राजनीतिक सिद्धांत क्या है | मानकीय व वर्णात्मक दृष्टिकोण
परिचय
राजनीतिक और सिद्धांत दो अलग-अलग पहलू है इसके तथा इसके अर्थों को समझना आवश्यक है तभी हम संयुक्त रूप से इन दोनों के अर्थ को समझ पाएंगे की राजनीति सिद्धांत क्या है।
राजनीति– राजनीति अपने आप में व्यापक हैं अर्थात यह उन सभी मामलों को सम्मिलित करता है जो लोग जीवन पब्लिक लाइफ से संबंधित होता है।
सिद्धांत– जबकि सिद्धांत विचारों का एक समूह है जिसके माध्यम से हम विभिन्न मुद्दों का व्यवस्थित रूप से जांच पड़ताल करते हैं।
अर्थात राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक शास्त्र की एक ऐसी शाखा है जो सामाजिक राजनीतिक व आर्थिक मामलों की वास्तविकता का विवरण प्रस्तुत करता है तथा इसके बौद्धिक गतिविधियों के रूप में भी जाना जाता है जो वास्तविकता का को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है
राजनीतिक सिद्धांत के बारे में स्पष्ट विवरण व इसकी संक्षिप्त परिभाषा हमें कैटरीना मैकेनिक के लेख “Issues in political theory” से प्राप्त होता है। कैटरीना मैकेनिन अपने लेख में राजनीतिक सिद्धांत को परिभाषित करते हुए कहा है कि “राजनीतिक सिद्धांत इस बात का अध्ययन करता है कि हमें समाज में कैसे रहना चाहिए”
इस प्रकार राजनीतिक सिद्धांत समाज के अध्ययन की व्यापकता को इंगित करता है अर्थात जिस प्रकार से सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं व सामाजिक सहयोग सन लिप्त होता है उसी प्रकार राजनीतिक सिद्धांत की प्रकृति और आकार में भिन्नता और व्यापकता पाई जाती है।
कैटरीना मैकेनिन के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत के आयाम
कैटरीना मैकेनिन के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत को मुख्यतः तीन आयामों में विभाजित किया जा सकता है–
1.Interpersonal relations :- राजनीतिक सिद्धांत का यह पहला आयाम है जिसके अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि कैसे हमें क्रियाशील क्रियाकलापों के लाभ को बांटना चाहिए तथा किस प्रकार की सीमाएं व्यवस्थित करना चाहिए वह किस प्रकार हमें एक दूसरे से व्यवहार करना चाहिए साथ ही साथ हमें अपने समाज में अपने आप को किस प्रकार छोटे समूह में व्यवस्थित करना चाहिए आदि इस आयाम के अंतर्गत उपरोक्त सभी बिंदुओं पर गहन अध्ययन किया जाता है।
2. state personal relation- राजनीतिक सिद्धांत के इस दूसरे आयाम में प्रमुख रूप से व्यक्ति व राज्य के बीच गहन संबंधों का अध्ययन किया जाता है इसके अंतर्गत इस बात का ध्यान अध्ययन किया जाता है कि व्यक्ति को राज्य की राजनीतिक प्रभुसत्ता क्यों स्वीकार करना चाहिए तथा राज्य की क्या सीमाएं हैं।
लोकतंत्र में ज्यादातर लोग अनुवांशिकता के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं लेकिन फिर भी मैं कल इनका मानना है लोग लोकतंत्र को महत्व क्यों देते हैं इस प्रकार यहां विभिन्न प्रश्न जो कि समाजिक सिद्धांतों के सहयोग और न्याय के आधार पर नियोजित है इस सिद्धांत का समर्थन विभिन्न तरीकों द्वारा राज्य में किया जाता है।
3. global relation- राजनीतिक सिद्धांत का यह अंतिम आयाम है इसमें ऐसे मुद्दों व प्रश्नों को शामिल किया जाता है जिसका संबंध विश्व स्तर पर होता है जिस प्रकार एक व्यक्ति राज्य में रहता है और उसकी जो सीमाएं होती हैं वह व्यक्ति उन से परे भी होता है तथा उसका संबंध अन्य राज्यों से भी हो सकता है।
इस प्रकार राजनीतिक सिद्धांत एक राज्य तक सीमित ना होकर या उससे कहीं अधिक पर है। अतः राजनीतिक सिद्धांत में कुछ ऐसे प्रकरण भी शामिल हैं जो उपरोक्त तीनों आयामों को संलग्न करता है जैसे- ” हमें पर्यावरण की रक्षा कैसे करनी चाहिए?”
राजनीतिक सिद्धांत का मानकीय व वर्णात्मक दृष्टिकोण
कैटरीना मैक्लीन के अनुसार इन प्रश्नों के अध्ययन को दो भागों में बांटा जा सकता है जो समाज के गहन अध्ययन द्वारा निर्धारित किया गया है-
मानकीय धारणा के अंतर्गत यह सोचा जाता है कि एक व्यक्ति समाज तथा विश्व कैसे होना चाहिए जबकि वर्णनात्मक धारणा के अंतर्गत यहां चित्रण प्रस्तुत किया जाता है कि व्यक्ति समाज या विश्व वास्तव में कैसा है।
इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत इसकी मानकीय धारणा मुख्य रूप से समाज व विश्व तथा व्यक्ति में बदलाव की बात करता है (कैसे होना चाहिए)।
वही इसके विपरित राजनीतिक सिद्धांत की वर्णनात्मक धारणा व्यक्ति समाज व विश्व की वास्तविकता की बात करता है (कैसा है)।
राजनीतिक सिद्धांत मानकीय या वर्णनात्मक
राजनीतिक सिद्धांत की व्यापकता के चलते विद्वानों में इस बात को लेकर भ्रम या विवाद रहा है कि राजनीतिक सिद्धांत मानकीय है या वर्णनात्मक अर्थात राजनीतिक सिद्धांत के संबंध में यह माना जाता है कि यह दोनों अवधारणाओं को अपने साथ लेकर चलता है जिसके लिए विद्वानों ने निम्न तर्क दिया है।
मानकीय पक्ष- राजनीतिक सिद्धांत के मानकीय धारणा के समर्थकों का कहना है कि राजनीतिक सिद्धांत एक मानकीय सिद्धांत है क्योंकि इसमें राजनीतिक सिद्धांतकार हमें यह बताते हैं कि लोगों को कैसे एक दूसरे के साथ मिलना चाहिए तथा लागू किए गए कानूनों का पालन करना चाहिए इसीलिए विभिन्न सिद्धांतकार इसे राजनीतिक सिद्धांत की मानकीय धारणा मानते हैं।
वर्णनात्मक पक्ष- ज्यादातर राजनीतिक सिद्धांतकार कुछ मान्यताओं की पृष्ठभूमि द्वारा संचालित होते हैं तथा प्रमुख मान्यताएं यहां प्रस्तुत नहीं करती की राजनीतिक सिद्धांत में केवल वर्णनात्मक धरना ही महत्वपूर्ण है या मानकीय धारणा महत्वपूर्ण है तथा ना ही कोई सिद्धांतकार यह मान्यता रखने को बोलता है कि “विश्व ऐसा होना चाहिए” ज्यादातर राजनीतिक सिद्धांतकार ऐसे राज्य का वर्णन करते हैं जिसकी हम अच्छी से अच्छी कल्पना कर सकें जिससे हम विश्व के बारे में जान सकें तथा उनके तत्वों के बारे में भी जान सके।
अतः मानकीय धारणा मूल्यत: संपूर्ण राजनीति (political whole) में विश्वास करता है अर्थात सिद्धांत संपूर्ण, व्यापक और अंतर्दृष्टि होना चाहिए यह मूलतः आदेशात्मक होता है क्योंकि यहां मूल्यांकन की कुछ मानक निश्चित करता है जिनके माध्यम से हम किसी व्यवस्था की कमियों की जांच कर सकते हैं और उनमें सुधार कर सकते हैं या उपाय सुझा सकते हैं।
यह भी देखें:-Debates in Political Theory previous year question paper
जबकि वर्णनात्मक धारणा का उद्देश्य मूल्यांकन करना नहीं है बल्कि इनके अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का अध्ययन मूल्य विहीन (value free) होना चाहिए तथा इसका संबंध तथ्यों पर आधारित होता है।
मैकेनिक यह तर्क देती है कि राजनीतिक सिद्धांतकारों को सिद्धांतों का अध्ययन व व्याख्या मजाक के उद्देश्य से नहीं करना चाहिए क्योंकि इस सिद्धांत का मूल उद्देश्य “एक साथ कैसे रहा जाए” इसको पूरा करना होता है इस प्रकार राजनीतिक एक ऐसा विषय है जिसके बिना व्यक्ति जीवन की कल्पना नहीं कर सकता है।
संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत निरंतर चलने वाली संवाद है जिसमें सिद्धांतों का उद्देश्य सामाजिक वास्तविकता के प्रति हमारी समझ में विस्तार करना है।