स्वतंत्रता पर उदारवादी विचार (Freedom and Market) | Libertarians


Freedom and Market

आर्थिक व्यवस्था में स्वतंत्रता

आर्थिक व्यवस्था में राज्य का कोई भी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए । इस सिद्धांत के प्रतिपादक मुख्यता उदारवादी थे। उदारवाद एक ऐसा सिद्धांत या विचारधारा थी जिसने स्वतंत्रता समानता और अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया था।

उदारवाद का मानना था कि व्यक्ति तार्किक प्राणी है जो नैतिक व अनैतिक या अच्छा वह बुरा सब जानता है ।  इसका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति समान होता है यानी कोई व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं होता अथवा प्रत्येक व्यक्ति अपने विकास में सक्षम है और राज्य को किसी व्यक्ति का विकास करने के लिए हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।

उदारवाद में दो नजरिए देखने को मिलते हैं:-

  • 19वीं शताब्दी में जिसमे स्मिथ, लॉक आदि शामिल हैं । उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अर्थव्यवस्था या बाजार में राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए । यह विचारक राज्य के हस्तक्षेप पर पूर्णता प्रतिबंध लगाते हैं। 
  • बीसवीं शताब्दी में जिनमें रॉबर्ट नोजिक, फ्रीडमैन, आदि शामिल हैं। उन्होंने माना कि राज्य एक सीमा के बाद व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकता है। वह सीमा होगी व्यक्ति का विकास । व्यक्ति की स्वतंत्रता में इसलिए हस्तक्षेप  कर सकता है क्योंकि संपूर्ण विश्व व्यवस्था अराजक है । इसमें केवल मानव दूसरे मानव का दुश्मन नहीं है अपितु कुछ प्राकृतिक चीजें भी होती है जो मानव के स्वभाव को प्रभावित करती है ।

एडम स्मिथ 19वीं शताब्दी में स्वतंत्रता पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं । उन्होंने अपने विचार अपनी पुस्तक वेल्थ ऑफ नेशन (Wealth of Nation) मे प्रस्तुत किया।  उनका मानना था कि व्यक्ति एक तार्किक प्राणी है, व्यक्ति अपना अच्छा बुरा और नैतिक, अनैतिक जानता है और इसीलिए राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता या अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए अथवा कोई अवरोध उत्पन्न नहीं करना चाहिए ।

उनका मानना था कि व्यक्ति प्राकृतिक नियमों से संचालित होता है जो की सार्वभौमिक होते हैं और राज्य कोई भी नियम या कानून बनाकर व्यक्ति पर लागू नहीं कर सकता.  एडम स्मिथ ने “अदृश्य हाथ” की अवधारणा प्रस्तुत की । उनका मानना था कि व्यक्ति कोई भी कार्य करता है तो वह अपने हित के लिए करता है और इसमें सार्वजनिक हित भी शामिल है । इसी को स्मिथ अदृश्य हाथ की संज्ञा देते हैं। 

वे कहते हैं कि बाजार व्यवस्था की शुरुआत भी आत्म हित की वजह से होती है क्योंकि व्यक्ति अपना विकास करना चाहता है इसीलिए वह धीरे-धीरे बाजार की ओर अग्रसर होता है और पूंजी अर्जुन शुरू करता है । उनका मानना था कि बाजार की कुछ सीमाएं होनी आवश्यक है ताकि जो नकारात्मक शक्तियां या अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न ना कर सके । लेकिन यह सीमाएं केवल प्राकृतिक नियमों व कानूनों द्वारा निर्मित की जा सकती है ना कि राज्य के द्वारा ।

एडम स्मिथ का मानना है कि निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र के बीच एक स्पष्ट रेखा  खींच देनी चाहिए ना तो राज्य व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करेगा और ना ही व्यक्ति राज्य के कार्यों में दखल देगा ।

जॉन लॉक प्राकृतिक अधिकारों की बात करते हैं जिसमें जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, तथा संपत्ति का अधिकार शामिल है । लोग मानते हैं कि संपत्ति का अधिकार व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है क्योंकि उनका मानना था कि राज्य के आने से पहले भी व्यक्ति के पास संपत्ति का अधिकार था । परंतु उस समय संपत्ति किसी एक व्यक्ति की ना होकर सभी व्यक्तियों की होती थी,  यानी साझा संपत्ति ।

संपत्ति निजी संपत्ति तब बनी जब व्यक्ति अपने श्रम द्वारा उसे संचित करता है । उनका मानना था कि व्यक्ति को केवल उतनी ही संपत्ति इकट्ठा करनी चाहिए जितनी उसे आवश्यकता है । ताकि अन्य व्यक्तियों के लिए भी संपत्ति बच सके

जॉन लॉक तीन तरह की सीमाओं की बात करते हैं:-

  • जरूरत से ज्यादा संपत्ति का अर्जुन
  • संपत्ति अन्य व्यक्तियों तक भी पहुंचने चाहिए
  • संपत्ति का संचय स्वयं करना चाहिए

उन्होंने “Three Down Theory” की संकल्पना प्रस्तुत की उन्होंने बोला था की भूमि का टुकड़ा “प्रोडक्शन टू प्रोडक्ट” यह तीन महत्वपूर्ण तत्व है। 

फ्रीडमैन ने स्वतंत्रता से संबंधित विचार अपनी पुस्तक “Capitalism and freedom” में प्रस्तुत किया । उनका मानना था कि स्वतंत्रता एक नाजुक पौधा है जिनको हमें बचा कर रखना चाहिए । फ्रीडमैन का मानना है कि स्वतंत्रता को सबसे ज्यादा खतरा शक्ति की  समग्रता से है यानी सिर्फ शक्ति बढ़ाने के लिए कार्य करने से स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी ।

फ्रीडमैन व्यक्तित्व पर ज्यादा जोर देते थे उनका मानना था कि व्यक्ति कोई भी कार्य करने में सक्षम है और राज्य व्यक्ति का लक्ष्य तक पहुंचने के एक माध्यम के तौर पर कार्य करेगा । वह भी निजी सार्वजनिक क्षेत्र में विभाजन करते थे

फ्रीडमैन कहते हैं कि राजनीतिक क्षेत्र व आर्थिक क्षेत्र अलग अलग चीज है । लेकिन राज्य के आने के बाद दोनों मिश्रित हो जाते हैं ।

बेंथम का मानना है कि राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता तक पहुंचने का एक माध्यम है लेकिन राज्य के आने के बाद राजनीतिक स्वतंत्रता यंत्र मात्र रह गई है ।

हेयक, बेंथम की आलोचना करते हैं । उनका मानना था कि  राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक स्वतंत्रता का साधन तो है लेकिन यह तीन विषयों पर बात करता है । बाजार की भूमिका क्या है? व्यक्ति वही कार्य करता है जिसमें उसका हित होता है । वह कहते हैं कि जब व्यक्ति आत्महित,आत्म-प्रेम से संचालित होते हैं तो एक व्यक्ति के हित दूसरे व्यक्ति के हितों से टकराते हैं यानी मतभेद उत्पन्न होता है और इस टकराव को खत्म करने के लिए राज्य का होना आवश्यक है । राज्य का कम से कम हस्तक्षेप होना चाहिए ।

फ्रीडमैन कहते हैं कि राज्य को एक एंपायर की भांति  भूमिका निभानी चाहिए यानि सही या गलत हितों के संदर्भ में हस्तक्षेप करें। फ्रीडमैन स्वतंत्रता बनाम शक्ति की भी बात करते हैं । हेयक का मानना है कि बाजार एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का आनंद करता है तथा साथ ही साथ बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और प्रतिस्पर्धा बढ़ने के बाद व्यक्ति के सामने बहुत ज्यादा विकल्प होता है ।

Similar Posts

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *