भारत में संसद का विकास | James Manar व Harish Khare के विचार
स्वतंत्र भारत पूरे विश्व में वृहद लोकतंत्र होने का दावा करती है जो सही सिद्ध प्रतीत होता है । भारत साक्षी है कि यहां सभी संसदीय कार्य चाहे सरकार की विधि संबंधित कार्य हो या उसे हटाने का कार्य हो विपक्ष का सहयोग रहता है। संसदीय सरकार की संस्थाएं भारतीय राजनीतिक संस्कृति की तत्व है ।
एक वृहद राजनीतिक प्रक्रिया का भाग है । समाजिक विरोध अक्सर संसदीय प्रतिनिधित्व को प्रभावित करने के उद्देश्य से होता है क्योंकि इसे हटाने या समाप्त करने का विरोध किया जाता है। वह कुछ हद तक संसदीय संस्थाओ को तथा दल व्यवस्था को प्रभावित करने में सफल हो जाते हैं ।
संसदीय प्रतिनिधित्व राजनीतिक पहचान और व्यापक सामाजिक हित का उदय का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । 1990 के दशक में लोकसभा के सांसद गठन में नाटकीय परिवर्तन देखने को मिला। इसमें हम अन्य पिछड़ा वर्ग के उदय को देख सकते हैं । राय कहते हैं इसी दौरान जेंडर संबंधित कोटा को लेकर भी वाद-विवाद चला था। इस समय भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीति को भी देखा गया।
Jayal:- “जब संसद में अभूतपूर्व बदलाव हुए तब गैर कुलीन वर्ग, राजनीतिक प्रक्रिया के हिस्सा बने जो पहले नहीं थे।”
संसदीय उद्भव
इसका उदय 1857 के विद्रोह के बाद हुआ जब “भारत सरकार अधिनियम 1858” बनाया गया जिसमें भारतीय काउंसिल का गठन किया गया और एक सलाहकार संस्था बनाई गई। 1861 और 1892 मे कई भारतीय काउंसिल एक्ट का निर्माण किया गया जिसने कई अंग्रेजी भाषी कुलीन वर्ग को जन्म दिया जिसने ब्रिटिश सत्ता को उत्तरदाई बनाया तथा विमर्श के लिए क्षेत्र को विस्तार किया ।
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James Manar