प्रॉब्लमैटिक ऑफ इंटरनेशन justin rosenberg के विचार

अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया में अनिश्चितता का अध्ययन व उसके विषय वस्तु के अध्ययन में क्या समस्याएं आ जाती हैं? अंतरराष्ट्रीय संबंध की विषय वस्तु अंतरराष्ट्रीय है। जैसे अंतरराष्ट्रीय संबंध को राजनीतिक विज्ञान की उपशाखा माना जाता है परंतु अंतरराष्ट्रीय संबंध की विषय वस्तु अलग है, परंतु प्रश्न यह है कि इसकी विषय वस्तु क्या है?

अंतरराष्ट्रीय संबंध का विकास

1990 में यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्स से इसका अध्ययन माना जाता है। 1920 में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पहली बार अंतरराष्ट्रीय संबंध के लिए अलग से एक विभाग की स्थापना हुई, परंतु 1980 के दशक के बाद से सिद्धांत के निर्माण को दो तरह से महत्व दिया गया है। इन सबके बीच अंतर्राष्ट्रीय की प्रकृति में क्या समस्याएं आई? इस पर विचार जस्टिन रोजनबर्ग ने प्रॉब्लमैटिक ऑफ इंटरनेशनल (Problematic of International) के मध्यम से दिया।

अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय से किस प्रकार भिन्न है कुछ चिंतक खासकर यथार्थवादी इनमें विभाजन मानते हैं परंतु कुछ समस्याएं राष्ट्रीय के साथ अंतरराष्ट्रीय भी है। डेविड हेल्ड ने इनके आच्छादित होने की बात कही। इन्होंने ओवरलैपिंग Communities or Rule का प्रयोग किया।

पहली समस्या

रोजनबर्ग चाहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय की प्रकृति ऐसी समझी जाए जो सामान्य परिकल्पना पर आधारित हो व सभी पर निर्विवाद लागू किया जाए। उनके अनुसार प्रॉब्लममैटिक प्रश्नों का एक समूह है और इन्हीं का वे राजनीतिक अर्थ में अध्ययन करना चाहते हैं।

अंतरराष्ट्रीय को दो वर्गों जनरलपर्टिकुलर के अंतर्गत समझा जा सकता है। जो समस्याएं सबसे से जुड़ी हैं वह जनरल होती है।

रोजनबर्ग के अनुसार क्रियाएं राजनीतिक हैं अतः इन क्रियाओं की प्रकृति राजनीतिक होगी। यह राजनीति की सामान्य समझ है, राजनीतिक रूप से संगठित समाज में भी अंतर क्रियाएं होती हैं, जो विद्यमान राजनीतिक समाज के मध्य जो अंतर क्रियाएं होती थी, उसे रोजनबर्ग ने जियोपोलिटिक्स कहा है।

जियोपोलिटिक्स की क्रियाएं

  • आर्थिक व तकनीकी संबंध
  • सामाजिक व सांस्कृतिक संबंध
  • राजनीतिक संबंध, युद्ध, कूटनीति

Politics और Geopolitics में क्या Problematic है?

अंतर्राष्ट्रीय सरकारीय स्तर पर नहीं होती उनका राजनीतिक स्तर पर नियंत्रण कैसे किया जाए यह मुख्य प्रश्न है?

घरेलू समाज के अंदर और बाहर आने वालों की नैतिक समझ अलग है। यह एक संरचना का विषय है।

जो संपूर्ण है वह हिस्सों से मिलकर बना है। अतः जब सिद्धांत निर्माण होगा तो संपूर्ण पर ध्यान केंद्रित करेंगे। रोजनबर्ग के अनुसार दोनों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय की पार्टिकुलर के अंतर्गत समझ

राज्य का स्वरूप हमेशा बदलता रहता है पांचवीं शताब्दी पूर्व में ग्रीक नगर राज्य हुआ करते थे। इसके पश्चात रोमन साम्राज्य आया फिर यूरोपियन व्यवस्था व वर्तमान में खास आधुनिक राष्ट्र राज्य का स्वरूप उभरा इसी प्रकार वैश्वीकरण का भी वर्तमान समय में खाद अर्थ है। [नीचे दिए पीडीएफ से आगे और पढ़े……]

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