राजनीति क्या है | राजनीति की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोण
अरस्तु ने कहा था कि मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है। अरस्तु की दृष्टि में राजनीति मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व को समेट लेती है, संक्षेप में दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा की स्थिति में समाज के दुर्लभ संसाधनों पर अपना प्रभुत्व और नियंत्रण स्थापित करने के प्रयास को राजनीति की संज्ञा दी जाती है राजनीति के क्षेत्र में वही सत्ता आती है जिसका प्रयोग या तो सरकार स्वयं करती है या जिसका प्रयोग सरकार को प्रभावित करने के लिए होता है।
राजनीति क्या है
राजनीतिक शब्द का बहुस्तरीय अर्थ है इसका पहला अर्थ प्राचीन ग्रीस से संबंधित है यही “पोलीस” शब्द से “राजनीतिक” या पॉलिटिकल शब्द का उद्भव हुआ था शाब्दिक रूप में पॉलिश का अर्थ नगर है, लेकिन इसे एक ऐसे स्थान के रूप में समझा जाता है जहां एक सामान्य दुनिया या ज्यादा सरल रूप में कहे तो एक समुदाय होता है इसीलिए राजनीतिक का तात्पर्य है इस समुदाय के भीतर या इसके द्वारा की जाने वाली हर तरह की गतिविधियां है। अधिक विशिष्ट रूप में कहें तो राजनीतिक का अर्थ है समुदाय के द्वारा और इसके भीतर किया जाने वाला निर्णय निर्माण।
- राजनीति इस बात से भी संबंधित है कि इस बारे में फैसला किया गया है जब हम इस पहले अर्थ में राजनीतिक शब्द का प्रयोग करते हैं तो हम सिर्फ जिंदगी के बारे में ही बात नहीं करते बल्कि हम समुदाय के भीतर उत्तम जीवन की बात करते हैं हम सब उत्तम जीवन की एक निश्चित संकल्पना के साथ जीते हैं इसीलिए हम यह पूछ सकते हैं कि कौन से लोग समुदाय के सदस्य होंगे और क्यों?
राजनीति का कोई एक निश्चित अर्थ नहीं है अर्थात हम यहां पर राजनीति को अलग अलग संदर्भ में रखकर इसे समझ कर समझने का प्रयास करेंगे राजनीति शब्द अपने आप में एक व्यापक दृष्टिकोण है इसे हम निम्न आधारों पर देख सकते हैं:-
राजनीति के बारे में आम आदमी की धारणा
अक्सर यह मान लिया जाता है कि राजनीति का सरोकार केवल सार्वजनिक क्षेत्र से है अर्थात संसद चुनावों और मंत्री मंडलों से मानवीय गतिविधि के अन्य क्षेत्रों से इसे कुछ लेना देना नहीं है राजनीति एक व्यापक सामाजिक प्रक्रिया है जो सामाजिक जीवन के अनेक स्तरों पर चलती रहती है राजनीति में सार्वजनिक सभाएं जल से जुलूस नारेबाजी प्रदर्शन मांगे हड़ताल ए आंसू गैस और लाठीचार्ज जैसी गतिविधियां आ जाती हैं या फिर उसका ध्यान चुनाव प्रचार अभियानों या रैलियों के उस पक्ष की ओर चला जाता है जिसमें झूठे वादे किए जाते हैं यह प्रमुख रूप से एक आम नागरिक के दृष्टिकोण को राजनीति के प्रति उसका विचार दिखाता है।
राजनीति की परंपरागत धारणा
प्लेटो, अरस्तु और उनके समकालीन यूनानी विचार को की दृष्टि में पुलिस या नगर राज्य के मामले अत्यंत महत्वपूर्ण थे यूनानी विचारक यह मानते थे कि राज्य मनुष्य के “जीवन को चलाने के लिए अस्तित्व में आता है और सदजीवन की सिद्धि के लिए बना रहता है”
अरस्तु ने कहा था कि मनुष्य स्वभाव से राजनीतिक प्राणी है जो मनुष्य राज्य में नहीं रहता या जिसे राज्य की आवश्यकता नहीं है वह या तो निरा पशु होगा या अति मानव होगा।
राज्य में सदजीवन की प्राप्ति के लिए मनुष्य जो कुछ करता है जिन जिन गतिविधियों में भाग लेता है या जो जो नियम संस्थाएं और संगठन बनाता है उन सब को अरस्तु ने राजनीति के अध्ययन का विषय माना है इसे हम राजनीति की परंपरागत धारणा कहते हैं इस युग में मनुष्य के समस्त सामाजिक संबंधों और सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का अध्ययन राजनीति के अंतर्गत होता था।
राजनीति की आधुनिक धारणा
आज राजनीति के अध्ययन में मनुष्य के सामाजिक जीवन की समस्त गतिविधियों पर विचार नहीं किया जाता। बल्कि केवल उन गतिविधियों पर विचार किया जाता है जो सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक निर्णय को प्रभावित करती है। इस तरह राजनीति जनसाधारण की उन गतिविधियों का संकेत देती है जिनके द्वारा भिन्न-भिन्न समूह अपने-अपने परस्पर विरोधी हितों में तालमेल स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं।
परंतु आधुनिक लेखक यह अनुभव करते हैं कि राजनीति मानव जीवन की एक विशेष गतिविधि है यह केवल राज्य की गतिविधि नहीं है बल्कि संपूर्ण सामाजिक संगठन के साथ जुड़ी हुई गतिविधि है।
अतः आज के युग में राजनीति को राज्य की औपचारिक संस्थाओं और उनके कार्यों का समुचित नहीं माना जाता बल्कि एक व्यापक सामाजिक प्रक्रिया माना जाता है।
राजनीति की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोण
राजनीति को समझने व इस को परिभाषित करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण को अपनाया जाता है परंतु राजनीतिक विज्ञान के संदर्भ में यदि हम बात करें तो प्रमुख रूप से तीन दृष्टिकोण को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है जिसके बारे में नीचे चर्चा किया गया है:-
उदारवादी दृष्टिकोण:- इसके अंतर्गत राजनीति को परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य का साधन माना जाता है। उदारवाद का सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में उन विचारों को बढ़ावा देना था जो पूंजीवाद की स्थापना में सहायक सिद्ध हो
मार्क्सवादी दृष्टिकोण:- इसके अंतर्गत राजनीति को वर्ग संघर्ष का क्षेत्र माना जाता है। मार्क्सवाद ने वर्ग संघर्ष को महत्व दिया और यह विचार रखा कि इस संघर्ष में कामगार वर्ग को संगठित होकर पूंजीवादी व्यवस्था का अंत करना होगा और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सामाजिक स्वामित्व स्थापित करके समाजवाद लाना होगा ताकि एक वर्ग हीन समाज का उदय हो सके।
समुदायवादी दृष्टिकोण:- इसके अंतर्गत व्यक्ति को समुदाय का अभिन्न अंग मानते हुए राजनीति को सामान्य हित की सिद्धि का साधन माना जाता है। समुदायवाद के समर्थक यह मानते हैं कि व्यक्ति का अपना अस्तित्व और व्यक्तित्व सामाजिक जीवन की देन है भिन्न-भिन्न व्यक्ति एक दूसरे से कटी हुई इकाइयां नहीं है बल्कि वह समाज की आकृति में एक दूसरे से जुड़े हुए बिंदु हैं।
निष्कर्ष
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक शब्द का बहु स्तरीय अर्थ है-
(क) समुदाय में उत्तम जीवन के हर पहलू के बारे में फैसला करने की सामूहिक शक्ति।
(ख) कुछ समूहों द्वारा दूसरे समूहों पर नियंत्रण रखने या उन्हें अधीनस्थ बनाने की शक्ति।
(ग) राजनीतिक सामान्य हित/ मूल्यों को हासिल करने के लिए राज्य की शक्ति के प्रयोग से संबंधित है।
(घ) यह एक समूह द्वारा दूसरे समूहों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए राज्य शक्ति के प्रयोग से संबंधित है।
References:-
Bhargava, R. (2008) ‘What is Political Theory’, in Bhargava, R and Acharya, A. (eds.) Political Theory: An Introduction. New Delhi:
Bhargava, R, ‘Why Do We Need Political Theory’, in Bhargava, R. and Acharya, A. (eds.) Political Theory: An Introduction. New Delhi: Pearson Longman,
O.P. Gauba (2019), ‘An Introduction to Political Theory, National Publishing House.