अन्तराष्ट्रीय संबंधो में ‘न्यू ग्रेट डिबेटस्’ | the New Great Debate
हेडली बुल के शब्दों में आज के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों के प्रति दो दृष्टिकोण हमारा ध्यान खींचते हैं। पहला परंपरागत दृष्टिकोण, दूसरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण। इन दोनों दृष्टिकोणओं की उपयोगिता के संबंध में वाद विवाद चलता रहा है। दोनों दृष्टिकोणओ के समर्थक अपने विरोधियों के विरुद्ध अनेक तर्क देते हैं। इस सारे विवाद को विज्ञान बनाम परंपरा का नाम दिया गया। मार्टिन कप्लान के अनुसार इसे “नया महा वाद-विवाद ” [The New Great Debate ] का नाम दिया गया।
परंपरावादी दृष्टिकोण:- इसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन का परंपरावादी दृष्टिकोण कहा जाता है तथा इस दृष्टिकोण के समर्थकों को परंपरावादी या रूढ़िवादी कहा जाता है। यह दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पहले लोकप्रिय हुआ। यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का वह दृष्टिकोण है जो अपनी शक्ति दर्शन शास्त्र, इतिहास, एवं कानून से प्राप्त करता है। यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभुसत्ता संपन्न राज्यों जिनका प्रतिनिधित्व उनके राज करने श्रेष्ठगढ़ करते हैं, अंत क्रियाओं के ढांचे का अध्ययन करना है।
परंपरागत दृष्टिकोण का अध्ययन उन सैनिकों व कूट नीतियों के कार्यों की जांच पड़ताल पर केंद्रित है जो अपनी अपनी सरकारों की विदेश नीतियों का निर्माण करतें है व उसे लागू करते हैं। यह मूल रूप से शांति एवं युद्ध का अध्ययन करता है।
कोलिनिकस कहते हैं “परंपरावादी यह मानते हैं कि राजनीति का संचालन करने वालों के रूप में सैनिकों एवं कूटनीति के व्यवहार को अनेक परीतत्व प्रभावित करते हैं। यह तत्व किसी राज्य की जलवायु संबंधी स्थितियों, भौगोलिक व जनसंख्या घनत्व से लेकर इसकी शिक्षा दर, हितों, धर्मों, ऐतिहासिक या सांस्कृतिक परंपराओं दूसरे राष्ट्रों की लोकप्रिय ऐतिहासिक पुराणों व राष्ट्रीय नेताओं के खराब व्यवहार व उन्हें समर्थन देने वाले श्रेष्ठ पुरुषों तक फैले हुए हैं।”
परंपरावादि सरकार के कार्यों के पीछे जो विधमान कारण हैं उनको महत्व नहीं देते, इसके विपरित वह किसी प्रकार की सरकार का दिखाई देने वाला व्यवहार जैसे शक्ति संतुलन, राष्ट्रीय हितों का लक्ष्य, कूटनीतिक अवधारणाओं के आधार पर व्याख्या करते हैं। और इस पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। परंपरावादी के समर्थक हंस जे मार्गेनथउ, रेमंड एनोल्ड, हाफमैन, अर्नाल्ड, हेडली बुल आदि थे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:- 1945 के बाद के युग में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण बहुत लोकप्रिय हो गया। इसे व्यवहारवादी दृष्टिकोण के नाम से भी जाना जाता है। इस दृष्टिकोण के समर्थक जिन्हें वैज्ञानिक कहा जाता है परंपरागत दृष्टिकोण तथा उनके तर्को का जोरदार विरोध करते हैं। वह कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों का क्षेत्र इतना विस्तृत एवं जटिल है कि इसे राजनीतिक शास्त्र या अन्य विषय के घेरे में समाहित नहीं किया जा सकता।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति को अंत: विषय मानते हैं वह परंपरावादियों की अस्पष्टता व आदर्श राज्य की व्यापकता का विरोध करते हैं। तथा परिणामात्मक तकनीकों द्वारा मॉडल बनाने तथा वैज्ञानिक तरीकों के आदर्श राज्य की सर्व व्यापकता का विरोध करते हैं। वह बुद्धिमत्ता अंतर्ज्ञान व विवेकपूर्ण दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक जॉन बर्टन, कार्ल डब्लू डोश, अर्नस्ट बी हाउस, मार्टन कप्लान, चार्ल्स मैक्लेइलैंड, रोजनाओ आदि है। यह राजनीति वैज्ञानिक जैसा कि हेडली बुल लिखते हैं कि एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत का विकास करना चाहते हैं जिसमें धारणाएं, गणितीय प्रमाण या अनुभववादी पड़ताल के क्रियाओं पर आधारित है।
विवाद:- अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में परंपरावादियों तथा वैज्ञानिकों के मध्य वैचारिक मतभेद आदि कुछ ही वर्षों में विषय का विवाद बन गया। दोनों ने दूसरे के विरुद्ध कई तर्क दिए हैं:-
वैज्ञानिकों के विरुद्ध परंपरा वादियों के तर्क:-
1960 में छपे एक लेख में परंपरावादियों के पक्ष में वैज्ञानिकों ने जमकर विरोध किया उसका विरोध वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए एक चुनौती जो तब से आज तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करने वाले विद्वानों के मध्य वाद विवाद जारी है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वैज्ञानिक ढंग का प्रयोग नहीं हो सकता
परंपरावादियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप कुछ ऐसा है कि इसका विश्लेषण वैज्ञानिक तरीकों या उपकरणों से नहीं हो सकता। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल विषय निसंदेह विषय हैं जिसमें संगठन संबंधी विवाद, प्रभुसत्ता, संपन्नता, राज्य की संरचनाएं व उद्देश्य, युद्ध, शांति का महत्व, शांति प्रयोग के औचित्य, अंतर्राष्ट्रीय समाज में व्यक्ति का स्थान, तथा इसी तरह के और भी अनिश्चित समस्याएं शामिल है। इन सभी प्रश्नों का हल वैज्ञानिक तरीके से नहीं निकाला जा सकता।
वैज्ञानिक छोटे-छोटे विषयों में उलझे रहते हैं:-
परंपरावादियों का मानना है कि वैज्ञानिकों की आलोचना इसलिए करते हैं क्योंकि वैज्ञानिक छोटे-छोटे बातों के विश्लेषण में लिप्त रहते हैं तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मूल प्रश्नों को भूल जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत के निर्माण में उनकी भूमिका कम है। और जो थोड़ी बहुत दिखता है, यह भी पुरातन तरीकों के ग्रहण के कारण है।
मॉडल निर्माण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सफल नहीं हो सकता:-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मॉडल क्योंकि निर्माण के विनियोग को अस्वीकार करते हैं मॉडल साधारण मामलों को जटिल बना देते हैं तथा शोध करने वालों को सच्चाई के रास्ते से भटका देते हैं। मॉडल निर्माण की प्रक्रिया तथा तर्क राज्यों के व्यवहार की सच्चाई से प्राय इतनी दूर होते हैं कि आवश्यक संबंधों का सच्चाई को समझना व लागू करना, इन मॉडलों पर निर्भर करना ना तो बुद्धिमत्ता है और ना ही संभव।
वैज्ञानिकों का तथ्यों के प्रति व्यस्तता
वैज्ञानिकों का मानना है कि उनका कार्य अभी प्रारंभिक है तथा समय के साथ परिपक्व हो जाएगा जो अच्छा नहीं है। परंपरावादियों का कहना है कि वैज्ञानिक अपने अध्ययन के लिए आंकड़ों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं परंतु उनके आंकड़े इतने जटिल हैं है कि व्यवहार का अध्ययन नहीं किया जा सकता।
वैज्ञानिक शोध वस्तुनिष्ठता बनाए रखने में असफल है
विज्ञान के समर्थक वैज्ञानिक उपकरणों से इस तरह जुड़े हैं कि वह वस्तुनिष्ठता के लक्ष्य से कोसों दूर हैं। सुस्पष्टता का परिणाम की भावना उनके मन में विभिन्न समाजों के मध्य विधमान अंतर को भुला देती है।
वैज्ञानिकों का सु स्ष्टता का मत अधूरा और अस्वीकार्य है
बुल का मानना है कि वैज्ञानिकों की अस्पष्टता का विचार सिद्धांत में अस्पष्टता के वास्तविक अर्थ से बहुत भिन्न है। हेडली बुल वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करने के रूप में पूर्णतया आपत्तिजनक मानते हैं। वह पूरी तरह पुरातन दृष्टिकोण के पक्ष में है।
परंपरावादियों के विरुद्ध वैज्ञानिकों के विचार:-
कप्लान के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समर्थक हेडली बुल व दूसरे परंपरावादियों द्वारा लगाए आरोपों का बड़ी कठोरता से खंडन करते हैं। वह कहते हैं कि परंपरावादी विचारक वैज्ञानिक दावों व तकनीकों को समझने में असफल रहे हैं। वह विज्ञान की निंदा करने जो केवल पक्षपात पूर्ण कट्टर धर्मत्ता पर आधारित है। सीजर के शब्दों में वैज्ञानिक यह कहते हैं कि परंपरावादि पद्धतियों के प्रश्नों को उलझा देते हैं। वह वैज्ञानिकों को निर्धारक मॉडल प्रयोग करने के दोषी मानते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग अमानवीय उद्देश्यों के अध्ययन के लिए किया जा सकता है
कप्लान इस पर अपने विचार व्यक्त करते हैं कि मानवीय उद्देश्य विज्ञान के द्वारा नहीं बल्कि इसे तरीके से समझे जा सकते हैं। मानवीय उद्देश्यों का वैज्ञानिक विश्लेषण हो सकता है जिसमें मानवीय व्यवहार का अवलोकन शामिल है तथा व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार का सीधे ही मानवीय प्रेरणा से निगमन नहीं किया जा सकता।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग हो सकता है
कप्लान ने परंपरावादियों का इस विचार का खंडन किया है कि वैज्ञानिक विधि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन पर उपयुक्त नहीं हो सकती। 19वीं सदी के विचार 20 वीं सदी में अच्छी नहीं लगती। नई धारणा में सिद्धांतों, दृष्टिकोण, एवं विधियों के विकास ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन संभव बना दिया है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मॉडल निर्माण का प्रयोग फलदायक रूप में हो सकता है;-
कप्लान कहते हैं कि यह बात गलत है कि मॉडल निर्माण अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ना तो उचित हो सकता है और ना संभव। कप्लान के विचार में परंपरावादी विचारक अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वास्तविकता तथा तथ्यों को समझने एवं स्वीकार करने का प्रयत्न नहीं करते। ये वैज्ञानिक लोग नहीं हो जो मॉडल निर्माण की वास्तविकता तथा उपयोग को समझने में असफल रहे हैं, इसके विपरीत यह परंपरावादी ही हैं जो मॉडल और वास्तविकता को ही समझने के दोषी हैं।
वैज्ञानिक दर्शन शास्त्र और इतिहास के महत्व को स्वीकार नहीं करते
परंपरावादियों के इस दोष को अस्वीकार करते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टि दर्शनशास्त्र एवं इतिहास के मूल्यों को नहीं मानते। व्यवस्था सिद्धांत की मूलभूत अवधारणा एवं आधार वाक्य जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक दार्शनिक रूप है। वैज्ञानिक तथा परंपरावादी दोनों दृष्टिकोणओ का तथा एक दूसरे के विरुद्ध मुख्य तर्कों का परीक्षण करने के बाद यह अध्ययन आसान हो जाता है कि दोनों के अपने-अपने महत्व तथा गुण हैं। तकनीक की अपेक्षा विषय वस्तु पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता ने इन महान विवाद को सीमित किया है। इसीलिए हमारा उद्देश्य परंपरा बनाम विज्ञान ना होकर परंपरा और विज्ञान होना चाहिए।
निष्कर्ष
इस तरह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अलग-अलग दृष्टिकोण वैज्ञानिक तथा परंपरागत होने चाहिए। स्टैनले हॉफमैन की पुस्तक “A long Road to Theory” में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के चार तत्व बताए गए हैं:-
इन चार तत्व का एक ही दृष्टिकोण द्वारा अध्ययन नहीं किया जा सकता इसीलिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में अनेक दृष्टिकोण के उपयोग की आवश्यकता सदैव रही है।