समधर्मी परम्परा [Syncretic] व भक्ति आंदोलन का विस्तार

भक्ति आंदोलन इस्लाम पर इसके प्रभाव

भक्ति आंदोलन की शुरुआत प्रेम तथा धर्म, निष्ठा पर आधारित पंथ के रूप में हुई जो कि  भगवत गीता तथा अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों पर आधारित थी ये दक्षिण भारत के अलवर तथा आदियार ब्राह्मणों द्वारा रचित थे। 

जहां वैष्णवचार्य और सैवसिद्धांत के शिक्षकों व प्रचारको ने इसका विकास शंकराचार्य के आदर्श रीतिवाद व नियम निष्ठाता के अध्यात्मिक विलोम के रूप में किया था। 

वैष्णवआचार्य के विचारको में रामानुज सबसे प्रमुख थे जिन्होंने शंकराचार्य के पूर्ण अद्वैतवाद का निराकरण करके वेदांत दर्शन में भक्ति का एक पंथ स्थापित किया जिसे उस समय गैर वैदिक पंचतंत्र के अधिकार के रूप में जाना गया ।

भक्ति आंदोलन ने दक्षिण भारत से उत्तर भारत की यात्रा की जहां इतने वैष्णववाद को मजबूत बनाया तथा भक्ति पुराणों का नेतृत्व व संचालन किया । जो अद्वैतवाद संबंधी विश्वासों का प्रचार करते थे और ईश्वर को मुक्त अपरिवर्तनीय मौलिक तथा तत्वविहीन निर्गुण मानते थे ।

भक्ति आंदोलन के विकास को हम दो चरणों में बांटते हैं जो इस प्रकार है:-

पहला:- 13वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में होने वाले प्रारंभिक विकास का चरण। 

दूसरा:- 13वीं से 17वीं शताब्दी जब यह उत्तर भारत में इस्लाम के संपर्क में आया जो कि एकेश्वरवाद से प्रभावित थी तथा इसकी चुनौतियों से प्रेरित थी इसका विकास हिंदू आध्यात्मिकता की रक्षा के लिए हुआ था।

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