लोक प्रशासन का विकास

लोक प्रशासन का विकास (पाँच चरण)

एक शैक्षिक विषय के रूप में लोक प्रशासन के विकास का इतिहास तकरीबन 115 वर्ष पुराना है अपितु एक गतिविधि के रूप में लोक प्रशासन उतना ही पुराना है जितनी की सभ्यता। प्रशासन की जड़ें प्राचीन ग्रंथ महाभारत या रामायण से लेकर कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मैक्यावली के “द प्रिंस” में दिखाई देती हैं। यह मुख्यता आधुनिक युग की उपज है। लोक प्रशासन के विकास की शुरुआत सन 1887 में विल्सन के “राजनीतिक प्रशासन “द्विभाजन की पुकार” से होता है। विल्सन पहले विचारक थे जिन्होंने प्रशासन को राजनीति से बिल्कुल अलग कर दिया। तब से लेकर आज तक लोक प्रशासन विकास के कई चरणों से गुजरा है।
 
लोक प्रशासन का विकास

Robert Golembiewski ने लोक प्रशासन के विकास को दो पदों के क्रमबद्ध माध्यम से विश्लेषण करने का प्रयास किया:- 

1.  लॉजिस – लोक प्रशासन को केवल राजनीतिक विज्ञान से ही जोड़कर नहीं देखना चाहिए बल्कि अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ भी जोड़ कर देखना चाहिए।

2.  फोजिस – लोक प्रशासन का स्थान कहां है व किन किन चीजों का अध्ययन करना चाहिए तथा लोक प्रशासन को प्रकाश प्रशासनीय और तकनीकी सिद्धांत तक सीमित होना चाहिए।

शासन के विकास के चरण:- 

प्रशासन राजनीति विवाद काल (1887 – 1926)

आतंकी विकास की प्रथम अवस्था को राजनीतिक प्रशासन द्विभाजन का चरण भी माना जाता है। इसे विलसोनिया पुकार भी कहा जाता है। वुड्रो विल्सन ने अपनी प्रति “द स्टडी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन” में कहते हैं कि प्रशासन एक स्वतंत्र विषय है और विज्ञान आधारित विषय है। विल्सन ने दक्षता और लाभ को बढ़ाने के लिए प्रशासन और राजनीति को अलग अलग बताया है। राजनीति का कार्य है कानून बनाना और प्रशासन का कार्य है कानूनों को लागू करना।

फ्रैंक गुडनाउ  ने अपनी कृति “पॉलिटिक्स एंड एडमिनिस्ट्रेशन” (1990) के अंतर्गत यह बात स्वीकार की है कि राजनीति और प्रशासन अलग-अलग हैं। उन्होंने यह तर्क दिया कि राजनीति वास्तव में राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति करता है तथा प्रशासन की राजनीति यों के क्रियान्वयन को प्रदर्शित करता है।

एल डी  वाइट  ने 1926 में अपनी कृति  “इंट्रोडक्शन ऑफ स्टडी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन”  ने दो मुख्य बिंदुओं पर बात की है:- 

1.  राजनीति को प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

2.  प्रशासन को वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होना चाहिए। प्रशासन में भी क्षमता है जिससे कि प्रशासन मूल्य मुक्त विषय बन सकता है।

सिद्धांत निर्माण काल ( 1927-1937)

प्रशासन के विकास की द्वितीय अवस्था में पर्याप्त सिद्धांत विकास हुआ। विलोबि  ने लोक प्रशासन को एक नई ऊंचाई पर देखने का प्रयास किया इनमें से कुछ बिंदु निम्न है:- 

1.  कुछ निश्चित वैज्ञानिक प्रशासकीय सिद्धांत पाए जाते हैं।

2.  लोक प्रशासन की व्यवस्थित रूप से खोज की जा सकती है।

3.  दक्षता और मित्वीयता को बढ़ाया जा सकता है व आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। 

F.w. टेलर  की वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत ने लोक प्रशासन को लंबे समय तक प्रभावित किया:- 

1.  प्रशासन को विज्ञान आधारित होना चाहिए।

2.  प्रशासन में होने वाली भर्ती विज्ञान के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए।

3.  प्रशासन में होने वाले प्रशिक्षण विज्ञान आधार पर होने चाहिए।

4.  कर्मचारियों का आपस में समन्वय होना चाहिए।

लूथर गुलिक और उरविक ने सात सिद्धांत वाला POSTCORB का सिद्धांत दिया-

  1.  लोक प्रशासन का उद्देश्य है लाभ और दक्षता को बढ़ाना।
  2.  इस बात पर विश्वास करता है कि लोक प्रशासन में वैज्ञानिक सिद्धांत को विकसित करने की आवश्यकता है।
  3.  लोक प्रशासन को मूल्य मुक्त होने की जरूरत है।

मैक्स वेबर ने 1920 में नौकरशाही के मॉडल पर यह विचार दिया था कि लोक प्रशासन को एक तार्किक  विषय बनना चाहिए। वह प्रशासन को एक आदर्श व तार्किक रूप देना चाहते थे। वेबर के अनुसार जो समाज एक बार नौकरशाही से प्रभावित होता है वह समाज हमेशा नौकरशाही से प्रभावित होता है। 

चुनौतियों का काल (1938 – 1947)

इस काल में मानव संबंधआत्मक उपागम का बोलबाला रहा है। संरचनात्मक स्कूल जिन् सिद्धांतों पर जोर देते थे उन्हें चुनौती दी गई उनके अनुसार लोक प्रशासन केवल सैद्धांतिक मशीनों तक सीमित नहीं किया जा सकता। मानव संबंधआत्मक उपागम वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जगह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर जोर देता है। इसने यह बताने का प्रयास किया है कि किसी भी औपचारिक संरचना में अनौपचारिक तथ्य कम महत्वपूर्ण होते हैं । जैसे तमाम तरह से समूहों में सहयोग।

इसके मुख्य बिंदु निम्न प्रकार से हैं:-

  1. यह मानव पर जोर देता है। 
  2. यह मशीनी अवधारणा को अधूरा बताता है।
  3. यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तथ्यों को मुख्य रूप से महत्व देता है।
  4. यह लोगों में आपसी सहयोग पर जोर देता है।

पहचान के संकट का काल (1948 – 1970)

इस काल का आरंभ इस अवधारणा से होती है कि लोग प्रशासन को अन्य सामाजिक विज्ञान के साथ जोड़कर देखने की आवश्यकता है। इस अवधारणा के मुख्य रूप से समर्थन करने वाले दो दार्शनिक हैं- हर्बर्ट साइमन  और रॉबर्ट डॉल । 

साइमन :-  प्रशासकीय संगठन, नियम निर्माण की प्रक्रिया का अध्ययन साइमन के अनुसार लोक प्रशासन में दूसरों के ज्ञान को लेना चाहिए परंतु ऐसा व्यवहारवाद के अपनाने से संभव होगा। 

आर . डॉल :- द साइंस ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन: 3 प्रॉब्लम्स

इसके अंतर्गत उन्होंने विकास का मॉडल दिया उन्होंने इस बात को चुनौती दी कि लोक प्रशासन एक विज्ञान है। उनके अनुसार लोक प्रशासन को वैज्ञानिक आधार देने में 3 मुख्य समस्याएं हैं।

  • लोक प्रशासन के प्रश्नों से अक्सर मूल्यपरक संदर्भों को शामिल न करने की असंभाव्यता से पहली समस्या उठ खड़ी होती है। 
  • दूसरी समस्या एक चुभती हुई सच्चाई से उत्पन्न होती है कि लोक प्रशासन के विज्ञान को मानवीय व्यवहारों के कुछ पहलुओं का अवश्य ही अध्ययन करना चाहिए।
  • तीसरी समस्या का संबंध प्रशासनिक सिद्धांतों की अवधारणा से है। 

 इन्होंने बताया कि लोक प्रशासन को तब तक विज्ञान नहीं बना सकते जब तक तुलनात्मक दृष्टिकोण ना अपनाएं।

मिन्नोब्रुक सम्मेलन (I) एवं नवीन लोक प्रशासन (नव लोक प्रशासन का दौर) (1968 – 987)

1970 के बाद लोक प्रशासन में विवाद उठा की लोक प्रशासन प्रासंगिक नहीं रह गया है इस अवस्था में नवीन लोक प्रशासन का विकास एक अन्य महत्वपूर्ण प्रगति का सूचक था जिसका शुभारंभ 1968 के मिनोब्रुक सम्मेलन ने किया इसके पश्चात फ्रैंकमैरनी एवं वाल्डो की रचनाओं ने नव लोक प्रशासन के विकास के लिए सशक्त पृष्ठभूमि का निर्माण किया। नवीन लोक प्रशासन मुख्यता मूल्य उनमुखी, लक्ष्य उनमुखी एवं परिवर्तन उनमुखी अवधारणा है। जो मूल्य मुक्त व्यवस्था को अस्वीकार करती है राजनीति, प्रशासन द्वंदात्मकता में विश्वास नहीं करती है। 

इस प्रकार नव लोक प्रशासन की संकल्पना चार मुख्य बिंदुओं –

  • प्रासंगिकता 
  • मूल्य 
  • क्षमता 
  • परिवर्तन 

पर जोर देती है इस पूरे आंदोलन को नव लोक प्रशासन कहा जाता है। 

मिन्नोब्रुक सम्मेलन (II) नव लोक प्रशासन (1988-1993)

यह अवस्था लोक प्रशासन के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की अवस्था है क्योंकि इसमें लोक प्रशासन संगठन की सीमाओं एवं पुरातन कमियों को देखते हुए नवीन लोक प्रशासन के सिद्धांत पर बल दिया गया। 1988 के मिन्नोब्रुक के द्वितीय सम्मेलन ने वैबरवादी नौकरशाही के निश्चित सीमाए, समाज के बहुलवादी स्वरूप तथा नवीन चुनौतियों को देखते हुए प्रशासन के अंतर्गत प्रबंधवाद पर बल दिया। इसके साथ ही विकास एवं समस्याओं के बजाय उपायों पर विचार किया जाने लगा। इसने नवीन लोक प्रशासन के सिद्धांत का विकास किया नवीन लोक प्रशासन एक बाजार उनमुखी सिद्धांत है जिसकी मान्यता है कि बाजार में वह समर्थ है कि सरकारी प्रशासन से अधिक बेहतर ढंग से शासन संचालित कर सके। नवीन लोक प्रशासन, व्यवसायी शासन की क्षमता, प्रभावकारिता पर बल देता है।

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