अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में “यथार्थवाद” [Realism]| Jack Donnelly
यथार्थवाद
यथार्थवाद एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग कई अन्य विषयों में कई तरीके से किया जाता है। दर्शनशास्त्र में इसे आदर्शवाद के विपरीत एक सैद्धांतिक सिद्धांत माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय संबंध में राजनीतिक यथार्थवाद विश्लेषण की एक परंपरा है जो राष्ट्रों की शक्ति की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए अनिवार्य राज्यों पर जोर देती है।
अंतरराष्ट्रीय संबंध के क्षेत्र में राजनीतिक यथार्थवाद (रियल पॉलिटिक) शक्ति राजनीति (पावर पॉलिटिक्स) को आज भी सबसे प्रमुख विचारधारा के रूप में देखा जाता है। यथार्थवाद को विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाओं के द्वारा परिभाषित किया। यथार्थवाद मानव प्रकृति एवं भौतिक जगत की वास्तविकता एवं अनिवार्यता से जुड़ा सिद्धांत है।
यह मानव स्वभाव की विशेषता है कि व्यक्ति दूसरों से अति स्वार्थ आत्मक व्यवस्था में अपने स्वार्थ से अभिप्रेरित होता है तथा इसकी प्राप्ति के लिए दूसरों से संघर्ष करता रहता है। चाहे वह बीसवीं शताब्दी के महत्वपूर्ण यथार्थवादी विचारक हंस जे मार्गेंथाओ हो अथवा थूसाईडाइड्स, या मैकियावेली ये सभी पारंपरिक यथार्थवादी विचारक थे। सभी ने मानव स्वभाव के इस निराशावादी दृष्टिकोण को स्वीकार किया है, कि “राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है”।
यथार्थवाद मानव प्रकृति से राजनीतिक संरचना की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। यथार्थवाद के अनुसार राज्यों के कार्यों के लिए सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों को लागू नहीं किया जा सकता।अन्य यथार्थवादी अराजकता की केंद्रीयता को नकारे बिना मानव प्रकृति को भी आकार देते हैं। अंततः मानव की प्रकृति संघर्ष और युद्धों में निहित मानते हैं।
कट्टरपंथी यथार्थवादियों ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति से सत्ता और साहित्य को छोड़कर लगभग सभी चीजों को छोड़ दिया।यथार्थवादी सत्ता, स्वार्थ, और संघर्ष की प्रबलता पर बल देते हैं लेकिन राजनीतिक रूप से सामर्थहीन, गैर यथार्थवादी ताकतों और शंकाओं के लिए मामूली जगह की अनुमति देती हैं।
हॉब्स और परंपरागत यथार्थवाद
थॉमस हॉब्स ने अपनी पुस्तक “लिवियाथन” में स्टेट ऑफ नेचर में राजनीतिक की कल्पना की परंपरागत यथार्थवादी सिद्धांत मानव स्वभाव और अंतरराष्ट्रीय अराजकता को बराबर मानती है।
The Hobbesian state of nature:- हॉब्स तीन सरल धारणाएं बनाते हैं–
इन स्थितियों के संयोजन से सभी के खिलाफ युद्ध होता है। सभी मनुष्य सामान हैं का तात्विक भाव है कि कमजोर के पास भी इतनी ताकत होती है कि वह शक्तिशाली को गुप्त साजिद या संधि द्वारा मार सके। संघर्ष व दुश्मनी– प्रतियोगिता और महिमा से उत्पन्न होती है।
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By:- J Anne Tickner [HINDI PDF]
मनुष्य सामान्य शक्ति के बिना रहते हैं तथा वह ऐसी स्थिति में होते हैं जिसे युद्ध कहा जाता है और ऐसा युद्ध जिसमें हर आदमी हर आदमी के खिलाफ होता है। अंतरराष्ट्रीय सरकार की स्थापना युद्ध की स्थिति को समाप्त कर सकती है। अराजकता में भी संघर्ष की आवृत्ति और तीव्रता नाटकीय रूप से प्रतिस्पर्धा और महिमा को कम कर सकती है।
Assessing Hobbesian Realism:– हम स्वीकार करते हैं कि इस तरह के विशाल राज्य पूरे विश्व में कभी भी मौजूद नहीं थी। एक आदर्श प्रकार के मॉडल की पहचान करते हैं जहां समान अभिनेता अराजकता में बातचीत करते हैं जो प्रतियोगिता और महिमा से प्रेरित होते हैं और जहां सामान्य विकृत हिंसक संघर्ष की भविष्यवाणी की जा सकती है।