सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य | प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्राधिकार, व रिट
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां
संघात्मक संविधान में संघात्मक न्यायालय का विशेष स्थान प्राप्त होता है ताकि संतुलन कायम किया जा सके और संविधान की सर्वोच्च और केन्द्र तथा इकाइयों को अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्तता (Autonomy) कायम की जा सके।
किसी किसी ऐसे न्यायलय की आवश्यकता होती है जोकि संविधान की व्याख्या कर सके, केन्द्र और राज्यों के झगड़े को या राज्यों के आपसी झगड़ों को निपटा सके। नहीं तो एक दूसरे के अधिकारों में हस्तक्षेप और वाद-विवाद उत्पन्न हो जाएंगे। संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है ताकि सरकार उनको छीन न ले। इसको सुरक्षित रखने के लिए संविधान ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय को बहुत-सी शक्तियां प्रदान की हैं।
कुछ लेखक तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अमेरीका के सर्वोच्च न्यायालय से भी अधिक शक्तिशाली बताते हैं। श्री अल्लादी कष्णा स्वामी अय्यर का कहना है, “भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संसार के किसी भी अन्य सर्वोच्च न्यायालय से अधिक क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं, संयक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से भी अधिक । (The Supreme Court of India has wider jurisdiction that the highest Court in any Federation of the world including the Supreme Court of U.S.A.) भारत के न्यायालय को वास्तव में बहुत सी शक्तियाँ दी गई हैं, जिनका पता निम्नलिखित बातों से चलता है :
1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
सर्वोच्च न्यायालय को कुछ मुकद्दमों में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं। अर्थात कुछ ऐसे मुकद्दमें हैं जो सीधे सर्वोच्च न्यायालय के पास ले जाए जा सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे सभी झगड़ों में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा, जिनमें
- झगड़ा केन्द्रीय सरकार और एक या अधिक राज्य के बीच हों।
- दो या अधिक राज्यों में आपस में विवाद हो या झगड़ों में कोई कानूनी प्रश्न हो जिस पर कोई कानूनी अधिकार निर्भर हो।
इस अधिकार से सर्वोच्च न्यायालय संघ और राज्यों में सन्तुलन पैदा कर सकता है। उपरिलिखित प्रकार के मुकद्दमे भारत के किसी अन्य न्यायालय में नहीं ले जाए जा सकते।
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार
सर्वोच्च नयायालय के तीन प्रकार के अपीलीय क्षेत्राधिकारी है:
(i) संवैधानिक क्षेत्राधिकार (Constitutional Jurisdiction)- संवैधानिक मामलों में यह न्यायालय तब ही अपील सुन सकेगा जब उच्च न्यायालय यह प्रमाण पत्र दे दे कि मुकद्दमें में कोई कानूनी प्रश्न विचारणीय है। यदि वह ऐसा प्रमाण पत्र देने से इंकार कर देतो सर्वोच्च न्यायालय स्वयं अपील के लिए विशेष स्वीकृति दे सकता है।
(ii) दीवानी क्षेत्राधिकार (Civil Jurisdiction)- दीवानी मुकद्दमें में यह न्यायालय उच्च न्यायालय के किसी फैसले या अन्तिम आदेश के विरुद्ध अपील सुन सकता है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाण-पत्र दे दे कि मुकद्दमें में 20,000 या इससे अधिक मूल्य की सम्पत्ति का प्रश्न विवादग्रस्त है।
परन्तु संविधान के 30 वें संशोधन द्वारा 20,000 रूपए की राशि की शर्त हटा दी गई है। अब किसी भी राशि का मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायालय के पास आ सकता हैं जब उच्च न्यायालय यह प्रमाण-पत्र दे दे कि मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायालय के सुनने के योग्य है।
(iii) फौजदारी क्षेत्राधिकार (Criminal Jurisdiction)- निम्नलिखित फौजदारी मुकद्दमों में ये अपीलें सुन सकेगाः
(क) यदि अपील करने पर उच्च न्यायालय अपराधी की रिहाई के फैसले को बदल दे और उसे मत्यु दण्ड दे दे, तो यह दूसरी अपील का मुकद्दमा होगा।
(ख) यदि किसी मुकद्दमें को उच्च न्यायालय ने अपने पास ले लिया हो और उसने किसी अपराधी को मौत का दण्ड दिया हो।
(ग) यदि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार यह प्रमाण-पत्र दे दे कि मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुने जाने के योग्य है। परन्तु 134 वें अनुच्छेद के अनुसार अपील की कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि यदि उच्च न्यायालय अपराधी को फौजदारी मुकद्दमें में छोड़ने का आदेश जारी कर दे तो उसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील हो।
संविधान ने संसद को अधिकार दिया है कि वह कानून द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फौजदारी मामलों में अपीलीय क्षेत्राधिकारी को बढ़ा सकती है।
(3) मौलिक अधिकारों के विषय में क्षेत्राधिकार
यह न्यायालय स्वतन्त्रताओं और मौलिक अधिकारों का रक्षक है। 32 वें अनुच्छेद के अनुसार इसे यह शक्ति दी गई है कि यह आदेश या लेख जैस:-
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habesa Corpus)
- परमादेश (Mandamus)
- प्रतिषेध (Prohibition)
- अधिकार पच्छा (Qua-Warranto)
- उत्प्रेषण लेख (Certiorari)
मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की सहायता लेने के अधिकार को राष्ट्रपति स्थागित कर सकता है।
(4) परामर्श शक्तियां
143वें अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि किसी भी सार्वजनिक महत्व के विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श कर सकता है; परन्तु इस अनुच्छेद के अनुसार इस न्यायालय के लिए जरूरी है कि वह अपनी राय अवश्य दे और न ही राष्ट्रपति के लिए जरूरी है कि वह इसके परामर्श के अनुसार चले। यह परामर्श कोई निर्णय नहीं होता।
(5) अपने निर्णय के पुर्निरीक्षण का अधिकार
चाहे सर्वोच्च न्यायालय के जज उच्चकोटि के विधिवेत्ता हैं तथा सर्वोच्च न्यायालय में निर्णय करते समय छान–बीन करते है फिर भी उनसे कभी न कभी हो सकती है। इसलिए उनको अपने निर्णय तथा आदेशों का पर्निरीक्षण करने का अधिकार दिया गया है। इसके द्वारा उनसे किए गए गलत निर्णय भी संशोधित किए जा सकते है। सर्वोच्च न्यायालय का यह अधिकार दिया गया है क्योंकि देश में इससे बड़ा कोई न्यायालय नहीं जिसमें इसके विरुद्ध अपील हो सके।
उदाहरणस्वरूप सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य के मुकद्दमें में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। परन्तु 1967 में गोलकनाथ मुकद्दमें में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती। 1973 में केशवानंद भारती मुकद्दमें में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है।
6. एक अभिलेख न्यायालय
संविधान की धारा 129 द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को एक अभिलेख न्यायालय भी माना गया है। इसकी समस्त कार्यवाही तथा निर्णय सदैव के लिए यादगार तथा प्रमाण के रूप में प्रकाशित किए जाते है तथा देश के समस्त न्यायालयों के लिए यह निर्णय न्यायिक दष्टांत (Judicial Precedents) के रूप में स्वीकार किये जाते हैं।
इन अभिलेखों का इतना महत्त्व होता है कि इनकी पवित्रता पर उंगली नहीं उठाई जा सकती तथा न ही देश के अन्य न्यायालय इन अभिलेखों के विरुद्ध जा सकते है; जब किसी न्यायालय को कानून द्वारा अभिलेख न्यायालय बना दिया जाता है तब ऐसे न्यायालय को न्यायालय के अपमान (Contempt of Court) का दण्ड देने का अधिकार मिल जाता है तथा इस अधिकार को संविधान द्वारा स्वीकति मिली है।
7. सर्वोच्च न्यायालय को न्यायालयों की कार्यवाही तथा कार्यविधि का नियमित करने के लिए नियमों का निर्णय करने की शक्ति
(Power to frame rules to regulate the activities of the Courts)
सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 145 द्वारा न्यायालय की कार्यवाही तथा कार्यविधियों को नियमित करने के लिए समय-समय पर नियमों का निर्माण करने की शक्ति दी गई है। 42 वें संशोधन द्वारा इस अनुच्छेद में एक नई उपधारा सम्मिलित की गई है। इस नई उपधारा के अधीन सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेदों 131ए तथा 138ए के अधीन की जाने वाली कार्यवाहियों को नियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति दी जाती है।
8. मुकद्दमें को स्थानान्तरित करने की शक्ति
42वें संशोधन 1976 के द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 139ए सम्मिलित किया गया है। इसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय शीघ्र न्याय दिलाने के उद्देश्य से किसी मुकद्दमें को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में भेज सकता है।
महान्यायवादी (Attorney General) को अधिकार दिया गया है कि यदि यह उचित समझे कि किसी उच्च न्यायालय में सार्वजनिक हित से सम्बन्धित कोई मामला लम्बित है और उसमें कोई महत्त्वपूर्ण कानूनी मुकद्दमा निहित है तो वह सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना करसकता है उस मामले को उच्च न्यायालय से मंगवा कर सर्वोच्च न्यायालय में निपटाया जाए।
9. संविधान की व्याख्या तथा रक्षा
संविधान की व्याख्या तथा रक्षा करना भी सर्वोच्च न्यायालय का कार्य है। जब कभी भी संविधान की व्याख्या के बारे में कोई मतभेद उत्पन्न हो तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्याख्या की जाती है और सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या को अन्तिम तथा सर्वोत्तम माना जाता है। अनुच्छेद 141 के अनुसार, “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित किया गया कानून भारत के क्षेत्र में स्थित सभी न्यायालयों पर बाध्य होगा।” (The Law declared by Supreme Court shall be binding on all Courts within the territory of India.) केवल संविधान की व्याख्या करना ही नहीं बल्कि इसकी रक्षा करनी भी सर्वोच्च न्यायालय का कार्य है।
यदि सर्वोच्च न्यायालय को यह विश्वास हो जाए कि संसद द्वारा बनाया गया कानून या कार्यपालिका का आदेश संविधान का उल्लंघन करता है, तो वह उस कानून या आदेश को असंवैधानिक घोषित करके रद्द कर सकता है। संविधान देश की सर्वोच्च विधि है और उसकी रक्षा करना सर्वोच्च न्यायालय का कर्तव्य है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई संविधान की व्याख्या अन्तिम होती है।
10. विविध कार्य
सर्वोच्च न्यायालय को निम्नलिखित कार्य भी करने पड़ते हैं :
1. सर्वोच्च न्यायालय अपना कार्य चलाने के लिए अपने पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है। यह नियुक्तियां वह
आप तथा संघीय लोक सेवा आयोग की सहायता से करता है।
2. उच्चतम न्यायालय देश के अन्य न्यायालयों पर शासन करता है। यह देखता है कि प्रत्येक न्यायालय में न्याय ठीक प्रकार से हो रहा है अथवा नहीं।
3. राष्ट्रपति अथवा उपराष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी यदि कोई मतभेद हो जाए तो उसका निर्णय उच्चतम न्यायालय करता है तथा इसका निर्णय अन्तिम होता है।
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