नरिवादी उपागम [अनटर्राष्ट्रीय संबंध] | Jacqui True के विचार
नारीवाद अध्ययन का इतिहास कुछ खास पुराना नहीं है नारीवाद अध्ययन अंतरराष्ट्रीय संबंधों को समझने के लिए एक नया नजरिया प्रदान करता है जिसमें मूल रूप से निम्न प्रश्न उठाया गया है:-
Christine Sylvester का मत है कि महिला जिसे नीचे दायरे तक सीमित रखा गया है तथा उनके गुण, नैतिकता, वस्तुपरकता, मातृत्व को भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन का विषय होना चाहिए।
Rebecca Grant का मानना है कि नारीवादी दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के साथ ही शुरू हो गया था जब विश्व युद्ध हो रहा था तथा इसके पश्चात ही अमेरिका और लंदन में महिला के अधिकारों की बात उठाई जा रही थी।
नारीवादी विचारधारा में ऐसे भी विचारक रहे हैं जिन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में रहकर शासन के तरीकों लोकतंत्र, सार्वभौमिक अधिकार, जैसे मुद्दों को महिलावादी दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास करते हैं। नारीवादी दृष्टिकोण को किसी निश्चित रूप रेखा में ढाला नहीं जा सकता है बल्कि विविध व्याख्यान क्षेत्रों के माध्यम से समझाया जा सकता है-
उदाहरण के लिए:–
इन्हीं रूपों में तृतीय विश्व महिलावादी को उत्तर आधुनिकवादी नारीवाद के नाम से जाना जाता है।
पिछले कुछ समय से नारीवादी विचारधारा को विशिष्ट व्याख्यान अंतरराष्ट्रीय संबंधों के व्याख्यान के रूप में देखा जा रहा है तथा यह मुख्य रूप से 1990 के उत्तर काल में देखा गया है। नारीवादी दृष्टिकोण को वर्तमान दौर में भी वास्तविक राजनीति से दूर रखा गया है तथा राज्य को विशिष्ट लिंग प्रभुत्व के रूप में ही देखा गया है जो Epistemology पर आधारित है इस रूप में यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य की प्रकृति में लैंगिक असमानता नजर आती है।
नारीवादी विचारकों का कार्य वहां और बढ़ जाता है जहां वह दोहरी भूमिका निभाते हैं-
नारीवादी विचारधारा के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय संबंध के अध्ययन को Deconstruct (पुनःरचना/विखंडन) करने का प्रयास किया है। नारीवादी विचारधारा में तीन अंतर संबंध चुनौतियां हैं-
अंतरराष्ट्रीय संबंध में नारीवादी दृष्टिकोण को समझने के लिए लिंग को समझना आवश्यक है नारीवादियों का मत है मानव द्वारा निर्मित प्रत्येक संरचना लैंगिक आधार पर निर्मित है। यहां इन्होंने पुरुष तत्व को संरचना का आधार एवं महिला को दरकिनार किया है साथ ही साथ पुरुष तत्व को के गुणों को पुरुष के साथ इस प्रकार जोड़ा है कि यह स्वतः संप्रभु, सार्वभौमिक सोचने की क्षमता, शासन की क्षमता, पुरुषों में ही होती है तथा यह सभी गुणों को महिला के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।
दैनिक जीवन में सैनिक कार्य को देखा जा सकता है जहां पुरुष प्रधानता को साफ रूप से समझा जा सकता है सेना में प्रयोग में आने वाले प्रत्येक गुणों को मात्र पुरुष से संबंधित कर ही समझा जा सकता है तथा वहीं पुरुष द्वारा अपनी पुरुष की वैधानता महिला के ऊपर प्रभुत्वता, महिला की भावना को दबाने आदि कारणों से वैधानता मिली हुई है। नारीवादी विचारको द्वारा लैंगिक शक्ति को कमजोर तीन रूपों में करने का प्रयास किया है-
1.उत्तर अनुभव वादी नारीवाद
इस मत के विचारको ने माना है कि यह धारणा गलत है कि महिला प्रत्येक वह कार्य नहीं कर सकती जो पुरुषों द्वारा किया जा सकता है तथा महिला भी राज्य की सुरक्षा संबंधी कार्यों को उतनी ही निपुणता से कर सकती है जितना की पुरुष।
इन विचारको का मानना है कि पुरुष को मिली शक्ति पर प्रश्न उठाना चाहिए तथा इन्हें महिला के समकक्ष रखकर समानता के पैमाने पर आंकना चाहिए। इन विचारको का मत है जहां एक तरफ मार्गरेट थैचर तथा बेनजीर भुट्टो महिला को शक्ति का एक रूप प्रस्तुत करते हैं वहीं कई जगहों पर महिला को प्रभुत्ववादी बताया जाता है।
उदारवादी महिलावादी लिंग तथा जेंडर के मध्य अंतर नहीं करते तथा दोनों को समान मानते हैं जिसके अंतर्गत पुरुष शक्ति के प्रधान में बात की जाती है।
2. मातृत्व
इसके अंतर्गत महिला की मातृ संबंधी गुणों पर ध्यान आकर्षित किया जाता है। इन विचारको द्वारा महिला के मातृत्व गुणों को प्रमुखता से समझाया जाता है तथा यह मानते हैं कि महिला में मौजूद मातृत्व का गुण, देखभाल का गुण, तथा अन्य विशिष्ट गुण, पुरुष लोगों के समान ही महत्वपूर्ण होता है।
इसके अंतर्गत यह बताने का प्रयास किया जाता है कि किस प्रकार समाज में ऐसी संरचना का निर्माण किया गया है जहां महिला को दबाया गया है तथा इस संरचना को कैसे परिभाषित किया जाए इस पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं।
इन विचारको का मानना है कि हम पुरुष प्रधान शक्ति प्रदत समाज का सम्मान तब कर सकते हैं जब हम समाज में महिला द्वारा सहे जाने वाले विषयों पर ध्यान पूर्वक अध्ययन करें।
3. उत्तर आधुनिक नारीवाद
तीसरी चुनौती के रूप में उत्तर आधुनिक नारीवादी यह प्रश्न उठाते हैं कि पुरुष तत्व किस प्रकार मातृत्व से भिन्न है तथा दबाव के रूप में कार्य करता है या कहें की इसमें आसमान विभाजन विद्यमान है। जेंडर और सेक्स की उत्पत्ति पर भी प्रश्न उठाते हैं तथा इस द्वंद के मध्य से कई अन्य नारीवादी विचारधारा उत्पन्न हुई है जो सेक्स/जेंडर विवाद पर आधारित है। जो उन्हें राजनीतिक एवं सांस्कृतिक (सामाजिक) द्वारा स्थापित मानते हैं।
Gender as a variable
अंतरराष्ट्रीय संबंधों को चुनौती देने के रूप में सबसे पहला मत उदारवादियों द्वारा दिया गया है तथा उन्होंने माना है कि महिला अंतर्राष्ट्रीय संबंध में शुरू से होने के बावजूद उनके मतों को शुरुआती काल में नहीं रखा गया। तथा महिलाओं के अनुभवों को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जगह नहीं दिया गया तथा यह कारण है जिसके वजह से अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रमुख सिद्धांतों में पुरुष प्रधानता रही है
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मूल रूप से स्टेट क्राफ्ट किस प्रकार कार्य करता है तथा प्रतियोगिता, डर, झगड़ों व अराजकता जैसे विषयों पर अपना मूलाधार रखा है। इस मत के विचारको का मानना है कि महिला एवं पुरुष को समाज में आसमान कार्य विभाजन से महिला की सामाजिक स्थिति प्रभावित होती है। उन्होंने माना है की सार्वजनिक क्षेत्र में पुरुषों द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें मजदूरी दी जाती है जबकि महिलाओं द्वारा किए गए कार्यों को कम महत्व दिया जाता है व मजदूरी भी कम दी जाती है। जबकि यदि महिलाओं के निजी कार्यों को देखा जाए तो इसे हम पैसा या मजदूरी से तोल ही नहीं सकते।
Women in development (WID) इसका निर्माण 1970–80 में हुआ था जिसका कार्य महिलाओं की भूमिका को उजागर करना तथा उन्हें न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। जिसके माध्यम से वह अपना विकास सुनिश्चित कर सके यह इसके लिए प्रयास करता है। इन विचारको का यह भी मानना है कि किसी भी देश की योजनाओं जिसमें विकास किया जाता है वह पुरुष प्रधान है।
विचारकों का मत है कि पूरे विश्व में पुरुष प्रधान योजना रही है तथा निर्माताओं ने केवल नाम मात्र शारीरिक शिक्षण, सेवा जैसी सुविधाओं महिलाओं को प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त महिलाओं द्वारा आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने के रूप में महिला को नहीं देखा जा सकता है।
महिलाओं को महिला होने के कारण कम वेतन देना तथा उनके साथ भेदभाव करना यह विकासशील देशों में आज भी देखा जा सकता है। इनका यह भी मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (IO’s)में महिला को सक्रिय भूमिका होनी चाहिए क्योंकि इसी के माध्यम से किसी व्यवस्था में नियम का निर्माण होता है तथा यह देखने को मिला है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में महिला की भूमिका निर्णय लेने में कम है। जहां पुरुष प्रधानता को साफ तौर पर देखा जा सकता है अर्थात उनके द्वारा लिया गया निर्णय को पुरुष प्रधानता के पक्ष में होना स्वाभाविक है।
वर्तमान समय में महिलावादी अंतरराष्ट्रीय विचारकों ने सैद्धांतिक रूप से तथा क्षेत्रीय स्तर पर जेंडर राष्ट्रवाद तथा नागरिकता का अध्ययन किया है। इसमें माना है कि पुरुषों को राजनीति में मुख्य कर्ता माना गया है अर्थात यहां महिला की स्थिति काफी हीन है। इन्हें केवल निजी क्षेत्रों तक सीमित किया गया है। परंतु महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के आंदोलनों जैसे पर्यावरण, नस्लभेद, आदि में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है परंतु फिर भी महिला अधिकारों को लेकर कोई सहासिक पहल नहीं हो पाई है।
1990 के पश्चात महिला आंदोलनों व अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में महिलाओं की भूमिका बढ़ी है तथा नारीवादियों को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के आलोचक के रूप में उभरता देखा जा सकता है।
Gender as Constitutive
दूसरी चुनौती नारीवादी विचारको द्वारा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यह आई है कि महिला को कभी भी अंतरराष्ट्रीय संबंध में समझा ही नहीं गया क्योंकि संरचनात्मक रूप से अंतरराष्ट्रीय संबंधों के ढांचे में महिला तथा पुरुष के मध्य समानता दिखती है।
इस मत के विचारको का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध के सिद्धांत तथा प्रयोग में महिला की भूमिका नहीं है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से महिला के पिछड़ेपन का कारण है। Cynthia Enloe का मानना है कि राज्य एक निश्चित संस्थान पर आधारित होता है जो निजी /घरेलू तथा सार्वजनिक/ अंतरराष्ट्रीय से मिलाकर बनता है तथा यह मानती है कि किस प्रकार इन दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति को आंका जाता है।
The Man
विचारकों का मत है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध के सिद्धांत में तार्किक पुरुषों को माना है और सभी सिद्धांतों के निर्माण में पुरुष को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत की पुरुषों द्वारा निर्मित माना जाता है जिसमें मानव में मानसिक तथा क्रियाकलापों को पुरुष के नजरिए से देखा जाता है।
Anne Tickner का मानना है कि यह आवश्यक है कि नारीवादियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय संबंध में परिवर्तन लाया जाए। यह संबंध व्यापक तथा तार्किकता पर आधारित होना चाहिए इसके अंतर्गत मानवता की आदर तथा मानव संबंध का भी वर्णन होना चाहिए उन्होंने मानव तथा राज्य को संप्रभु माना है।
The State
संरचनात्मकतावादियों द्वारा आधुनिक राज्य की परिधि को दो आधारों पर बांटा है-
आधुनिक राज्य में संप्रभुता के अंतर्गत सार्वजनिक दायरे को अधिक महत्वपूर्ण माना है। लिंकलेटर का मत है कि कैसे राज्य आधुनिक राज्य के निर्माण के साथ, राजनीतिक व्यवस्था को जन्म दिया है। इसमें वह मानते हैं कि किस प्रकार निजी, सार्वजनिक, आंतरिक, बाह्य, मानव– नागरिकों के मध्य संबंधों की स्थापना के दौरान राजनीतिक लैंगिक असमानता पर ध्यान नहीं दिया गया है या दरकिनार किया गया है।
स्पाइक पैटरनसन का मानना है अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विचारको द्वारा लैंगिक आधार पर उत्पन्न होने वाली असमानता पर विधान प्रस्तुत नहीं किया है। इनका यह भी है मत है कि नारीवादियों द्वारा माना गया राज्य पौरुष तथा मातृत्व का निर्माण कर नागरिकों की भावनाओं पर आघात पहुंचाता है तथा राज्य पुरुषों को अपने ढंग से प्रयोग में लाना है, जो समाज में असमानता का निर्माण करता है। पुरुषों की पहचान को पुरुष तत्व से जोड़ा जाता है तथा इसे संप्रभु, पुरुष प्रधानता, सुरक्षा कार्य, तथा हथियारों को रखने, वाले से जोड़ा गया है।
स्पाइक पैटरनसन मानते हैं कि राज्य का स्वरूप महिला विरोधी होता है तथा यह विभिन्न रूपों में दिख सकता है। राज्य का निजी दायरे में हस्तक्षेप घरेलू हिंसा के प्रति राज्य का पुरुष नजरिए में बलात्कार की परिभाषा, महिला विरोधी राज्य की विचारधारा, जो शिक्षा, मीडिया, सुरक्षा व कल्याणकारी नीतियों, तथा पितृतात्मक कानून में दिखता है।
आलोचनात्मक सिद्धांतकारों का मानना है कि राज्य के स्वरूप को बिना लैंगिक अध्ययन के समझा नहीं जा सकता तथा वे इसे ऐतिहासिक लैंगिक आधार के असमानता पर आधारित मानते है। इनके अनुसार इन सब पर ध्यान देना आवश्यक है। इन्होंने यह स्वीकार किया है कि आधुनिक राज्य निर्माण लैंगिक भेदभाव से दूर नहीं था।
Key Concept
शक्ति, तार्किकता, सुरक्षा, तथा संप्रभुता, यह वह चार तत्व है जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति को समझने में प्रयास करते हैं। यथार्थवादियों द्वारा इसे मुख्य उपबंध माना है जो अंतरराष्ट्रीय संबंध को सही ढंग से समझाता है। नारीवादियों द्वारा इन आधारों को लैंगिक आधार पर माना है जो पुरुष प्रधान है।
शक्ति
अंतरराष्ट्रीय संबंध में शक्ति का महत्व और अधिक यथार्थवादी विचारधारा के कारण है जहां Power Over को महत्वपूर्ण समझा जाता है। शक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति से ऐसा काम कराए जो वह खुद नहीं करना चाहता हो।
कैनाथ वॉल्ट शक्ति को राज्यों की जीवित रखने के लिए महत्वपूर्ण माना है। वहीं Anne Tickner ने मार्गेंथाऊ के छह सिद्धांत को आलोचना में यह समझाने का प्रयास किया है कि किस प्रकार शक्ति की अवधारणा पुरुष प्रधान है। यह मात्र पुरुष, खुद के विकास के लिए प्रयोग में लाई गई है तथा वस्तुपरकता, ज्ञान मात्र पुरुष को इस पितृसत्तात्मक राज्य में माना है।
Christine Sylvester का मानना है कि मात्र सेल्फ हेल्प के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय संबंध को नहीं समझा जा सकता है। बल्कि अन्य कारक भी महत्वपूर्ण होते हैं। Cynthia Enloe का मानना है कि शक्ति एक जटिल अवधारणा है जो सामाजिक बल पर आधारित है तथा लैंगिक पहचान, पुरुष, महिला तथा नागरिक के रूप में प्रस्तुत करता है।
तार्किकता
यथार्थवादियों द्वारा तार्किकता को एक हथियार के रूप में प्रयोग किया है जिसके माध्यम से वह राज्य की अवधारणा को समझने का प्रयास करता है। नारीवादियों का मानना है कि तार्किक रूप से यथार्थवादी होना लैंगिक असमानता को दर्शाता है जो लोगों तथा राज्य के मध्य होता है नारीवादियों का यह भी मत है कि तार्किकता का यहां संकुचित अर्थ हो सकता है क्योंकि यह मात्र पुरुषवादी नजरिए से समझाने का प्रयास करता है। इस प्रकार का ज्ञान समाज में लिंग आधारित कार्य का निर्माण करता है।
सुरक्षा
सुरक्षा का प्रयोग यथार्थवादी तथा नव यथार्थवादयों द्वारा उस तरह प्रयोग नहीं किया गया है जिस प्रकार नारीवादियों द्वारा किया गया है। सुरक्षा को अंतर्राष्ट्रीय संबंध में स्थिरता प्रदान करने के रूप में समझा जाता है। जहां अधिक सक्षम राज्य पूर्णकालिक युद्ध से बचने का प्रयास करता है। मूल रूप से यह कहा जा सकता है सुरक्षा का प्रयोग युद्ध को टालने के लिए किया जाता है।
स्पाइक पैटर्नसन का मानना है कि एक रूप से सुरक्षा को बाहरी असुरक्षा की स्थिति से टालने के लिए प्रयोग में लाया जाता है जिसमे मिलिट्री बल का महत्वपूर्ण स्थान होता है। तो यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य का कार्य बाहरी सुरक्षा से दूर, सुरक्षा कवच के रूप में होता है तथा सुरक्षा के नाम पर राज्य लैंगिकता को भी फैलाता है जहां सैनिक सुरक्षा का कार्य करते हैं।
Anne Tickner जैसे विचारको का मत है कि तार्किकता, सुरक्षा, तथा शक्ति, ऐसी अवधारणा है जो महिलावादी विचारधारा के व्याख्यान को अंतर्राष्ट्रीय संबंध में सुव्यवस्थित करने में बाधा का कार्य करती है।
Gender as a Transformative
उत्तर प्रत्यक्षवादी नारीवादी यह मत देते हैं कि समाज में मौजूद बिना प्रश्न की तर्ज पर तौले गए नियम पुरुष प्रधानकर्ता द्वारा चलाए जाते हैं। तथा नारीवादी विचारक इसी पुरुष प्रधानकर्ता का विरोध करती है।
Gender as Transformative में इस बात पर जोर दिया जाता है कि महिला के रूप में , नारीवादियों का यह प्रयास होता है कि वह किस प्रकार लैंगिक समाज से महिला को प्रस्तुत किया गया है। उसे पुनरव्याख्या किया जाए तथा संप्रभु पुरुष की अवधारणा को हटाने का प्रयास किया जाता है तथा महिलाओं के अनुभवों को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में डालने का प्रयास करता है।
इसके अंतर्गत मूल रूप से यह माना गया है कि लिंग एक ऐसी अवधारणा है जो समाज द्वारा निर्मित होती है तथा इसे बदला भी जा सकता है। यहां नारीवादियों को लैंगिक असमानता के रचनात्मक पक्ष पर मुख्य रुप से ध्यान आकर्षित किया गया है। जहां आधुनिक नारीवादी महिला को एक उपाश्रित समूह के इतिहास के रूप में समझने का प्रयास करती हैं। वहीं उत्तर आधुनिक नारीवादी लिंग के आधार पर विभाजन पर प्रहार करती हैं।
उत्तर आधुनिक नारीवादियों में रूढ़िवादी नारीवादियों को भी देखा जा सकता है जो त्वरित परिवर्तन के पक्षधर हैं। तथा मानते हैं यह संभव है कि महिला के हित पुरुष प्रधान समाज से अलग हो सकते हैं। आधुनिक नारीवादी मानते हैं कि महिलाओं के आधार में असमानता होने के कारण महिला ऐतिहासिक रूप से पिछड़ी रही है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नारीवादियों द्वारा तीन तरह की ज्ञान मीमांसा (Epistemology) का निर्माण किया है:–