समतावाद पृष्ठभूमि की असमानतायें तथा भेदमूलक सिद्धांत

समतावाद राजनीतिक दर्शन में चिन्तन की एक प्रवृत्ति है। समतावादी किसी न किसी प्रकार की समानता की बात करते हैं जैसे लोगों को समान वस्तुयें मिलनी चाहिए. उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए, या उनका समान आदर किया जाना चाहिए आदि।

शब्द इंगलीटेरियनिज़म (egalitarianism) फ्रेंच शब्द ‘गल’ (egal) से निकलता है जिसका अर्थ होता है सूमान् एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में इसका मानना है कि सभी लोगों के साथ समान  व्यवहार किया जाना चाहिए तथा उन्हें समान राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा नागरिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। कानून के अन्तर्गत तथा समाज में समानता के अतिरिक्त, समतावाद एक नैतिक सिद्धांत भी है जिसका दावा है कि विभिन्न समुदायों में भी विभिन्न प्रकार की समानता उपलब्ध होनी चाहिए। समतावादी सिद्धांत इस विचार का समर्थक है कि मौलिक गुणों एवम् नैतिक परिस्थिति के दृष्टिकोण से सभी लोग मानव होने के नाते समान है।

समतावाद एक परिवर्तनशील सिद्धांत है क्योंकि समाज में कई प्रकार की समानतायें अथवा तरीके होते है जिनके माध्यम से लोगों के साथ समानता का व्यवहार किया जा सकता है। आधुनिक प्रजातान्त्रिक राज्यों में ‘समतावाद’ का अर्थ एक ऐसी परिस्थिति से भी लिया जाता है जो विभिन्न कारणों के आधार पर समाज के विभिन्न लोगों में आय एवम् धन के वृहतर मात्रा में समान वितरण का समर्थन करते है।

समतावाद के सामान्य रूप हैं : 

आर्थिक अथवा भौतिक समतावाद् (अर्थात् समाज में भौतिक वस्तुओं के स्वामित्व में समानता होनी चाहिए), नैतिक संमतावाद (कि प्रत्येक व्यक्ति का समान नैतिक मूल्य है). कानूनी समतावाद (प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समान समझा जाना चाहिए). प्रजातान्त्रिक समतावाद (सार्वजनिक कार्यों में सभी की आवाज़ समान होनी चाहिए), राजनीतिक समतावाद (सभी के पास समान राजनीतिक शक्ति होनी चाहिए) तथा अवसर समतावाद (अर्थात् सभी को समान आर्थिक अवसर प्राप्त होने चाहिए)। विभिन्न प्रकार – की समतावादी धारणायें कई बार विरोधाभासी भी हो सकती है। व्यापक स्तर पर समतावाद समानता को न्याय का मूल उद्देश्य मानता है।

टेमकिन के अनुसार, समतावादी प्रत्येक वह व्यक्ति है जो समानता के किसी न किसी रूप को मान्यता देता है अर्थात् . कोई भी ऐसा व्यक्ति जो अन्य धारणाओं के साथ-साथ और उनसे थोड़ा ऊपर उठकर समानता को अधिक महत्त्व देता है। अत: समानता का एक अनन्य मान्यता होना अवश्यक नहीं है और न ही सर्वश्रेष्ठ मूल्य।

समतावादियों की यह दृढ़ धारणा है कि कुछ लोगों के लिए बिना उनकी कोई अपनी गलती के, दूसरों से बद्तर होना अनैतिक तथा अन्यायपूर्ण है। सामान्यत: आधुनिक समतावादी प्रयत्नों का केन्द्रबिन्दु अच्छे जीवन के उद्देश्य हेतु. समानता प्राप्त करना है : अर्थात् जीवन की । सम्भावनाओं तथा जीवन की परिस्थितियों के लिए समानता प्राप्त करना और जिसको ‘समानता : किसकी’ (equality of what) की चर्चा के अन्तर्गत भिन्न व्याख्यायें की जा सकती है।

समतावाद के स्वरूप 

समतावाद के और अधिक अध्ययन के लिए हम इसके दो स्वरूपों को पहचान सकते हैं। ये हैं :

(i) अन्तभूत (तात्विक)

(ii) यंत्रीय (सहायक)

पहला, समतावाद का तात्त्विक (Intrinsic) दृष्टिकोण समानता को अपने आप में एक अन्तर्भत अच्छाई मानता है। एक शुद्ध समतावादी के रूप में इनको सरोकार केवल समानता से है मुख्यतः सामाजिक परिस्थितियों की समानता से, जिसके अनुसार यह मूलतः गलत है कि कुछ लोग बिना किसी गलती के दूसरों से बद्तर रहें। परन्तु सामान्यत हम असमानता को हमेशा नैतिक दृष्टिकोण से गलत नहीं मानते।

तात्त्विक समतावादी उन परिस्थितियों में भी समानता का समर्थन – करते हैं जहाँ समानता लाने से प्रभावित पक्षों को किसी प्रकार का लाभ नहीं होने वाला होता अर्थात् (उदाहरण के लिए) जव समानता को केवल समाज में सभी के जीवन स्तर में कमी ला कर हो । प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु किसी भी वस्तु का तात्त्विक मूल्य तभी न्यायोचित हो सकता है। जब यह कम से कम कछ लोगों के लिए तो लाभकारी हो अर्थात् यह उनके जीवन के किसान किसी रूप में लाभकारी हो या यह उनके जीवन को किसी न किसी रूप में बेहतर बनाये।

असमानता को समाप्त करने का अर्थ है जीवन के लिए बेहतर परिस्थितियाँ जुटाना अन्यथा हम यह स्पष्ट नहीं। कर पायेगें कि हम समानता क्यों चाहते हैं। कई बार असमानता केवल तभी समाप्त की जा सकती। है यदि ऐसे लोगों को उनके स्त्रोतों तथा संसाधनों से वंचित कर दे जो अपेक्षाकृत समृद्ध है और उन्हें उसी स्तर पर लाया जाये जिस पर अन्य गरीब लोग जी रहे हैं।

तात्विक समतावादियों के अनुसार यह एक स्वीकार्य दृष्टिकोण होना चाहिए। तथापि आलोचकों का मानना है कि कुछ व्यक्तियों के संसाधनों को कम करके समानता लाना असमानता को कम करने का कोई बहुत अच्छा विकल्प नहीं है। इस प्रकार का विकल्प ऐसी परिस्थिति में ही उपयुक्त हो सकता है यदि इससे बेहतर और समान रूप से समतावादी कोई अन्य उपाय उपलब्ध न हो।

उदाहरण के लिए, बहुलवादी समतावादी केवल समानता को ही अपना अनन्य उद्देश्य नहीं मानते, वे अन्य मूल्यों एवम् सिद्धान्तों को भी महत्त्व देते हैं, जैसे, और सबसे महत्त्वपूर्ण, कल्याण का सिद्धांत अर्थात् वह जो लोगों के जीवन को बेहतर -बनाये। समानता तथा कल्याण में वे कल्याण को अधिक वरीयता देते है। दूसरे शब्दों में, समाज में सभी लोगों के जीवन को गुणात्मक दृष्टिकोण से बेहतर बनाने के लिये ये समानता में थोड़ी कमी  भी स्वीकार करने के लिए तैयार हैं (उदाहरण के लिए रॉल्स का भेदमूलक सिद्धांत)। . .

दूसरा, समतावाद का यांत्रिक (instrumental) दृष्टिकोण समानता को अपने आप में एक उद्देश्य न मान कर एक साधन अथवा यन्त्र मानता है। इसका मानना है कि जीवन की परिस्थितियों के सदंर्भ में समानता का अपने आप में कोई अर्थ नहीं है, इसका अर्थ तभी सार्थक होगा यदि इसे कुछ अन्य आदर्शों की प्राप्ती के साथ जोड़ा जाये जैसे सर्वव्यापी स्वतन्त्रता, मानवीय क्षमताओं एवम् मानवीय व्यक्तित्व का पूर्ण विकास, दु:खों में कमी, अधिपत्य तथा लाच्छनों की समाप्ती, स्वतन्त्रता के आधार पर निर्मित आधुनिक समाजों की स्थायी सुसंगति आदि।

वे लोग जो समाज में बद्तर जिन्दगी जी रहे हैं, उनके लिये असमान परिस्थितियों का अर्थ होता है कई प्रकार की हानियाँ एवम् बुराईयाँ। सामान्यत: ये हानियाँ एवम् बुराईयाँ हमारी निन्दा का पात्र होती हैं। परन्तु – इसका अर्थ यह नहीं है कि असमानता अपने आप में एक बुराई है। अत: तर्क यह है कि समानता – प्राप्ती की हमारे आदर्श की पृष्ठभूमि में समानता के अतिरिक्त कुछ अन्य मौलिक नैतिक आदर्श – होते हैं। जब हम इन आधारों पर असमानता का विरोध करते हैं तब हम समानता को एक साधन “अथवा एक सहायक उपज मानते हैं, न कि एक अनन्य उद्देश्य अथवा मूल्य। इसे यान्त्रिक समतावाद के नाम से जाना जाता है।

समतावाद की विशेषतायें

समतावाद मान्यताओं की एक कलिष्ट व्यवस्था है जो कई प्रकार के दार्शनिक पूवाग्रहों को चुनौती देता हैं। इसमें कई मान्यताओं का मिश्रण है और प्रत्येक को समानता के किसी न किसी पक्ष के साथ जोड़ा जा सकता है। इसकी कुछ एक मान्यतायें निम्नलिखित हैं

  1. एक स्वस्थ तथा अच्छे समाज के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का अधिकार है। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति केवल अस्तित्व के स्तर पर न जिये बल्कि यह जीवन सन्तुष्ट एवम् परिपूर्ण होना चाहिए।
  2. किसी व्यक्ति को निम्न दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए और न ही उसका शोषण किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति का समान सामाजिक सम्मान होना चाहिए।
  3. आयएवम् धन की समानता और अधिक होनी चाहिए। उत्पादन के स्तर पर भी समानता होनी चाहिए जिसमें अर्थव्यवस्था तथा कार्यस्थल का प्रजातान्त्रिक नियन्त्रण, तथा प्रत्येक व्यक्ति के सुरक्षित, सम्मानित, लाभदायक तथा रूचिकर कार्य का अधिकार निहित है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता सन्तुष्ट एवम् परिपूर्ण तरीके से विकसित करने का अवसर मिलना चाहिए।
  4. नागरिक अधिकारों जैसे वाक् की स्वतन्त्रता,स्वतन्त्रतापूर्वक इकंट्टे होना आदि की सुरक्षा होनी चाहिए तथा ऐसी संस्थाओं का विकास होना चाहिए जो इन औपचारिक स्वतन्त्रताओं को व्यवहारिकता में बदल सकें तथा समाज के सभी सदस्यों को समान शक्ति प्रदान कर सकें।
  5. किसी व्यक्ति को लिंग तथा लिंग वरीयता,रंग, संस्कृति, धर्म अथवा ऐसे ही किसी अन्य कारण के आधार पर दूसरों से बदत्र नहीं समझना चाहिए।

Similar Posts

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *