संविधान का दर्शन | philosophy of the indian constitution
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संविधान का दर्शन | philosophy of the indian constitution

भारतीय संविधान के दर्शन की शुरुआत प्रमुख रूप से 1922 से मानी जा सकती है जब गांधी जी ने मांग की थी कि भारतीय संविधान सभा का निर्माण भारतीयों द्वारा किया जाना चाहिए। इसके पश्चात 1928 में नेहरू रिपोर्ट में भी इस बात का समर्थन किया गया कि भारतीय द्वारा ही संविधान सभा का निर्माण…

राज्य-नीति के निर्देशक तत्त्व | Directive Principles of State Policy
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राज्य-नीति के निर्देशक तत्त्व | Directive Principles of State Policy

राज्य-नीति के निदेशक तत्त्व हमारे संविधान की संजीवनी व्यवस्थाएँ हैं। इन सिद्धांतों में हमारे संविधान का और उसके सामाजिक न्याय दर्शन का वास्तविक तत्त्व निहित है। ये तत्त्व हमारे संविधान की प्रतिज्ञाओं और आकांक्षाओं को वाणी प्रदान करते हैं। संविधान निदेशक सिद्धान्तों का मार्ग प्रशस्त करता है और निदेशक सिद्धांत एवं उनका क्रियान्वयन संविधान को…

मौलिक अधिकार | fundamental right of indian constitution
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मौलिक अधिकार | fundamental right of indian constitution

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की माँग यह थी कि भारत के हर व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। 1918 में भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस ने यह माँग की थी कि मोटफॉर्ड रिर्पोट में भारत के लोगों के अधिकारों की घोषणा होनी चाहिए। 1928 में एक सर्वदलीय समिति बनी। श्री मोती लाल नेहरू उस समिति के…

संविधान की प्रस्तावना | Preamble of Indian Constitution
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संविधान की प्रस्तावना | Preamble of Indian Constitution

प्रत्येक देश के संविधान की अपनी एक प्रस्तावना होती है जिसके द्वारा संविधान निर्माण के उद्देश्य, समाज की आवश्यकताओं और सरकार की विचारधारा का पता चलता है। सी. जे. फ्रेडरिक ने कहा है कि प्रस्तावना के द्वारा जनमत प्रतिबिम्बित होता है और इसी से संविधान अपनी सत्ता को प्राप्त करता है। के. एम. मुन्शी ने…

प्रक्रियात्मक लोकतंत्र क्या है?
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प्रक्रियात्मक लोकतंत्र क्या है?

प्रक्रियात्मक लोकतंत्र  (Procedural Democracy) वृहत् व जटिल समाजों में, लोगों के लिए यह हमेशा संभव नहीं होता कि हरेक मामले पर निर्णय करने के लिए एक साथ मिल बैठे, जैसा कि वे प्राचीन एथेंस के प्रत्यक्ष लोकतंत्र में करते थे। यही कारण है कि आधुनिक लोकतंत्र प्रतिनिधि संस्थाओं के माध्यम से काम करता है। लोग…

प्रतिनिधित्व और सहभागिता | Representation and Participation
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प्रतिनिधित्व और सहभागिता | Representation and Participation

 प्रतिनिधित्व और सहभागिता  वर्तमान समय में अधिकांश लोकतंत्रों की प्रकृति अप्रत्यक्ष और प्रतिनिधिमूलक ही है। बहरहाल, यह एक महत्वपूर्ण । सवाल है कि प्रतिनिधित्व करने का क्या अर्थ है? क्या एक प्रतिनिधि होने का अर्थ डेलिगेट होना है, अर्थात् क्या इसका अर्थ अपने मतदाताओं की इच्छाओं को आवाज़ देना है? हालाँकि, एक व्यापक भौगोलिक क्षेत्र…

विमर्शी लोकतंत्र क्या है
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विमर्शी लोकतंत्र क्या है

 विचारणात्मक लोकतंत्र (विमर्शी लोकतंत्र ) विचारणात्मक लोकतंत्र या विचार-विमर्शमूलक लोकतंत्र के सिद्धांत को 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों से विशेष लोकप्रियता मिली है। इसके प्रवर्तकों में जे. कोहेन एवं – जे. रॉजर्स (ऑन डेमोक्रेसी: टुवार्ड ए ट्रांस्फार्मेशन ऑफ़ – अमेरिकन सोसायटी)(1983) और एस.एल. हली (नेचुरल रीजन्सः पर्सनैलिटी एंड पॉलिटी) (1989) का विशेष – स्थान है।…

लोकतंत्र का इतिहास | लोकतंत्र का विस्तार  व  लोकतंत्रिकरण
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लोकतंत्र का इतिहास | लोकतंत्र का विस्तार व लोकतंत्रिकरण

लोकतंत्र का “आधुनिकता की विशेषतासूचक संस्थाओं’ में से एक के रूप में वर्णन किया गया है, और ऐसा माना जाता है कि यह वैचारिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन की जटिल व अन्तर्गुथित प्रक्रियाओं का परिणाम था। ब्रिटेन में इस परिवर्तन का संकेत औद्योगिक क्रांति से मिला जो अठारहवीं शती के मध्य में आरम्भ हुई, जबकि…

नरिवाद क्या हैं ? | नारीवाद के प्रकार | केट मिल्लेट के विचार | गेरडा लरनर के विचार
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नरिवाद क्या हैं ? | नारीवाद के प्रकार | केट मिल्लेट के विचार | गेरडा लरनर के विचार

‘नारीवाद’ शब्द लैटिन शब्द ‘फेमिना’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘महिला’ इस शब्द को पहली बार महिला अधिकार व समानता के लिए चलाए जा रहे आंदोलन  के संबंध में इसका इस्तेमाल किया गया था। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ‘नारीवाद’ को स्त्री या नारी होने की स्थिति के रूप में परिभाषित करती है। वेबस्टर डिक्शनरी ने ‘नारीवाद’…

रूढीवाद – अर्थ, प्रकार, विशेषताएं व इसके विभिन्न प्रयोग
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रूढीवाद – अर्थ, प्रकार, विशेषताएं व इसके विभिन्न प्रयोग

रुढिवाद’का अर्थ रुढिवाद’ की अवधारणा के अनेक अर्थ लिए जाते हैं। यह एक ऐसे व्यक्ति का बोध देता है, जिसका यवहार नम्र अथवा चौकस होता है, अथवा ऐसा व्यक्ति जिसकी जीवन-शैली प्रायः पारंपरिक, नैष्ठिक अथवा जो परिवर्तनों से संकोच करता है अथवा उनसे डरता है। रूढ़िवाद ऐसी विचारधारा है, जो पक्ष की अपेक्षा विरोध अधिक…