नव-उदारवादी संस्थावाद [Neo-Liberal Institutionalism]
नव-उदारवादी संस्थावाद
By:- joseph M. Gricco
1980 के दशक में बहुलवाद का तत्व ज्ञान नवउदारवाद संस्थावाद के रूप में आया है। बहुलवाद के लेबल के साथ यह समस्या थी कि कुछ विचारको को इस आंदोलन से जुड़ा हुआ समझा गया जबकि उदार संस्थावाद ने कई नए प्रभावशाली विचारकों को इसकी और आकर्षित किया और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के उत्तरी अमेरिकी स्कूलों की श्रंखला में यह नवरुढिवाद बन गई है।
नव उदारसंस्थावाद के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित चार सिद्धांतों के रूप में उद्घोषित किए जा सकते हैं:-
अभिकर्ता :- उदार संस्थावादी समाज के वैज्ञानिक प्रतिनिधित्व के रूप में राज्य को लेते हैं। यद्यपि अपने पहले बहुलवादी कार्य में गैर राज्य अभीकर्ताओं के महत्व पर जोर देते हुए रॉबर्ट कोहेन की नव उदारसंस्थावाद की समझ कहती है कि गैर राज्य अभिकर्ता राज्यों के अधीन होते हैं।
संरचना:- उदारवादी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अराजकता की संरचनात्मक परिस्थितियों से सहमत हैं लेकिन अराजकता का अर्थ यह नहीं है कि राज्यों के मध्य सहयोग असंभव है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय Regimes का अस्तित्व है।
प्रक्रिया :- वैश्विक तथा क्षेत्रीय स्तर पर एकीकरण बढ़ रहा है यूरोपियन यूनियन का भावी निर्देश नव उदारवाद के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण माना जा सकता है।
अभिप्रेरण :- एक राज्य मेल मिलाप से ज्यादा लाभ प्राप्त करता है तो राज्य सहकारी संबंधों में प्रवेश करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो उदार संस्थावादियों के लिए अपेक्षित लाभ से ज्यादा निरपेक्ष लाभ ज्यादा महत्व रखता है।
इन संदर्भों को ध्यान में रखते हुए ही उदार संस्थावाद विकसित हुआ है। एक्सलरोड, कोहेन, कैनथ जैसे उदार संस्थावादियों द्वारा नव यथार्थवाद के सिद्धांत के प्रत्युत्तर के तौर पर यह विचार विकसित किया गया इसके अतिरिक्त मुख्य धारा में इसलिए भी आया क्योंकि उस समय 1980 के दशक में रेडिकल समालोचनात्मक सिद्धांत एक चुनौती के रूप में सामने आ रहा था, इसके विरोध में इसीलिए उदार संस्थावाद उभर कर आया।
यह उदार संस्थावाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बारे में पुरानी उदारवादी सोच के बजाय समकालीन यथार्थवाद के अधिक निकट है। डेविड मित्रानी तथा अर्नेस्ट जैसे उदार संस्थावादी यह संकेत करते थे कि यदि राज्य चाहे तो न्याय तथा व्यवस्था के उदारवादी लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने स्थानीय सरकार, क्षेत्रीय सभाओं की शक्ति बढ़ाने की बात कही या विश्व सरकार अथवा अधिराज्य संगठन को विकसित करने पर जोर दिया।
उनका मत है की प्राचीन उदार संस्थावादियों द्वारा दर्शाए गए राज्य आधारित संस्थावाद तथा नवउदार संस्थावाद के स्वसंतुष्ट राज्यवाद के मध्य विभाजन उदार संस्थागत तथा उदारवादी सोच के दोनों अवयवों के मध्य विभाजन को दर्शाता है। उदार संस्थावाद तथा आदर्शवाद दोनों ने आलोचनापूर्ण तथा समकालीन उदार संस्थावाद से ज्यादा राजनीतिक है।
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कोहेन परंपरागत उदारवादियों की इस अवधारणा की सहजता से आलोचना करते हैं कि वाणिज्य व्यापार शांति को जन्म देगा। कोहेन के अनुसार मुक्त व्यापार व्यवस्था सहयोग प्रोत्साहन जरूर देता है परंतु यह शांति स्थापना की कोई गारंटी नहीं देता है। इस प्रकार कोहेन यहाँ सामंजस्य तथा सहयोग में भेद कर रहे हैं। वह कहते हैं सहयोग स्वचालित नहीं है या स्वतः नहीं होता लेकिन इसके लिए योजना तथा मध्यस्थता की आवश्यकता होती है। इस प्रकार हम यहां युद्ध के दौरान आए आदर्शवादियों तथा उदारवादियों के मध्य आच्छन्दन पाते हैं।
नव उदारवादी संस्था वाद की मूल विशेषताएं
जैसा कि हम जानते हैं कि नव उदारवादी यह स्वीकार करते हैं कि राज्य अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रमुख करता होते हैं। फिर भी वह यथार्थवादियों का यह तर्क स्वीकार नहीं करते कि केवल राज ही महत्वपूर्ण अभिकर्ता होते हैं। उदार संस्थावादियों के अनुसार राज्य विवेकशील तथा साधक अभिकर्ता होते हैं। जो सभी क्षेत्रों में अपने हितों में अभिवृद्धि का प्रयास करते हैं।
नवउदारवादियों का यह भी विश्वास है कि आधुनिक प्रतिस्पर्धा परिवेश में राज्य सहयोग के द्वारा अपने पूर्ण लाभ में अधिक वृद्धि करना चाहते हैं क्योंकि उनका विवेकशील आचरण सहयोग आधारित व्यवहार के मूल्यों से उन्हें अवगत करवाता है। सहयोगी व्यवस्था में राज्यों की रूचि अन्य राज्यों के लाभ में निहित होती है। परंतु इन नव उदारवादीओं का मानना है कि सफल सहयोग के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अन्य राज्यों द्वारा आज्ञा पालन ना करने की शंका या धोखा देने की संभावना होती है।
इस प्रकार की शंका का मूल कारण राज्यों की संप्रभुता है जिसके कारण उनमें एक दूसरे के प्रति अविश्वास उत्पन्न होता है। फिर भी नव उदारवादियो का विश्वास है कि आज्ञाकारिता के अभाव तथा धोखाधड़ी के भय को कम किया जा सकता है चाहे उसे पूरी तरह दूर ना भी किया जा सके। ऐसा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में उचित संस्थाओं की स्थापना द्वारा संभव हो सकता है।