दलित बहुजन [Dalit-Bahujan] क्या है? भारतीय राजनीतिक चिंतन में दलित चिंतन

दलित बहुजन

आधुनिक भारत में दलित बहुजन विचार एक मुख्य धारा के रूप में माना जाता है चाहे वह अधिकार, स्वतंत्रता और लोकतंत्र या वर्ग मुक्ति की एक समान बहुमुखी राजनीति में हो या सामान्य जीवन में । राजनीति में सामान्यतः दलित बहुजन को एक निर्वाचन क्षेत्र में अन्वेषित किया गया जिनके पास राजनीति की एक बड़ी रूपरेखा थी चाहे वह राष्ट्रवादी, धर्मनिरपेक्ष या कट्टरपंथी हो ।

दलित बहुजन चिंतन, दलित चिंतन है यह मुख्यधारा के राष्ट्रवाद व अलगाव की विशेषता है । यह एक सदी से चली आ रही एक प्रकार की समाजिक जटिलता जिसमें समाज का एक तबका लगातार जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहा है ।

सामान्यतः बहुजन का अर्थ है “कई या बहुसंख्यक लोग” से है जो  सदियों से मानवता से रहित हैं । यह शब्द 1906 के आसपास महाराष्ट्र में सत्यशोधक आंदोलन के दौरान हुआ । बहुजन से बहिष्कृत केवल ब्राह्मण ही नहीं बल्कि उपेक्षित रूप से उन्नत जातियों के साथ-साथ व्यापारिक जातियां भी हैं । सत्यशोधक आंदोलन के प्रारंभ में दलित बहुजन के विरोध शब्द थे,  “सेठ जी- भट्ट जी”। भट्ट जी पुजारी, ब्राह्मणों को संदर्भित करता है।  सेठ जी व्यापारियों को संदर्भित करता है। ( मुख्यता व्यापारी जातियों के रूप में)।

इस आंदोलन ने गैर ब्राह्मण, किसान जनता, नौकरशाह, साहूकार, जमीदार, व बुद्धिजीवी के साथ अपने औपनिवेशिक समाज के प्राथमिक अंतर्विरोध की पहचान की जिसमें ब्राह्मण प्रमुख थे । बहुजन के भीतर पहले से दो प्रवृतियां थी।  

प्रथम”- जो उच्च वर्ग पर आधारित था तथा जो गैर ब्राह्मण आंदोलन का प्रतिनिधित्व करता था । जिसमें ब्राह्मणों से ब्राह्मणों का विरोध किया।  

दूसरा:-  निम्न जातिवाद, किसानों पर आधारित था जो बहुजन समाज को सेठ जीभट्ट जी से अलग करता है ।

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