संस्थागत उपागम (Institutional Approache), भारत में राज्य राजनीति
भारत एक महत्वपूर्ण लोकतन्त्रात्मक देश है। मानव सभ्यता के पांच हजार वर्ष से भी पुराने इतिहास मे कही भी, कभी भी इतने व्यापक पैमाने पर लोकतान्त्रिक प्रयोग नहीं चला, जैसा कि भारत में स्वाधीनता के बाद से चल रहा है। जनतन्त्र के परिप्रेक्ष्य में भारत की महत्ता का अहसास पश्चिम मे अधिक है। टेक्सास विश्वविद्यालय के डॉ० रोस्टोव का यह कथन उल्लेखनीय है कि “दूसरे महायुद्ध के बाद की सबसे आश्चर्यजनक घटना भारत में लोकतन्त्र का कायम रहना है।”
प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो० याम्पसन का यह कथन भी गौर करने लायक है कि “भारत केवल स्वयं की दृष्टि से ही एक महत्वपूर्ण देश नहीं है वरन् वह समस्त विश्व मे लोकतन्त्र के भविष्य की दृष्टि से भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण देश है। पिछले 45 वर्षों से भारत मे सवैधानिक शासन-व्यवस्था के तहत लोकतन्त्रात्मक राजनीति का प्रयोग चल रहा है। भारत की गणना ‘तीसरे विश्व के राज्यो में’ अथवा ‘विकासशील देशो’ की श्रेणी में की जाती है।
भारत में राजनीति मुख्यतः राष्ट्र-निर्माण और देश की एकता को बनाये रखने की राजनीति है। किसी भी परिवर्तन को इस दृष्टि से देखा जाता है कि उससे राष्ट्र की एकता को बल मिलेगा या नहीं। राजनीतिक स्थिरता की कुंजी सामाजिक व्यवस्था रही है। अब यह सामाजिक व्यवस्था विखण्ठित हो रही है और बदल रही है।
भारतीय नेताओ के सामने यह चुनौती है कि यदि टूटती हुई सामाजिक संस्थानों की जगह नयी संस्थाएँ स्थापित नही की गयी, यदि नये अवसर प्रस्तुत नहीं किये गये और नयी मान्यताओ और मूल्यों की स्थापना नहीं की गयी तो राजनीतिक विकास के अवरुद्ध होने के साथ-साथ राजनीतिक व्यवस्था टूटने की स्थिति में या सकती है।
भारत में राज्यों की राजनीति या सरल शब्दों में कहें तो राज्य राजनीति क्या रही है, इसको हम प्रमुख रूप से कुछ उपागम के माध्यम से समझ सकते हैं। यह उपागम हमें भारत में विभिन्न राज्यों की राजनीतिक रणनीति उनके आयाम आदि को समझने में सहायता करतें हैं। स्पष्ट रूप से कहें तो भारत में राज्य राजनीति को प्रमुख तीन उपगमों के माध्यम से समझा जा सकता है।
- संस्थागत उपागम
- राजनीतिक अर्थव्यवस्था
- विकासात्मक उपागम
संस्थागत उपागम
सस्थानात्मक दष्टिकोण के समर्थक भारतीय राजनीति के अध्ययन में विभिन्न सस्थानो के महत्व को प्रतिपादित करते है। वे मानते है कि राजनीतिक संस्थाएँ ही हमारे राजनीतिक जीवन को आधार प्रदान करती हैं। इस उपागम के समर्थक राज्य सरकार, सरकार के विभिन्न अग, उसके संगठन के नियम, नागरिको के अधिकार, कर्तव्य, इत्यादि के अध्ययन पर बल देते हैं। वस्तुत: ये वैध एवं औपचारिक संस्थाओ जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद, राज्यपाल के पद एवं भूमिका के अध्ययन पर बाल देता है।
दूसरे शब्दों में, यह उपागम भारत में राज्य राजनीति को समझने के लिए प्रमुख रूप से राज्यों में निहित संस्थाओं पर अपना अध्ययन केंद्रित करता है, तथा इन संस्थाओं का गहन अध्ययन करके राज्य की राजनीति को समझने का प्रयास करता है अर्थात संस्थागत उपागम की प्रमुख तीन विशेषताएं हैं जिनके माध्यम से हम इसे अच्छे से समझ सकते हैं-
संस्थानों का अध्ययन
संस्था राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करता है तथा यह राज्य के विभिन्न अन्य संस्थाओं (वर्ग, जाति, सरकार) का भी अध्ययन करता है। मुख्य रूप से यह नियमों और विनियमों का एक संचय है, जो किसी समुदाय या समूह को वैधता प्रदान करता है। उन्हें कुछ अधिकार देता है साथ ही कुछ उत्तरदायित्व से भी बांधता है। संस्थाओं की कुछ विशिष्ट विशेषताएं होती हैं जो इन में अक्सर पाई जाती है। जैसे- legitimately, Rules, Regulations, Norms, Identities,आदि।
इसके अतिरिक्त संस्थाओं के चार अन्य तत्व भी होते हैं जो इसकी संरचना को इंगित करते हैं:-
Actor’s:- यह संस्थाओं को शक्ति प्रदान करते हैं तथा उन्हें बाधित वह नियंत्रित भी करते हैं।
Authority:- यह संस्थाओं की संरचना व सत्ता का निर्माण करती है तथा अधिकार भी प्रदान करती है।
Legality :- यह संस्थाओं का अनुकरण करती है।
Morality:- यह किसी भी संस्था की नैतिकता को दर्शाता है यह मुख्य घटक होता है।
Totality:- संस्थाओं को किसी एक ही पहलू पर अपना ध्यान नहीं केंद्रित करना चाहिए, उसे समग्रता को अपनाना चाहिए।
औपचारिक और अनौपचारिक संस्थान
संस्थाओ के अध्ययन के अंतर्गत प्रमुख रूप से दो प्रकार की संस्थाएं देखने को मिलती हैं। औपचारिक और अनौपचारिक संस्थाएं यह सभी देशों में प्रमुख रूप से स्थापित होती हैं-
औपचारिक संस्थाएं (Formal Institution)
यह किसी भी देश की व्यवस्था व कार्यप्रणाली को संचालित व नियंत्रित करने हेतु अनिवार्य संस्थाएं होती हैं। इसे हम तीन कार्यों के रूप में समझ सकते हैं-
1. कानून निर्माण- यह किसी भी देश में अपने राज्यों के लिए कानून, नियम व नीतियों को बनाने का कार्य करती है इसे भारत में संसद के रूप में जाना जाता है। इसे विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है।
2. कानून कार्यान्वयन- यह संस्थाएं प्रमुख रूप से बनाए गए कानूनों को लागू व कार्यान्वित करने का कार्य करती है। भारत में राष्ट्रपति व उसकी मंत्रीपरिषद यह कार्य करती है।
3. न्यायनिर्णायक कानून- यह संस्था प्रमुख रूप से कानूनों को परिभाषित करने का कार्य करती है। यह इस बात को ध्यान में रखती है कि संसद कोई ऐसा कानून ना बनाए जो संविधान का उल्लंघन करता हो। भारत में इसे न्यायपालिका के नाम से जाना जाता है।
अनौपचारिक संस्थाएं(Informal Institutions)
राज्यों की राजनीति को प्रभावित करने में दल व दबाव समूह की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह चुनाव को अत्यधिक रूप से प्रभावित करते हैं, इस कारण इस तरह के अनौपचारिक संस्थाओं का अध्ययन जरूरी हो जाता है साथ ही इस संदर्भ में एनजीओ व मीडिया भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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संस्थान को पुनर्जीवित करना- संस्थागत उपागम के तहत हम संस्थाओं के पुनर्जीवित होने के तथ्यों पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं। यह किसी भी प्रकार से संस्थाओं का पतन हो रहा है का भी अध्ययन करता है साथ ही यह वि-संस्थागत प्रक्रिया का भी अध्ययन करता है। अतः राज्य की राजनीति के अंतर्गत संस्थागत उपागम उपर्युक्त सभी पहलुओं को समझाने में हमारी सहायता करता है।