लोकतंत्र का इतिहास | लोकतंत्र का विस्तार व लोकतंत्रिकरण
लोकतंत्र का “आधुनिकता की विशेषतासूचक संस्थाओं’ में से एक के रूप में वर्णन किया गया है, और ऐसा माना जाता है कि यह वैचारिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन की जटिल व अन्तर्गुथित प्रक्रियाओं का परिणाम था। ब्रिटेन में इस परिवर्तन का संकेत औद्योगिक क्रांति से मिला जो अठारहवीं शती के मध्य में आरम्भ हुई, जबकि फ्रांस व अमेरिका में यह क्रांति इसी शताब्दी के अन्तिम चतुर्थांश में राजनीतिक क्रांतियों द्वारा शुरू की गई।
लोकतंत्र : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्रिटेन में लोकतंत्र का उदय
ब्रिटेन को सर्वप्रथम आधुनिक लोकतंत्र माना जाता है क्योंकि, सत्रहवीं शती में गृहयुद्ध के ताज़ा हालातों में, शाही निरंकुशता समाप्त कर दी गई, और शक्तियाँ क्राउन के हाथों से निकलकर अब पार्लियामेण्ट के दो सदनों के पास आ गईं, जिनमें से एक, हाउस ऑफ कॉमन्स, एक निर्वाचित सभा-गृह था। यद्यपि राज्य-प्रदत्त विशेष अधिकार अत्यंत सीमाबद्ध रहे सम्पत्ति के स्वामित्व पर आधारित कार्यकारिणी का नियंत्रण प्रभावी रूप से आभिजात्य वर्ग तथा बुर्जुआ वर्ग के एक निर्बन्ध गठजोड़ के पास पहुँच गया था, मानो होड़ करते विशिष्ट वर्गों के बीच राजनीतिक संघर्ष, यहाँ से आगे, शांतिपूर्वक संचालित किया गया था, उन्नीसवीं शती में जाकर ही मताधिकार का विस्तार हुआ, जो शुरू हुआ
1932 के , रिफॉर्म एक्ट में उच्च मध्यवर्गों के मताधिकारं-दान से। इसके उपरांत कामगार वर्गों को मताधिकार दिए जाने का क्रमवार विस्तार हुआ, मोटे तौर पर यह कामगार वर्गों द्वारा किए जा रहे राजनीतिक संघर्षों व धार्टिज़्म जैसे उग्र आन्दोलनों के दबाव के जवाब के तौर पर था।
उन्नीसवीं शती के अंतिम चतुर्थांश, और तदोपरांत तीन सुधार अधिनियमों से गुजरकर, लगभग दो-तिहाई पुरुष अधिवासी-समदाय मताधिकार-दान का प्रत्याशी हुआ। बहरहाल, जब तक 1929 में कदम नहीं रख लिया महिलाओं को वोट देने का अधिकार सुनिश्चित नहीं था और सार्वभौम वयस्क मताधिकार पूरी तरह 1948 में ही मिला, जब एकाधिक मतदान को एक-व्यक्ति एक-वोट के सिद्धांत समर्थन में समाप्त कर दिया गया।
फ्रांस मे लोकतंत्र का उदय
फ्रास में, 1789 की क्रांति से लोकतंत्र की अधिक उन परम्परा का सूत्रपात हुआ, स्वतंत्रता-समानताबंधुत्व के उसके भावोत्तेजक आह्वान, तथा जनप्रिय स्वायत्तता के सिद्धांत पर उसके द्वारा जोर दिए जाने के साथ ‘द डेक्लेरेशन ऑफ द राटस ऑफ मैन एण्ड सिटीजन’ ने न सिर्फ फ्रैंच नागरिकों की. वरन् समष्टि रूप में ‘मानवता’ की प्राकृतिक व अहरणीय हकदारी के रूप में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विचार व धर्म की आजादी, सम्पत्ति की सुरक्षा तथा राजनीतिक समानता के अधिकारों की उदघोषणा की।
प्रारंभता 1791 के क्रांतिकारी संविधान ने सार्वभौम पुरुष मताधिकार के सदृश कुछ स्थापित किया, और वोट देने के अधिकार हेत सम्पत्ति की शर्त बस इतनी ही कम थी कि केवल घरेलू नौकर गृहहान व भिक्षुक ही वर्जित रहें। इस प्रकार 1791 में चालीस लाख पुरुष नागरिकों को ही वोट देने का अधिकार मिला, परन्तु चार वर्ष बाद. अधिक प्रतिबंधात्मक सम्पत्ति शर्ते लागू कर दी गई, जिससे का सख्या गिरकर मुश्किल से एक लाख समद्ध करदाता ही रह गई।
सार्वभौम परुष मताधिकार को 1848 की क्रांति के बाद ही पनर्प्रचलित किया गया और सार्वभौम वयस्क मताधिकार का एक शता बाद यानी 1946 में, जब महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिल गया।
अमेरिका में लोकतंत्र का उदय
संयुक्त राज्य अमेरिका में भी, गृह-युद्ध पश्चात् ताजा हालातों में लोकतंत्र की प्रगति श्वेत पुरुषों तक ही सीमित थी, और महिलाओं को मताधिकार-दान, जैसा कि देशज व अश्वेत लोगों के साथ भी था, बीसवीं शती तक नहीं मिल पाया था। तिस पर भी, डेक्लेरेशन ऑफ इण्डिपेण्डेन्स (1776) ही वह दस्तावेज था जिसने एक ही समय पर संयुक्त राज्य अमेरिका के विधिक निर्माण को सम्पन्न कर उस देश में लोकतंत्र को लागू किया। यद्यपि दासप्रथा उन्नीसवीं शती मध्य तक अपनायी जाती रही. अमेरिकी क्रांति ने ही आधुनिक विश्व को उसकी प्रथम लोकतांत्रिक सरकार और समाज प्रदान किए।
वंशानक्रमित सत्ता एकतंत्र और अभिजात-तंत्र सदृश को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया गोंकि गणतंत्रीय सरकार, जिसमें सभी नागरिक कम-से-कम सिद्धान्ततः समान थे. उसके स्थानी गई थी। सरकार की तीन शाखाओं- कार्यकारिणी, विधायिका और न्यायपालिका के तीन की एक महत्त्वपूर्ण संस्थागत क्रियाविधि भी लागू की गई, जिससे किसी एक भी यादृच्छिक अथवा अबाधित शक्ति का प्रयोग मुश्किल हो।
लोकतंत्रिकरण का उदय
लैवलर्स, जॉन लॉक एवं टॉम पेन के राजनीतिक विचारों तथा ‘फ्रैंच डेक्लेरेशन ऑफ द राइटस ऑफ मैन (1789)’ व ‘अमेरिकन डेक्लेरेशन ऑफ इण्डिपेण्डेन्स (1776)’ ने उन महत्त्वपूर्ण विचारों व सिद्धांतों को अभिव्यक्त किया, जिन्होंने आधुनिक विश्व में लोकतंत्र को मजबूत किया। इन लेखों व दस्तावेजों को प्रायः उदारवाद के घोषणापत्रों के रूप में भी देखा जाता है, और इस समय उदारवाद वस्तुतः. लोकतंत्र की एक प्रयोजनीय दास था।
सत्रहवीं शती के इंग्लैण्ड में लैवलर्स ने जनप्रिय स्वायत्तता एवं नागरिक स्वतंत्रताओं की एक उग्र अवधारणा को गति प्रदान की। राजनीतिक अधिकारों हेतु आधार के रूप में सम्पत्ति स्वामित्व पर प्रश्न करते हुए, उन्होंने एक सार्वभौम प्राय पुरुष मताधिकार की वकालत की।
जॉन लॉक का सैकण्ड ट्रीटाइज़ ऑन गवर्नमैण्ट (1681) उच्च कोटि के स्वतंत्र विचारों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत-ग्रंथ है। इस पुस्तक में, लॉक एक सृष्टि के नियम द्वारा नियंत्रित. प्रकृति की परिकल्पित अवस्था का वृत्तान्त प्रस्तुत करते हैं, जो आज्ञा देता है कि किसी भी व्यक्ति को जीवन, स्वास्थ्य, स्वातन्त्रय अथवा स्वामित्वों में किसी अन्य को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए ।
मनुष्यों की वह नैसर्गिक समानता जो उन्हें स्वतंत्रता का समान अधिकार देती है, नैतिक सद्गुण अथवा उत्कृष्टता के लिहाज से किसी धर्मस्थ समानता से नहीं, वरन् इस तथ्य से जन्मी है कि वे सब समान रूप से ईश्वर, की संतान हैं। यद्यपि प्रकृति की यह अवस्था एक उस प्रकृति के नियम से नियंत्रित होती है जो इन अधिकारों का समर्थन करता है, इस नियम को प्रदान करने व लागू करने के लिए कोई अभिकरण नहीं है।
इसी कारण दूसरों को अपने अधिकारों में अनधिकार प्रवेश करने से रोकने अथवा इस प्रकार के आक्रमण हेतु उचित प्रतिशोध के लिए, इन नियम को आदमी वैसे ही लागू करेगा जैसा कि वह उसे समझता है। प्रकृति की ऐसी अवस्था में, जो आमतौर पर शांति व परस्पर सहयोग द्वारा अभिलक्षित है, इस प्रकार के किसी अभिकर्ता का अभाव संघर्ष हेतु अनन्त सम्भावनाएँ रखता है, और यही प्रकृति की उस अवस्था की मुख्य असुविधाएँ हैं, जिनको इसीलिए एक सामाजिक समझौते के माध्यम से परे कर दिया जाता है।
हर व्यक्ति की स्वीकृति में निहित यह सामाजिक समझौता ही न्यायसंगत सरकार का आधार है। मानव समाज के कानून को अब उस शाश्वत नियम के समनुरूप होना पड़ेगा जो कि प्रकृति में का नियम है, तथा इस प्रकार राजनीतिक समाज का और सरकार का उद्देश्य लोगों के जीवन, स्वतंत्रता व सम्पत्ति की रक्षा करना ही है।
ये सिद्धांत स्वतंत्रता की अमेरिकी घोषणा (1776) में भी प्रचारित किए गए. जिन्होंने जीवन, स्वतंत्रता । व सुख-शांति के अनुशीलन को प्राकृतिक व अहस्तांतरणीय के रूप में वर्णन करने में लॉक का अनुसरण किया। दासों व महिलाओं का उन लोगों की श्रेणी से लगातार बहिष्करण जो ऐसे अधिकारप्राप्त थे, उदारवादी सिद्धांतों के सार्वभौमीकरण और उदारवादी प्रथाओं की चयनात्मकता के बीच प्रतिवाद का एकमात्र उदाहरण है।
मनुष्य के अधिकारों की फ्रांसीसी घोषणा (1789) ने व्यक्तियों को एक समुदाय के जन-उत्साही सदस्यों के रूप में प्रस्तुत कर नागरिकता को आदर्श बनाने में, जौं जाक रूसो के मनोभाव को प्रकट किया। रूसो के लिए, बहरहाल, महज प्रतिनिधि सरकार ही पूर्ण पर्याप्त नहीं थी. और स्वतंत्र सरकार का एकमात्र रूप प्रत्यक्ष लोकतंत्र था, जिसमें नागरिक सीधे भाग लेते हैं।
वस्तुतः रूसो को मालूम था कि धन-दौलत की भारी असमानताओं के साथ-साथ विशाल राजनीतिक समुदाय भी जनप्रिय! स्वायत्तता हेतु बाधाएँ थे, जबकि एक छोटे नगर-राज्य के संदर्भ में स्वतंत्रता, कल्याण व सार्वजनिक पिया ने लोकतंत्र हेतु आदर्श परिस्थितियाँ प्रदान की।
लोकतंत्रीकरण की लहरें
बीसवीं शती में लोकतंत्र का उसकी अन्तर्भाविता के साथ-साथ उसके स्थान-संबंधी विकसन, दोनों के लिहाज से एक अननुरूप विस्तार देखा गया। पुराने पश्चिमी लोकतंत्रों में महिलाओं को मताधिकार दिए जाने से आरंभ करके, और दक्षिण अफ्रीका में जातीय भेदभाव मिटाने तक, बीसवीं शती में लोकतंत्र और अधिक अन्तर्भूत हो गया। इस दृश्यघटना का “लोकतंत्रीकरण की लहरें’ नाम देकर वर्णन किया गया है। उन्नीसवीं शती के यूरोप में अनेक देशों के लोकतंत्रीकरण को लोकतंत्रीकरण की प्रथम लहर के रूप में देखा जाता है।
दूसरी लहर का दिनांकन प्रथम विश्वयुद्ध उपरांत काल में किया जाता है, जब यूरोप के अनेक देश – स्कैण्डीनेविया के देशों को मिलाकर लोकतांत्रिक बन गए।
लोकतंत्र की तीसरी लहर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आयी, जब नाजीवाद व फासिस्टवाद की समाप्ति उपरांत जर्मनी व इटली जैसे देशों में नए लोकतंत्र स्थापित किए गए; और, पचास व साठ के दशकों में विउपनिवेशीकरण के पश्चात् एशिया व अफ्रीका के अधिकांश राष्ट्रों द्वारा लोकतंत्र को उसकता के साथ अंगीकार कर लिया गया।
लोकतंत्रीकरण की चौथी लहर में उत्तर-साम्यवादी पूर्वी यूरोप के साथ-साथ लैटिन अमेरिका के उन अनेक देशों में भी लोकतंत्र की ओर प्रत्यागमन देखा गया, जो लोकतंत्र की ओर से मुँह फेर चुके थे।