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अन्तराष्ट्रीय संबंधो में ‘ग्रेट डिबेटस्’ | The Great Debates

परिचय अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में बहुत से विवाद हुए हैं। यह वाद विवाद समय के साथ साथ चलती रहती है क्योंकि इसमें अनेक नए नए विचार आते रहते हैं। सबसे पहली डिबेट 1920 में हुई थी यह डिबेट सामान्य के साथ-साथ परिवर्तित होती रही है।  पहली डिबेट आदर्शवाद और यथार्थवाद के बीच में हुई…

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अंतर्राष्ट्रीय संबंध: एक दुनिया,कई सिद्धांत | The Great Debates

International Relations: One world, Many Theories By:- Stephen M. Walt परिचय  अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन को यथार्थवादी, उदारवादी, और कट्टरपंथी परंपराओं के बीच एक लंबी प्रतिस्पर्धा के रूप में समझा जाता है। यथार्थवाद राज्यों के बीच संघर्ष के लिए स्थाई प्रवृत्ति पर जोर देता है जबकि उदारवाद इन परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों को कम करने के…

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अंतरराष्ट्रीय संबंध में सामाजिक विज्ञान का दर्शन | The Great Debate’s

International Relations and Social science Reading:- Milja Kurki and Colin Wight Introduction सामाजिक विज्ञान के दर्शन ने एक अनुशासन के रूप में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के गठन, विकास और अभ्यास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । अक्सर समाजिक विज्ञान के दर्शन से संबंधित मुद्दों को मेटा सैद्धांतिक बहस (मेटा पॉलीटिकल डिबेट) के रूप में वर्णित किया…

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भारत में अंतर सरकारी संबंध

भारत में अंतर सरकारी संबंध भारत में अंतर सरकारी संबंध “विधायी संघवाद” के बजाय “कार्यकारी संघवाद” का एक बड़ा मामला रहा है जो राज्यसभा के माध्यम से कभी नहीं प्राप्त हो सका । अंतर सरकारी संबंधों के तंत्र पूरी तरह से किसी भी देश में केवल औपचारिक संवैधानिक प्रावधानों का एक मामला नहीं हो सकता…

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असममित संघवाद [Asymmetrical Federalism]

Asymmetrical Federalism सीधे व साधारण अर्थों में कहें तो असममित संघवाद एक लचीले प्रकार का संघ है जो संविधान में कुछ संघात्मक इकाइयों को विशेष दर्जा प्रदान करता है । इस शब्द को संघीय नीतियों के निर्माण के लिए तैयार किया गया जो संघीय सरकार को विशिष्ट मामलों पर विभिन्न राज्यों के साथ अलग-अलग सौदा…

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भारतीय संघवाद

भारतीय संघवाद by:- Balveer arora, K.K Kailash, Rekha saxena समकालीन भारतीय राजनीति को समझने के लिए संघीय तथ्य केंद्रीय है। परंपरागत रूप से संघवाद  की अवधारणा में  केंद्रीय सरकारों और संघीय इकाइयों के बीच संबंध शामिल है। तथा केंद्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय सरकार के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है जिसे संविधान…

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न्यायापालिका की स्वतन्त्रता | भारतीय न्यायपालिका

न्यायापालिका की स्वतन्त्रता (Independence of the Judiciary)  एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही नागरिकों के अधिकारों और संविधान की संरक्षिका हो सकती है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए निम्नलिखित उपबन्धों का समावेश किया गया 1. पदावधि की सुरक्षा-एक बार नियुक्त किए जाने के उपरान्त न्यायाधीशों को, उनके स्वैच्छिक त्याग-पत्र…

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न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता

न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) सर्वोच्च न्यायालय का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य संविधान की व्याख्या तथा रक्षा करना है और यही सर्वोच्च न्यायालय का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार भी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक होने के नाते उसकी अन्तिम व्याख्या करने का अधिकार भी प्राप्त है। इसके अधीन वह संसद तथा राज्य विधानमण्डल द्वारा…

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सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य | प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्राधिकार, व रिट

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां  संघात्मक संविधान में संघात्मक न्यायालय का विशेष स्थान प्राप्त होता है ताकि संतुलन कायम किया जा सके और संविधान की सर्वोच्च और केन्द्र तथा इकाइयों को अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्तता (Autonomy) कायम की जा सके।  किसी किसी ऐसे न्यायलय की आवश्यकता होती है जोकि संविधान की व्याख्या कर सके, केन्द्र और…

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मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति और विवाद | योग्यता, कार्यकाल, महाभियोग

मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति और विवाद भारत में उच्चतम न्यायलय संविधान के रक्षक और संविधान के अन्तिम व्याख्याता के रूप में कार्य करता है। भारतीय उच्चतम न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं। वह संसद द्वारा पारित ऐसी किसी भी विधि को अवैध घोषित कर सकता है जो संविधान के विरूद्ध हो।…