भारत में अंतर सरकारी संबंध
भारत में अंतर सरकारी संबंध
भारत में अंतर सरकारी संबंध “विधायी संघवाद” के बजाय “कार्यकारी संघवाद” का एक बड़ा मामला रहा है जो राज्यसभा के माध्यम से कभी नहीं प्राप्त हो सका । अंतर सरकारी संबंधों के तंत्र पूरी तरह से किसी भी देश में केवल औपचारिक संवैधानिक प्रावधानों का एक मामला नहीं हो सकता है । ऐसे संबंधों के लिए इस तरह के परिमाण और आकस्मिकता एक कठोर कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से कल्पना करने और विनियमित करने के लिए उत्तरदायी नहीं है ।
भारत सरकार ने अंतर-राज्य परिषद (ISC) की स्थापना के लिए प्रदान किए गए संविधान के अनुच्छेद 263 के संबंध में विभिन्न बिंदुओं पर अलग-अलग दृष्टिकोण प्रदर्शित किए हैं । 1950 से 1990 तक पहले पांच प्रधानमंत्रियों ने इस संवैधानिक जनादेश के तहत अंतर-राज्य परिषद का गठन नहीं किया तथा उन्होंने इसके बजाय गैर-संवैधानिक निकायों जैसे:- राष्ट्रीय विकास परिषद, मुख्यमंत्री, मंत्रियों, सचिवों के सम्मेलनों जैसे:- तदर्थ अंतर-सरकारी सम्मेलनों का आयोजन करना पसंद किया। 1990 में अंतर-राज्य परिषद की स्थापना नई दिल्ली में पहली गठबंधन सरकार ने की थी जो गैर कांग्रेसी दलों के एक समूह द्वारा बनाई गई थी जिसने जनता दल के वी पी सिंह के प्रधानमंत्री काल में खुद को राष्ट्रीय मोर्चा कहा था ।
प्रमुख अंतर सरकारी संबंधों के मंच
औपचारिक या अनौपचारिक की अलग-अलग स्तर के साथ कई निकाय और प्रक्रियाएं हैं जिनके माध्यम से भारत में अंतर-सरकारी संबंध आयोजित किए गए हैं । कार्यात्मक रूप से कई ऐसे निकाय वर्षों में उभरे हैं कुछ कैबिनेट प्रस्ताव, कुछ संसद के अधिनियम के तहत, और कुछ राज्य सरकारों की पहल पर ।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संवैधानिक औपचारिकता का पहला स्तर जिसके तहत आइएससी अनुच्छेद 263 के तहत स्थापित किया गया था । संस्थागत औपचारिकता का दूसरा स्तर जिसके तहत संसदीय अधिनियम द्वारा निकायों को स्थापित किया जाता है,जैसे:- जोनल काउंसिल
निकायों को चिन्हित करने वाली संस्थागत औपचारिकता की तीसरी स्तर एक कैबिनेट संकल्प द्वारा निर्धारित की जाती है, जैसे:- राष्ट्रीय विकास परिषद
संघ राज्य सरकारों की पहल पर अनौपचारिक अंतर-सरकारी तंत्र कठोरता से असंवैधानिक नहीं है लेकिन वह निश्चित रूप से अतिरिक्त संवैधानिक है।
सदस्यता, स्वायत्तता, हितों का प्रतिनिधित्व और निर्णय निर्माण
आईएससी और एनडीसी की सदस्यता में अतिव्यापी है कि इन दोनों निकायों में प्रधानमंत्री और कुछ प्रमुख केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रभावी कार्यकारी प्रमुख शामिल है । एनडीसी की स्थापना योजना आयोग द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय योजनाओं की समीक्षा करने तथा अंतिम रूप देने व राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक, आर्थिक नीतियों के प्रश्नों पर ध्यान देने के लिए की गई थी।
राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत स्थापित 5 जोनल काउंसिल उच्च स्तरीय सलाहकार निकाय है जिनमें प्रमुख रूप से उस क्षेत्र के मुख्यमंत्री, विकास मंत्री, तथा इन राज्यों के मुख्य सचिव और योजना आयोग के सदस्य शामिल हैं। प्रत्येक जोनल काउंसिल की अध्यक्षता केंद्रीय गृहमंत्री करते हैं।
इसका उद्देश्य अंतर-राज्य समस्याओं के समाधान संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना तथा संपूर्ण संघ-राज्य संबंधों के निर्माण के लिए प्रत्येक क्षेत्र में एक साझा बैठक बुलाने की व्यवस्था करना है । क्षेत्रीय विकास के लिए जोनल काउंसिल एकमात्र इंटरगवर्नमेंटल रिलेशन तंत्र है यह आशा की गई थी कि यह निकाय केंद्र के नीचे और राज्यों के ऊपर मध्यवर्ती स्तर पर केंद्रीयकरण के एक तंत्र के रूप में काम करेंगे ।
आईएससी के मामले में व्यवसाय के नियमों की जितनी आवश्यकता है उतनी ही अधिक संवैधानिक पवित्रता की तथा उतनी ही एक बैठक बुलाने के लिए संघ की आवश्यकता है। इससे पहले एजेंडा और चर्चा के मुद्दे पूरी तरह से प्रधानमंत्री के विवेक के तहत थे, लेकिन मुख्यमंत्री एक संशोधित नियम के तहत कुछ मुद्दों को उठा सकता है ऐसा जब से हुआ है तब से निर्णय बहुमत पर नहीं बल्कि सर्वसम्मति के द्वारा प्रधानमंत्री के रूप में होता है । अगर संघ का प्रस्ताव कुछ राज्यों को बुरी तरह से प्रभावित करता है, तो वह अपनी बातों को सामने रखने के लिए और अधिक तैयार हो जाते हैं और इस प्रस्ताव का विरोध करते हैं तो वह केंद्र के खिलाफ एकजुट होते हैं ।
उदाहरण:- अगस्त 2003 में श्रीनगर में आईएससी की नवीनतम बैठक में सर्वसम्मति से राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा के लिए सुरक्षा उपायों को शामिल करने के लिए अनुच्छेद 356 में संशोधन करने का निर्णय लिया गया । इस पर दो मुख्यमंत्री जो कि पंजाब और तमिलनाडु के थे कहा कि यह अधिक वांछनीय होगा यदि अनुच्छेद 356 संविधान से हटा दिया गया ।
एन डी सी का उपयोग मुख्य रूप से योजना की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने और संघ और राज्य सरकारों के कार्यकारी प्रमुख द्वारा योजना दस्तावेज के अनुमोदन के लिए किया गया है । एन डी सी एक नीति बनाने वाली संस्था है और इसकी सिफारिशें सिर्फ सलाह देने वाली नहीं बल्कि नीतिगत निर्णय और नीति निर्देशक के लिए एक राष्ट्रीय मंच है, जो केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को अंतर्निहित अवधारणा को अनौपचारिक मंजूरी देता है तथा यह राष्ट्रीय योजना के संगठन के साथ एक जैविक संबंध में राज्यों को लाता है ।
एन डी सी के संदर्भ में कम से कम कभी कभार असंतोष और गंभीर आवाजें सुनी गई हैं, उदाहरण के लिए राज्य सरकारों ने यह कई बार शिकायत किया है कि एजेंडे के कागजात उन्हें देर से भेजे जाते हैं
कार्यान्वयन और अनुवर्ती कार्यवाही
इस संबंध में आईएससी का प्रदर्शन लाजमी था अब तक शायद ही कोई संवैधानिक संविधान या संसदीय अधिनियम आइएससी द्वारा अब तक की गई राजनीतिक संस्थागत आयाम से संबंधित सिफारिशों के अनुसरण में है ।
उदाहरण के लिए- सरकारिया आयोग को रिपोर्ट ने एनडीसी और योजना आयोग की संवैधानिक अतिक्रमण और वित्त आयोग की स्थापित निकाय बनाने की सिफारिश की थी जहां तक एनडीसी का संबंध है अगले एनडीसी तक राजनीतिक स्तर पर शायद ही कोई अनुवर्ती हो। मंत्री और सचिवों के सम्मेलन के मामले में एक बार निर्णय लेने के बाद इसे संबंधित पक्षों पर छोड़ दिया जाता है निर्णयो को लागू करने के लिए।
प्रभावशीलता
इन निकायों की प्रभावशीलता को मापना तथा इनका मूल्यांकन करना इतना आसान नहीं है लेकिन फिर भी इसके प्रभाव को देखा गया है। इनकी प्रभावशीलता को प्रभावित करने वाले कारकों में कुछ मुख्य तंत्र हैं-
1. आईएससी और एनडीसी के कामों में टकराव का सबसे महत्वपूर्ण कारण पार्टी सिस्टम है ।
2. दूसरा कारक जो इन तंत्रों की प्रभावशीलता को प्रभावित करता है, मुद्दों की पहचान करना है। उदाहरण के लिए विकासात्मक और अन्य गैर विवादास्पद मुद्दों को एक अंतर सरकारी समाधान पर हल करने की अधिक संभावना है।
3. एक अन्य महत्वपूर्ण कारक संबंधित प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के व्यक्तित्व का है एक अंतर-सरकारी मंच पर दोनों पक्षों में मजबूत व्यक्तित्व का है जिसमें कम संभावना एक सहमति परिणाम का अवसर है ।
4. इसके अलावा जनसांख्यिकीय और भौगोलिक कारक छोटे राज्यों की तुलना में बड़े राज्यों के राजनीतिक वजन में अंतर को प्रभावित करते हैं ।
सुधार
जहां तक सुधार या परिवर्तन के सुझाव का सवाल है सरकारिया आयोग रिपोर्ट 1983 में इन तंत्रों पर अधिक ध्यान दिया था और इनके संवैधानिकरण और संघीकरण के लिए अधिक से अधिक अवधि की सिफारिश की थी ।
वेंकटचलिया संविधान समीक्षा आयोग रिपोर्ट 2002 ने भी आई एस सी के महत्व को रेखांकित किया व अधिक न्यायसंगत संघ-राज्य संबंधों को विकसित करने के लिए इसकी सिफारिश की है, इसके अतिरिक्त कुछ प्रक्रियात्मक सुधार जैसे कि नियमित एजेंडे और अधिमानतः, कैमरे के बैठक व उन्नत एजेंडा तथा साथ ही कुछ महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधारों की ।