लोक प्रशासन के आयाम व दृष्टिकोण
लोक प्रशासन के प्रमुख तीन आयाम है:-
1. लोक प्रशासन एक संरचना के रूप में
2. लोक प्रशासन एक कौशल के रूप में
3. लोक प्रशासन एक संस्था के रूप में
लोक प्रशासन एक संरचना के रूप में:-
(1) पारंपरिक संरचनावादी:-
इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन का अध्ययन या विश्लेषण एक संरचना के रूप में करना चाहिए। संरचना के रूप में लोक प्रशासन तमाम तरह की नीतियों और निर्णय का क्रियान्वयन करती है जो कि कार्यपालिका और विधायिका बनाती है।
संरचना के रूप में लोक प्रशासन में योग्य पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है और उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके माध्यम से लोक प्रशासन अपने लक्ष्य और आदर्श को प्राप्त कर सकता है।
लोक प्रशासन मुख्य रूप से कानून आधारित है लेकिन इससे एक समस्या पैदा होती है कि लोक प्रशासन का जन्म कानून पालन करने के लिए हुआ है ना कि देश के कल्याण हेतु।
(2) नव संरचनावादी:-
लोक प्रशासन के नव संरचनावादी दृष्टिकोण के प्रमुख विद्वान हैं डोनाल्ड केटल तथा इनकी कृति है “द ग्लोबल पॉलिटिक्स मैनेजमेंट रिवॉल्यूशन” तथा “द रिपोर्ट ऑन द ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ गवर्नमेंट”। नव संरचनावादी लेखकों ने निम्न बिंदुओं पर जोर दिया है:-
1. प्रासंगिकता:- इनके अनुसार लोक प्रशासन परंपरागत रूप से कार्य दक्षता तथा अर्थव्यवस्था से जुड़ा होता है। नव संरचना वादी लेखकों का मानना है कि लोक प्रशासन में नई बातों को जोड़ना चाहिए की लोक प्रशासन को समकालीन समस्याओं तथा मुद्दों पर भी अपनी राय देनी चाहिए।
2. लोचशील:- नव संरचना वादी लेखकों का मानना है कि लोक प्रशासन में लोचशीलता होनी चाहिए, समय व परिस्थितियों के अनुसार लोक प्रशासन में बदलाव आए।
3. परिणाम उन-मुखी:- लोक प्रशासन को परिणाम मुखी होना चाहिए।
4. लक्ष्य प्राप्ति:- लोक प्रशासन को लक्ष्य प्राप्ति होनी चाहिए।
5. सेवा उन-मुखी:- लोक प्रशासन को सेवा मुखी होना चाहिए।
लोक प्रशासन एक कौशल के रूप में:-
कौशलवादी दृष्टिकोण 1940 के बाद आया जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। लोक प्रशासन में कौशल उसकी सफलता और असफलता को दर्शाता है। कौशल दृष्टिकोण संरचनात्मक कौशल और कुशलता पर निर्भर होती है।
कौशल तीन प्रकार के होते हैं:-
-
प्रशासकीय
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व्यावहारिक
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समाजिक
1. प्रशासकीय कौशल:- प्रशासकीय कौशल से अभिप्राय है कि समय से ज्यादा तीव्र हो, समय का ध्यान रखा जाए तथा कम से कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त किया जा सके।
2. व्यावहारिक कौशल:- व्यावहारिक कौशल से अभिप्राय है कि उचित संचार का गुण, उत्साह वर्धक गुण होना जो दूसरे संगठनों से सहायता ले सके। व्यावहारिक कौशल सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है।
3. समाजिक कौशल:- समाजिक कौशल से अभिप्राय है सामाजिक रूप से प्रशासन को समाज से जोड़ सकें, लोगों की भागीदारी अधिक से अधिक हो सके, प्रशासन को नागरिकों के हितों को ध्यान में रखना चाहिए तथा सामाजिक रुप से जुड़ा होना चाहिए।
एक सफल प्रशासक के लिए कौशल वादी दृष्टिकोण के अनुसार यह तीनों गुणों का होना आवश्यक है। आधुनिक समय में लोक प्रशासन में एक नए तरह के कौशल पर जोर दिया जा रहा है- इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट स्किल / कॉर्पोरेट स्कीम।
लोक प्रशासन एक संस्था के रूप में:-
लोक प्रशासन का संस्थात्मक दृष्टिकोण जो 1970 के बाद के विकास की तरफ इशारा करता है। नव लोक प्रशासन ने पूरी स्पष्टता के साथ अपने मूल्यपरक सरोकार को घोषित किया इसने प्रबंधन मुखी लोक प्रशासन और व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान के मूल्य निरपेक्ष दृष्टिकोण को खारिज कर दिया। नव लोक प्रशासन का कहना है कि लोक प्रशासन तमाम मूल्यों का समूह है क्योंकि वह लोगों के व्यवहार से जुड़ा हुआ है। नव लोक प्रशासन मूल्य आधारित होना चाहिए। यह तटस्थ कम और मूल्यपरक ज्यादा है उससे वैज्ञानिक होने की उम्मीद की जाती है।
लोक प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त होना चाहिए:- संस्थात्मक दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त होना चाहिए लोक प्रशासन ने न्याय होना चाहिए भ्रष्टाचार नहीं ताकि वह किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए तैयार रहे।
लोक प्रशासन में नियमों के प्रति नहीं बल्कि मूल्यों के प्रति अधिक झुकाव होना चाहिए क्योंकि लोक प्रशासन में लोगों का कल्याण सरकार के मूल्यों के प्रति झुकाव से होता है।
निष्कर्ष
100 वर्षों में प्रारंभिक आयाम लोक प्रशासन को संरचना के रूप में विकसित करते हैं। व्यवहारवादी, कौशलवादी, व्यवहारवाद के रूप में देखते हैं। संस्थावादी लोग संस्था के रूप में देखते हैं। कोई भी एक आयाम अकेले लोक प्रशासन की समीक्षा के लिए काफी नहीं है। लोक प्रशासन को बेहतर समीक्षा के लिए उसके तीनों आयामों को समझना आवश्यक है।