विमर्शी लोकतंत्र क्या है
विचारणात्मक लोकतंत्र (विमर्शी लोकतंत्र )
विचारणात्मक लोकतंत्र या विचार-विमर्शमूलक लोकतंत्र के सिद्धांत को 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों से विशेष लोकप्रियता मिली है। इसके प्रवर्तकों में जे. कोहेन एवं – जे. रॉजर्स (ऑन डेमोक्रेसी: टुवार्ड ए ट्रांस्फार्मेशन ऑफ़ – अमेरिकन सोसायटी)(1983) और एस.एल. हली (नेचुरल रीजन्सः पर्सनैलिटी एंड पॉलिटी) (1989) का विशेष – स्थान है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि जॉन राल्स (1921-2002) (पोलिटिकल लिबालिज़म) (1993) सरीखे उदारवादी और युर्गेन हेबरमास, (1929- ) (बिट्वीन फैक्ट्स एंड नॉर्स : कांट्रीब्यूशन्स टु ए डिस्कोर्स थ्योरी ऑफ़ लॉ एंड डेमेक्रेसी) (1996) सरीखे आलोचनात्मक सिद्धांतकार ने विचारणात्मक लोकतंत्र के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है।
विचारणात्मक लोकतंत्र का सिद्धांत लोकप्रिय प्रभुसत्ता (Popular Sovereignty) और उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy) से जुड़े विचारों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास है। लोकप्रिय प्रभुसत्ता के समर्थक लोकप्रिय. शासन (Popular Rule) की मांग करते हैं जबकि उदार लोकतंत्र के समर्थक नागरिक स्वतंत्रताओं (Civil Liberties) को लोकतंत्र का आधार-तत्त्व मानते हैं। दूसरी ओर, विचारणात्मक लोकतंत्र का सिद्धांत इन दोनों तत्त्वों को मिलाकर राजनीतिक विचारणा या विचार-विमर्श (Deliberation) को बढ़ावा देना चाहता है।
विचारणात्मक लोकतंत्र की दृष्टि में नागरिक स्वतंत्रता (Civil Liberty) और राजनीतिक समानता (Political Equality) वहीं तक महत्त्वपूर्ण हैं जहां तक ये विभिन्न व्यक्तियों को तर्कसम्मत विचारणा के माध्यम से अपने जीवन को मनचाहा रूप देने में सहायता करती हैं। फिर, लोकप्रिय शासन इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वह सार्वजनिक महत्त्व के मुद्दों पर सार्वजनिक विचारणा को बढ़ावा देता है।
उदार लोकतंत्र तो राजनीति (Politics) को ऐसी प्रक्रिया के रूप के में देखता है जिसमें विभिन्न व्यक्ति अपनेअपने पूर्व-निर्धारित हित की सिद्धि के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा (Compete) करते हैं। परंतु विचारणात्मक लोकतंत्र राजनीति को ऐसी प्रक्रिया (Process) के रूप में देखता है जिसमें विभिन्न व्यक्ति अपनी-अपनी सूझबूझ के अनुसार तर्कसंगत नीति अपनाने के लिए एकदूसरे को समझाने-बुझाने (Persuation) का प्रयल करते हैं।
विचारणात्मक लोकतंत्र के समर्थक राज्य को लोकइच्छा (Popular Will) की पूर्ति का साधन बनाना चाहते हैं ताकि व्यक्ति की स्वायत्तता (Autonomy) की रक्षा की जा सके। चूंकि व्यवहार के धरातल पर लोकतंत्र साधारणतः बहुमत (Majority) की इच्छा को ही कार्यान्वित कर पाता है, इसलिए इसमें व्यक्ति की स्वायत्तता की रक्षा नहीं हो पाती। ऐसी हालत में वह नीति अपनानी चाहिए जिससे व्यक्ति की स्वायत्तता के क्षेत्र को ज्यादा-से-ज्यादा बढ़ाया जा सके। इसके लिए ऐसा लोकप्रिय शासन स्थापित करना ज़रूरी है जिसमें राजनीतिक निर्णयों के बारे में व्यक्तियों को विस्तृत विचार-विमर्श का अवसर दिया जा सके।
विचारणात्मक लोकतंत्र के पक्ष में तर्क
विचारणात्मक लोकतंत्र के पक्ष में अनेक तर्क दिए जाते हैं। कुछ लोग इसे रूढ़िवाद (Conservatism) के आधार पर उचित ठहराते हैं, कुछ लोग उदारवाद (Liberalism) के आधार पर, और कुछ लोग आलोचनात्मक । सिद्धांत (Critical Theory) के आधार पर इसकी पैरवी करते हैं। परंतु इसकी बुनियादी मान्यताओं के बारे में प्राय: वे सब सहमत हैं। ये सब उदार संविधानवाद (Liberala Constitutionalism) का समर्थन करते हैं।
अतः वे सब ऐसे तटस्थ नियमों (Rules) और अधिकारों (Rights) का समर्थन करते हैं जो नागरिकों का आमना-सामना होने से पहले ही उनके हितों में सामजस्य (Reconciliation of their Interests) स्थापित करते हों। दूसरे शब्दों में, ‘विचारणात्मक लोकतंत्र सामान्य हित (Common Good) का पता लगाने के लिए नागरिकों को परस्पर प्रतिस्पर्धा में की स्थिति में नहीं लाना चाहता बल्कि उनके भिन्नभिन्न हितों में स्वाभाविक सामंजस्य को बढ़ावा देना चाहता है।
संक्षेप में, विचारणात्मक लोकतंत्र और उदार संविधानवाद के इस संयोग को तीन तरह से प्रदर्शित कर सकते हैं :-
- विचारणात्मक लोकतंत्र कुछ ऐसे अधिकारों को महत्त्व देता है जो उदारवादियों को चिरकाल से प्रिय रहे हैं। उदाहरण के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) और साहचर्य की स्वतंत्रता (Freedom of Association) उदारवादियों . : के प्रिय अधिकार हैं जो कि विचारणात्मक लोकतंत्र को भी अत्यंत प्रिय हैं।
- उदार संविधानवाद से जुड़ी संस्थाएं-जैसे कि संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन या भारत के विधानमंडल स्वयं विचारणा के प्रभावशाली साधन हैं। कुछ विचारक न्यायपालिका को भी विचारणा का उपयुक्त साधन मानते हैं; और
- संविधान निर्माण भी मूलत: विचारणा की प्रक्रिया है जो लोक-हित की निष्पक्ष अवधारणा से मार्गदर्शन प्राप्त करती है जबकि साधारण राजनीति पक्षपात से प्रेरित हो सकती है।
निष्कर्ष
विचारणात्मक लोकतंत्र लोक-हित की सिद्धि में तभी सार्थक हो सकता है जब वह उच्च नैतिक मूल्यों पर आधारित हो, और सब जगह निष्पक्ष विचारणा को बढ़ावा दे। उदारवाद जिन नागरिक स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देता है, उन्हें तो विचारणात्मक लोकतंत्र हृदय से स्वीकार करता है। परंतु उदार लोकतंत्र में दबाव समूहों (Pressure Groups) की भूमिका जिस तरह लोकतंत्र की । मूल चेतना को विकृत कर देती है, उसकी आलोचना करते हुए विचारणात्मक लोकतंत्र ऐसी व्यवस्था स्थापित करना चाहता है जिसमें लोकतंत्र के सार-तत्त्व को सुरक्षित रखा जा सके।