक विभाजन की घटनाओं का प्रभाव है। 1689 के बिल आफ राईटस तथा 1865 के गह युद्ध का ब्रिटेन और अमेरिका की राजसंस्कृति पर प्रभाव पड़ा है। इसी कारण कहा जाता है कि इतिहास जड़ है और राजनीति उसका फल। भारत, चीन तथा श्रीलंका की स्वाधीनता के समय में कम अन्तर होने के बाद भी इन देशों की राजनीतिक संस्कृतियों में काफी अन्तर है। इसका प्रमुख कारण ऐतिहासिक घटनाओं में पाया जाने वाला अन्तर ही है। 

(2) भूगोल (Geography) :- भौगोलिक स्थिति भी किसी देश की राजनीतिक संस्कृति को प्रभावित करता है। राष्ट्र के अस्तित्व के लिए विभिन्नताओं में एकता का होना अनिवार्य होता है। भौगोलिक दष्टि से सुरक्षित व विकसित राष्ट्र छोटे-मोटे उत्पातों को आसानी से झेल लेते हैं।

एक द्वीप होने के कारण ब्रिटेन आज तक विदेशी आक्रमणों से सुरक्षित रहा है। पश्चिमी जर्मनी भी भौगोलिक दष्टि से रूस तथा अमेरिका के बीच स्थित होने के कारण दोनों के अन्तर्राष्ट्रीय गठबन्धनों के निर्देशन के कारण एक संघीय गणतन्त्र बना रहा।

यदि इस स्थिति में कोई भी परिवर्तन किया जाता तो उसका प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को खतरे में डाल सकता था। 1947 के बाद भारत व पाक की भौगोलिक दूरी ने भी दोनों देशों में अलग प्रकार की राज-संस्कृतियों को जन्म दिया । भौगोलिक दष्टि से सुरक्षित व सम्पन्न देशों की राजनीतिक संस्कृति अधिक उन्नत व विकासोन्मुखी रही है। नेपाल व भूटान की विशेष भौगोलिक स्थिति ने आज उन्हें विशिष्ट प्रकार की राजनीतिक संस्कृति दी है जो भारत व चीन से सर्वथा भिन्न है। 

(3) सामाजिक तथा आर्थिक विकास (Social and Economic Development):- राजनीतिक संस्कृति का विकास भी सामाजिक व आर्थिक विकास के सापेक्ष होता है। जिस देश में सामाजिक समरसता या एकता का गुण पाया जाता है, वहां की राजनीतिक संस्कृति भी प्रवाहमान व सहज होती है। वहां पर राजनीतिक अस्थिरता आना असम्भव होता है। इसी तरह आर्थिक विकास के पर्याप्त अवसर भी राजनीतिक व्यवस्था को सशक्त बनाकर राजनीतिक संस्कृति से अलग प्रकार की बनती है।

इसी तरह औद्योगिक समाज में संचार साधनों के विकास तथा शैक्षिक स्तर में वद्धि से गुटों व समूहों की नीति-निर्माण में सहभागिता बढ़ जाती है, जबकि कृषक समाज या ग्रामीण समाज राजनीति अभिमुखीकरण से दूर रहने के कारण अलग तरह की राजनीतिक संस्कृति को जन्म देता है। सामाजिक तथा आर्थिक विषमताओं वाला समाज उप-संस्कृतियों को जन्मदेकर राजनीतिक व्यवस्था तथा राजनीतिक संस्कृति दोनों के लिए संकट पैदा करता है। 

(4) विचारधाराएं (Ideologies):- राजनीतिक विचारधाराएं भी राजनीतिक संस्कृति को निर्धारित करने वाली होती हैं। विकासशील देशों में तो विचारधाराओं के अनुकूल राजनीतिक संस्कृति का निर्माण किया जाने लगा है। भारत में गांधी व नेहरु की विचारधारा का भी उतना ही प्रभाव है जितना सुभाष व तिलक की विचारधारा का। इसी कारण भारत की राजनीतिक संस्कृति में मिश्रितपन पाया जाता है।

जर्मनी मं नाजीवादी, चीन में साम्यवादी, इटली में फासीवादी, अमेरिका तथा ब्रिटेन में उदारवादी विचारधाराओं का वहां की राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। इटली व जर्मनी में आज भी राजनीतिक संस्कृति में फासीवादी व नाजीवादी तत्व परिलक्षित होते हैं। अतः विचारधारा भी राजनीतिक संस्कृति की प्रमुख निर्धारक हैं। 

(5) सामान्य संस्कृति (General Culture) :- राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति पर ही आधारित होती है। सामान्य संस्कृति राजनीतिक संस्कृति का प्रमुख नियामक तत्व माना जाता है। राजनीतिक संस्कृति को सामान्य संस्कृति से अलग नहीं किया जा सकता। सामान्य संस्कृति को ही राजनीतिक संस्कृति का मौलिक तथा स्थाई आधार माना जाता है।

विकासशील देशों में पैदा होने वाली राजनीतिक अस्थिरता का प्रमुख कारण राजनीतिक संस्कृति का सामान्य संस्कृति से अलगाव है। विकासशील देशों की राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति के लौकिकीकरण से दूर रहने के कारण ही विकसित देशों की राजनीतिक व्यवस्था के प्रति लोगों की राजनीतिक जागरूकता बढ़ाता है और राजनीतिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करता है। 

(6) राष्ट्रीय प्रतीक (National Symbols) :- जिस देश में लोगों का राष्ट्रीय प्रतीकों – राष्ट्रीय गान व गीत, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय त्यौहार, राष्ट्रीय स्मारक, राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय विरासत आदि के प्रति गहरा लगाव होगा, वहां की राजनीतिक संस्कृति भी उच्च-स्तरीय होगी। इससे राजनीतिक संस्कृति में एकता का गुण पैदा होगा जो राजनीतिक स्थिरता में सहायक होगा। इसके विपरीत जिस देश में राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान नहीं होगा, वहां की राजनीतिक संस्कृति निम्न कोटि की ही रहेगी।

जापान, जर्मनी, चीन, अमेरिका तथा ब्रिटेन में राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान के कारण ही वहां की राजनीतिक संस्कृति उन्नत किस्म की है। भारत में राष्ट्रीय प्रतीकों का अपेक्षित सम्मान न होने के कारण राजनीतिक संस्कृति का उतना विकास नहीं हो सका है जितना होना चाहिए था। 

(7) धर्म (Religion) :- जिस देश की राजनीति में धर्म का अधिक प्रभाव होता है, वहां की राजनीतिक संस्कृति में भी सहिष्णुता का गुण आ जाता है। वैटिकन सिटी, नेपाल व इस्लामिक देशों में धर्म का अधिक प्रभाव होने के कारण उसका राजनीतिक व राजनीतिक संस्कृति दोनों पर अधिक प्रभाव है। भारत में भी अहिंसा जैसे गुणों का राजनीतिक संस्कृति में प्रकटीकरण है। 

(8) राजनीतिक स्थिरता (Political Stability):- राजनीतिक स्थिरता के परिवेश में ही उन्नत प्रकार की राजनीतिक संस्कृति का निर्माण हो सकता है। विकासशील देशों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण ही यहां पर राजनीतिक संस्कृति अधिक उच्च कोटि की नहीं बन पाई है। राजनीतिक स्थिरता ही किसी राजनीतिक व्यवस्था व राजनीतिक संस्कृति दोनों को नई पहचान देती है। ऐप्टर का कहना है कि राजनीतिक संस्कृति में उच्च समरूपता राजनीतिक स्थायित्प के कारण ही होती है।”

तुलनात्मक राजनीति एवं राजनीतिक विश्लेषण इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजनीतिक संस्कृति के आधार को मजबूत बनाने वाले तथा राजनीतिक संस्कृति का निर्माण व निर्धारण करने वाले तत्व इतिहास, भूगोल, सामाजिक, आर्थिक विकास, धर्म, राजनीतिक स्थिरता, राष्ट्रीय प्रतीक, विचारधाराएं आदि हैं।

इसमें लोगों की अभिवतियों का भी विशेष स्थान होता है। लोगों का सक्रिय राजनीतिक अभिमुखीकरण ही राजनीतिक व्यवस्था तथा राजनीतिक संस्कृति दोनों को नया रूप देता है। सामान्य संस्कृति से अलग होकर राजनीतिक संस्कृति का वांछित विकास नहीं हो सकता। अतः निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि राजनीतिक संस्कृति के अनेक निर्धारक तत्व हैं जो राजनीतिक व्यवस्थाओं की प्रकृति का निर्धारण करते हैं। 

यह भी पढ़ें:- राजनीतिक संस्कृति पर विभिन्न विचारकों के विचार | अर्थ, संघटक, विशेषताएं, प्रकार

राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा का महत्व

आधुनिक समय में राजनीतिक संस्कति की अवधारणा राजनीति-विज्ञान की महत्वपर्ण अवधारणा मानी जाती है। राजनीतिक संस्कृति के आगमन से राजनीतिक समाजीकरण व राजनीतिक विकास की दिशा व गति का ज्ञान होने लगा है। इसके आगमन से तुलनात्मक अध्ययन में गति आई है। इसने राजनीति-विज्ञान का विषय क्षेत्र भी महान बना दिया है।

इससे राजनीतिक व्यवहार को समझना सरल हो गया है। इसके आगमन से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उत्पन्न राजनीतिक व्यवहार की जटिलताओं का अध्ययन करना आसान हुआ है। इसने राजनीति विज्ञान को औपचारिक संस्थाओं के जटिल अध्ययनों से मुक्ति दिलाई है। अब राजनीतिक व्यवहार को राजनीतिक संरचनाओं, प्रक्रियाओं एवं प्रकार्यों को उनकी अभिवत्तियों के सन्दर्भ में ही समझा जाने लगा है।

लूशियन पाई ने लिखा है-“हर विशिष्ट समाज में एक सीमित और सुस्पष्ट राजनीतिक संस्कृति होती है जो राजनीतिक प्रक्रिया को अर्थ, भविष्यवाणी और ढांचा प्रदान करती है।” राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने भी राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन को ही प्राथमिकता देना शुरु कर दिया है। राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन ने राजनीतिक व्यवहार की वास्तविकताओं को पहचान कर तुलनात्मक अध्ययन की नई दिशा दी है।

अब राजनीतिक व्यवहार के गत्यात्मक तत्वों की पहचान आसान हो गई है और उनको सामान्यीकरण के निकट ले जाना सरल हो गया है। मैक्स वेबर, मैनहाम, पाई ऑमण्ड, वर्बा, लर्नर, मोर्टन, रजनी कोठारी आदि विद्वानों ने राजनीतिक संस्कृति पर आनुभाविक अध्ययन करके जो उपयोगी निष्कर्ष निकाले हैं, उनसे इस अवधारणा का महत्व काफी बढ़ गया है।

अतः निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उत्पन्न राजनीतिक व्यवहार की पेचिदगियों को समझने में जितनी सहायम यह अवधारणा हुई है, उतनी अन्य कोई नहीं। अतः राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा राजनीति विज्ञान में तुलनात्मक अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण व उपयोगी अवधारणा है।

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