अधिकार तथा कर्तव्य | Rights and Obligations
अभी तक हमने अधिकारों के विभिन्न सिद्धान्तों के बारे में पढ़ा। अधिकार समकालीन राजनीतिक सिद्धान्तों की एक प्रमुख धारणा है। परन्तु ऐसा अनुभव किया जा रहा है अधिकारा पर अत्यधिक महत्त्व एक न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था के संरक्षण या एक आदर्श समाज के प्रोत्साहन के लिये निभाये जाने वाले कर्तव्यों की अवज्ञा कर रहा है। कई लेखकों का मानना है कि अधिकारी की धारणा व्यक्ति पर अनन्य रूप से तथा अत्यधिक ध्यान केन्द्रित करती है और उस संस्कृति तथा समुदायों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देती जो लोगों को इन अधिकारों का दावेदार तथा धारक बनाते हैं।
चिन्तन की यह शाखा संस्कृति तथा समुदाय को बनाये रखने के लिये कर्तव्यों पर जोर देती हैं क्योंकि इसके बिना लोगों के लिए अधिकारों का दावा करना असम्भव होगा। अधिकार, तथा कर्तव्यों में सम्बन्ध, पर उदारवादी धारणा काफी जटिल है। इस जटिलता का एक कारण ।
उदारवाद की विभिन्न धारणाओं में उदारवादी मूल्यों की प्राथमिकताओं में भिन्नता है। वे परिप्रेक्ष्य जो अधिकारों को वरीयता देते हैं; कर्तव्यों को अधिकारों का सहायक मानते हैं। इसके विपरीत ये परम्परायें, जो इस बात में विश्वास करती हैं कि समाज को कुछ पूर्णातावादी मूल्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए, कर्तव्यों पर बल देती है। उदाहरण के लिए, जहां इच्छास्वातन्त्रयवादी अधिकारों को प्राथमिकता देते हैं, वहां समुदायवादी कर्तव्यों को वरीयता देते हैं।
स्टीफेन मकाडो लिखता है कि जहां उदारवाद नागरिकता की बात अधिकारों के संदर्भ में करता है, वहां गणराज्यवादी धारणा कर्तव्यों तथा उत्तरदायित्व के सदंर्भ में बात करती है। साथ ही, वह यह स्पष्ट करके कि नागरिक गुण (Civic virtue) केवल गणराज्यवादियों का एकाधिकार नहीं है। वह इस असन्तुलन को ठीक करने की कोशिश करता है। इसके अनुसार यद्यपि स्वतन्त्रता उदारवाद का अनिवार्य तत्त्व है तथापि स्वतन्त्रता का अर्थ स्वछन्दता नहीं है।
इस प्रकार के अवगुणों को रोकने के लिए नागरिकों में अनिवार्य नैतिक गुणों की आवश्यकता हैऔर ये गुण है : सहिष्णुता आत्म-आलोचना, संयम तथा नागरिकता सम्बन्धी गतिविधियों में संयमित तथा तर्कसंगत भागेदारी। मूलतः स्वतन्त्रता का उपभाग करने का अर्थ है इसे बनाये रखने की तत्परता जिसमें दूसरों की वैसी ही स्वतन्त्रता का सम्मान करना भी निहित है। इसी तरह विलियम गैल्स्टोन ने भी किसी भी राजनीति समाज के कल्याण के लिए नागरिक गुंण के महत्त्व पर बल दिया है। उसका मानना है कि किसी। भी राजनीति समाज को जीवित रखने के लिये, उसके नागरिकों में कम से कम तीन गुण होने चाहिए:
(i) उनमें अपने समाज की रक्षा करने, और यदि आवश्यकता पड़े तो इसके लिये जान न्यौछावर करन का जज्बा होना चाहिए
(ii) वे कानून का पालन करने वाले होने चाहिए अर्थात् उनमें यह प्रबल भावना होनी चाहिए कि समाज के कानूनों का पालन करना उनका तथा उनके अन्य सह नागरिकों का कर्तव्य है।
(iii) सभी सदस्यों का समाज के मूल सिद्धान्तों में सक्रिय विश्वास होना चाहिए।
अधिकार तथा कर्त्तव्य उदावादी चिन्तन में काफी नजदीक से जुड़े हुये हैं हालांकि इस सम्बन्ध की प्रकृति तथा डिग्री में काफी अन्तर रहा है। प्राक-उदारवादी समाजों में, जहां लोग सामाजिक भूमिकाओं के साथ बंधे हुये थे और वे अपनी मर्जी के अनुसार कार्य करने के लिए स्वतन्त्र नहीं थे , उनका जीवन कर्तव्यों द्वारा शासित होता था।
इसके विपरीतं, उदारवाद ने व्यक्ति के अधिकारों के ऊपर बल दिया तथा कर्तव्यों को अधिकारों के साथ सम्बन्धित कर दिया गया। ऐसा दावा किया – गया कि यदि व्यक्ति अधिकारों का मालिक है तो अन्य-चाहे वे व्यक्ति हो, राज्य अथवा समूह का यह कर्त्तव्यं है कि वे इन अधिकारों को प्रोत्साहित तथा प्रचारित करे। अर्थात् यदि मुझे शारीरिक सुरक्षा : का अधिकार है तो दूसरों का कर्तव्यं है कि वे मेरे ऊपर प्रहार न करें और यदि कोई ऐसा करता : है तो राज्य मेरी रक्षा करे।
उदाहरण के लिए वैथम ने यह तर्क दिया कि अधिकार नैतिक या प्राकृतिक नहीं होते, वे कानूनी होते है। कानून, कर्तव्यों का निर्माण करके, इन अधिकारों को अनुबद्ध करता है। वह लिखता है ‘मैं सजा का भागीदार हूँ यदि मैने कोई ऐसा काम किया है जो आपके अधिकार के उपभोग का उल्लंघन करता है।’ ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं जिनके सदृश्य कानून द्वारा स्वीकृत कर्तव्य न हों।
अधिकार तथा कर्तव्यों के इस प्रकार के सम्बन्ध को स्वीकृति सिद्धान्त (sanction theory) भी कहा जाता है। यह एक व्यक्ति के अधिकार के धारणा को दूसरे व्यक्ति का कानूनी कर्त्तव्य मानता है और यह कानूनी तव होता है जब इस कर्त्तव्य के उल्लंघन के लिए सजा भी मिल सकती है।
इसी तरह जे.एस. मिल ने भी लिखा है कि स्वतन्त्रता का अर्थ है अपने हितों को अपनी मर्जी से अनुपालन करना बशर्ते कि हम दूसरा की ऐसी ही स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न करें। ‘अपनी मर्जी से अपने हितों का अनुपालन’ ऐसा अधिकार है जिसके साथ दूसरों को समान स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न करने का कर्त्तव्य बन्धा हुआ है। अत: जो एक व्यक्ति के लिए अधिकार है, वह दूसरे के लिए कर्तव्य है और दूसरों के कर्त्तव्य हमारे लिये अधिकार हैं।
जिस प्रकार हमारे अधिकार सामाजिक हैं उसी तरह कर्तव्य भी सामाजिक हैं। अधिकार तथा कर्तव्य समाज से बाहर या समाज के विरूद्ध नहीं है। अधिकार दूसरों पर दावें हैं तथा कर्त्तव्य हमारे ऊपर दूसरों के दावे हैं। हम अपने अधिकार दूसरों के प्रति कर्तव्य निभाने के बाद पाते हैं।
‘ अधिकार तथा कर्तव्यों में सम्बन्ध लास्की ने अपनी अधिकारों की समाज कल्याण सम्बधी धारणा पर उचित ठहराया। उसके अनुसार अधिकारों का धारणा का अर्थ ‘बिना कर्तव्यों के अधिकार नहीं’ है। ऐसा इसलिये है क्योंकि राज्य व्यक्ति के अधिकारों को व्यापक सामाजिक शक्तियों के दवाव से बचाता है और ऐसी आशा करता है कि. लोग अपने कर्तव्यों को निभायेंगे। उदाहरण के लिये, यदि राज्य नागरिक को दूसरों के आक्रमण से बचाता है तो नागरिक से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह दूसरों के ऊपर प्रहार न करे।
इसके अतिरिक्त अधिकार कार्यों के साथ भी जुड़े । हुये हैं। नागरिक अधिकारों का हकदार इसलिये भी है ताकि वह कुछ सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति में योगदान दे सके। व्यक्ति को कोई भी समाज विरोधी कार्य करने का अधिकार नहीं है। जो सामाजिक दृष्टिकोण से लाभकारी कार्य नहीं करता, वह अधिकारों का हकदार नहीं है, वैसे ही जैसे हैं जो काम नहीं करता उसे रोटी खाने का कोई अधिकार नहीं है।
जॉन रॉल्स ने अपनी पुस्तक A Theory of Justice में सामूहिक जीवन के लिये उचित एवम् समान नियमों की स्थापना की जो अधिकारों में अभिव्यक्त होती है। ये अधिकार न्याय के नियम दो प्रकार के सिद्धान्तों की तरफ ले जाते हैं :
(i) संस्थाओं के लिये सिद्धान्त जो समाज के मूल . ढ़ाचे पर लागू होते हैं, तथा
(ii) व्यक्ति के लिए सिद्धान्त जो इन संस्थाओं के साथ तथा पारस्परिक स्तर पर अधिकारों तथा कर्तव्यों का निर्माण करते हैं। इन न्यायसंगत संस्थाओं का समर्थन करना नागरिकों का कर्तव्य है क्योंकि इसके लिए उन्होंने सहमति दी हुई है।