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आलोचनात्मक सिद्धांत [अन्तराष्ट्रीय संबंध] | रॉबर्ट कॉक्स व एनड्रीव लिंकलेटर

आलोचनात्मक सिद्धांत ग्राम्सीवाद तथा आलोचनात्मक सिद्धांत दोनों की जड़े 1920 तथा 1930 के दशक के पश्चिमी यूरोप में है। यह वह समय व स्थान था जिसने क्रांतिकारियों के प्रयासों के बावजूद मार्क्सवाद असफलता का सामना कर रहा था। हम यह तर्क देते हैं कि दोनों विचारशील स्कूलों के बीच विभाजन रेखा खींचना उचित नहीं होगा।…

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अन्तराष्ट्रीय संबंधो में नरिवाद | नरिवाद के विभिन्न सिद्धांत

परिचय नारीवादी सिद्धांत का प्रवेश 1980 से 1990 के दशक में होता है। इसे तीसरी बहस के रूप में देखा जाता है। इनका मानना है कि नारीवादी दृष्टिकोण को समझने के लिए लिंग विश्लेषण को समझना अनिवार्य है। यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में लिंग अधीनता की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। विश्व में केवल 10% ही…

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“रचनावाद” अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत | Constructivism

The Promise of constructivism in International Relations Theory By:- Ted Hopf परिचय रचनावाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत में कई केंद्रीय विषयों की वैकल्पिक समझ प्रदान करता है जैसे कि अराजकता का अर्थ, शक्ति संतुलन, राज्य के हित, और पहचान के बीच संबंध, शक्ति का विस्तार, तथा विश्व राजनीति में बदलाव की संभावनाएं आदि। मुख्यधारा के…

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नव उदारवाद तथा नव यथार्थवाद : संकलनीन बहस के बाद 

By:- David A. Boldwin नीचे दिए गए छः केंद्रीय बिंदु नव उदारवाद तथा नव यथार्थवाद के समकालीन बहस का चित्रण करते हैं यह निम्नलिखित हैं:– अराजकता की प्रकृति तथा उसके परिणाम कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कई प्रकार से अराजक है। पर ऐसा क्यों कहा गया यह एक…

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नव-उदारवादी संस्थावाद [Neo-Liberal Institutionalism]

नव-उदारवादी संस्थावाद By:- joseph M. Gricco 1980 के दशक में बहुलवाद का तत्व ज्ञान नवउदारवाद संस्थावाद के रूप में आया है। बहुलवाद के लेबल के साथ यह समस्या थी कि कुछ विचारको को इस आंदोलन से जुड़ा हुआ समझा गया जबकि उदार संस्थावाद ने कई नए प्रभावशाली विचारकों को इसकी और आकर्षित किया और अंतरराष्ट्रीय…

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राजनीतिक यथार्थवाद मोर्गेन्थाऊ के सिद्धांत: – एक नारीवादी सुधार | ऐन टिकनर

जे एन टिकनर ने अपने लेख “ए फेमिनिस्ट फॉर्मूलेशन” की शुरुआत इस कथन से करती हैं कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति एक पुरुषों का विश्व है। यह शक्ति तथा संघर्ष का विश्व है जिसमें युद्ध, कला, एवं विशेष अधिकार कृत गतिविधियां हैं अर्थात परंपरागत रूप में कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विज्ञान पर विशेष रूप में पुरुषों…

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अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में “यथार्थवाद” [Realism]| Jack Donnelly

यथार्थवाद यथार्थवाद एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग कई अन्य विषयों में कई तरीके से किया जाता है। दर्शनशास्त्र में इसे आदर्शवाद के विपरीत एक सैद्धांतिक सिद्धांत माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय संबंध में राजनीतिक यथार्थवाद विश्लेषण की एक परंपरा है जो राष्ट्रों की शक्ति की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए अनिवार्य राज्यों पर जोर…

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संरचनात्मक यथार्थवाद | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संरचनात्मक यथार्थवाद समकालीन यथार्थवाद को नव यथार्थवाद या संरचनात्मक यथार्थवाद भी कहा जाता है। इसका उदय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हंस जे मार्गेंथाओ की कृति “पॉलिटिक्स अमोंग नेशन” (1949) से माना जाता है। 1949 के बाद वोल्टेज ने इस उपागम को सिद्धांत सुदृढ़ता प्रदान की नव यथार्थवादी अंतरराष्ट्रीय घटनाओं की  व्याख्या अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की…

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अन्तराष्ट्रीय संबंध में “थर्ड डिबेटस” | Paradigm Debate

The  Raise  and  the  fall of  the  Inter-paradigm Debate  तीन मानक प्रतिमान, तीन प्रमुख विद्यालय हैं, ऐसा अंतरराष्ट्रीय संबंध की एक मानक पुस्तक में वर्णित है। पहला यथार्थवाद, दूसरा बहुलवाद, अन्योंन्याश्रय और विश्व समाज कहा जाता है।  यह कुछ अर्थों में उदारवादी दृष्टिकोण है। तीसरा मार्क्सवाद है जो अधिक व्यापक रूप में स्थापित है। What…

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अन्तराष्ट्रीय संबंधो में ‘न्यू ग्रेट डिबेटस्’ | the New Great Debate 

हेडली बुल के शब्दों में आज के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों के प्रति दो दृष्टिकोण हमारा ध्यान खींचते हैं।  पहला परंपरागत दृष्टिकोण, दूसरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण। इन दोनों दृष्टिकोणओं की उपयोगिता के संबंध में वाद विवाद चलता रहा है। दोनों दृष्टिकोणओ के समर्थक अपने विरोधियों के विरुद्ध अनेक तर्क देते हैं। इस सारे विवाद को विज्ञान…